लघु कथा आंटा-सांटा

Give and Take
लघु कथा आंटा-सांटा

Give and Take:-  ‘‘पहले बेटे का रिश्ता…? तेरी इस जिद के कारण ही मेरी बेटी के आये अनेक अच्छे रिश्ते हाथ से निकल गए। अब भी समय है मान जा-कहीं ऐसा न हो कि बेटे की पहल तुझ पर भारी पड़ जाये और बिटिया ऐसे ही तेरी बेवकूफी की भेंट चढ़ जाये।’’

तुम अच्छे से जानती हो कि बेटा बिटिया से पूरे चार साल छोटा है फिर भी उसकी शादी की बात बीच में क्यों घुसेड़ रही हो। यदि पाँच साल तक भी लड़का कुँवारा रह जायेगा तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अभी बिटिया को देखा…। भाग्यवान समय का तकाजा समझो।

जब भी बिटिया के लिए रिश्ता आया है तुम बेटे को अड़ा देती हो कि ‘‘हम तो जब बेटी देंगे जी जब आप हमारे बेटे के लिए लड़की बताओगे। यह सुनकर सभी भाग जाते हैं।’’ लड़कियों का अकाल सा पड़ा हुआ है, क्या तुम नहीं जानती…? जानती हूँ अच्छे से, तभी तो कहती हूँ कि अगर पहले बिटिया की शादी कर दी तो ताउम्र कुँवारा रह जायेगा हमारा बेटा… यदि मैं बेटी के बदले बेटी की माँग करती हूँ तो क्या गलत है जी…। बहन को भी भाई की खुशी का ध्यान रखना चाहिए कि भाई का घर बसे।

यह जरूरी नहीं कि आंटे-सांटे से ही रिश्ता होगा। ‘‘जिद रूपी पट्टी आँखों से हटा और देख बेटी की ढलती उम्र को।’’
मैं ये मानती हूँ कि हमारे सामने बहुत ही विकट स्थिति है परन्तु एक माँ का दिल है जो कह रहा है कि अगर बहू नहीं मिली तो वंश-बेल कैसे बढ़ेगी जी…

लड़की का पिता सेच रहा है कि मैं किधर जाऊँ एक तरफ सर्वगुण संपन्न जवान बेटी घर पर बैठी है और दूसरी तरफ नालायक, निकम्मा व कामचोर बेटा। वह सोच रहा है कि इतनी होनहार बेटी पढ़ाई में अव्वल हर काम में आगे। दूसरी तरफ बेटा निकम्मा व कामचोर। जाऊँ तो किधर जाऊँ…? क्या मुझे बेटे की शादी के ना होने के डर से मेरी होनहार बेटी की खुशियों का गला घोंटना पड़ेगा?
क्या इस आंटे-सांटे के चक्कर से बचा पाऊँग अपनी लाडो को…?
                                                                                               लेखिका : शकुंतला काजल ‘शकुन’