योजना बड़ी लेकिन, पैसे का प्रबंध तक नहीं

Schemes dying in the lack of money

केन्द्र सरकार ने ‘आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना’ शुरू कर विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना होने का दावा किया है। इस योजना में 10 करोड़ परिवारों को शामिल किया गया है, जिसके तहत 40 करोड़ व्यक्ति इस योजना का लाभ उठा सकेंगे। निसंदेह बढ़ रही बीमारियों व महंगे इलाज के कारण गरीबों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं लेना एक बड़ी समस्या है, जिनके लिए ऐसी योजना की जरूरत है, लेकिन जहां तक सरकार के पास फंड के प्रबंध की बात है, इस साल के बजट में सरकार ने आयुषमान योजना के लिए 2,000 करोड़ आरक्षित किए हैं, जिसमें 1000 करोड़ रुपए राष्टÑीय स्वास्थ्य बीमा योजना का था इसलिए सरकार के पास अभी पैसे का प्रबंध ही नहीं है। इतना पैसा कहां से आएगा। इस पैसे को जुटाने के लिए केंद्र सरकार के पास न तो कोई प्रबंध है और न ही किसी ने सोचा है कि इतने पैसे की आवश्यकता भी पड़ेगी। लाभपात्रियों की संख्या (40 करोड़) अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको तीन देशों की जनसंख्या के बराबर है। योजना की राशि व आकार देखकर पंजाब, तेलंगाना, ओडीशा, दिल्ली व केरल ने तो योजना पर हस्ताक्षर ही नहीं किए। इस योजना के अंतर्गत राज्यों को 40 प्रतिशत पैसा खर्चना अनिवार्य है। देश में यदि केंद्र सरकार सच में इतने लोगों को योजना का लाभ देगी तो देश विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बन जाएगा। चाहे भारत के विश्व की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था होने का दावा किया जाता है लेकिन वास्तविकता अभी कोसों दूर है। पहले से ही चल रही केंद्र सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का बुरा हाल है, जिसके लिए केवल 30 हजार रुपए ही देने हैं। राज्यों ने तो उस योजना से भी कन्नी काट ली है, फिर पांच लाख देने तो राज्यों के लिए दूर की बात है। जहां तक योजना के अंतर्गत योजना में शामिल अस्पतालों का संबंध है उन निजी अस्पतालों के लिए यह अधिक लाभप्रद साबित होगी जहां ओपीडी, टैस्ट व आॅप्रेशन फीसें ज्यादा हैं। दरअसल हमारे देश की सरकारी योजनाओं पर राजनीतिक हितों व चुनावों का प्रभाव अधिक है। योजनाओं को आर्कषक तरीके से पेश किया जाता है, लेकिन उन्हें लागू करने व उचित परिणाम प्राप्त करने में कई प्रकार की समस्याएं आती हैं। आयुष्मान योजना के लिए पैसे की समस्या यहीं से ही झलकती है कि देश में कुल राज्यों के करीब 25 प्रतिशत राज्य शामिल होने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। 14000 अरोग्य सैंटर व 2300 वैलनेस सैंटर बनाएं जाएंगे। इसी तरह बुनियादी ढांचे के लिए खर्च अलग होगा। इस योजना के अंतर्गत पांच सालों में दो लाख लोगों को रोजगार मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है लेकिन वित्तीय प्रबंधों के नजरिए से देखें तब यह योजना हवा में ज्यादा और वास्तविकता से कोसों दूर है।

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