मुद्दे बनाम राजनीति

Politics

पंजाब विधान सभा का एक दिवसीय मानसून सत्र बड़े ही गंभीर सवाल छोड़ गया है, जो राजनीतिक पतन का प्रमाण है। पंजाब के 29 विधायक कोरोना पीड़ित और कई उनके संपर्क में हैं। विपक्ष आम आदमी पार्टी का भी विधायक मनजीत सिंह बिलासपुर भी कोरोना पीड़ित है व पार्टी के कई विधायक उनके संपर्क में थे। सभी विधायकों ने गत दिवस उनके साथ भोजन किया था। स्वास्थ्य विभाग के प्रोटोकल के अनुसार कोरोना पीड़ता या संपर्क में आने वालों को सत्र में भाग नहीं लेना चाहिए था। मुख्यमंत्री और स्पीकर की विनती के बावजूद आम आदमी पार्टी के कोरोना संपर्क वाले सदस्य सदन में भाग लेने के लिए पहुंचे। पुलिस ने उन्हें सदन में दाखिल होने से रोका। इसी तरह कांग्रेस का एक विधायक बुखार होने के बावजूद सदन में पहुंचा व सत्र के बाद उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई।

इस मौके न तो सरकार ने व न ही विपक्ष के विधायकों द्वारा नियमों का पालन किया गया। आम आदमी के दो विधायक अमन अरोड़ा व प्रो. बलजिन्द्र कौर को कोरोना पीड़ित के संपर्क में आने के बावजूद उन्हें सदन में जाने दिया गया। इस मामले में हरपाल चीमा को रोकने का कोई औचित्य नहीं था, क्योंकि वे अपने साथ नेगेटिव रिपोर्ट लेकर पहुंचे थे। दरअसल कोरोना महामारी से पूरा देश परेशान है और 33 लाख मरीज सामने आ चुके हैं। इन परिस्थितियों में लोगों के चुने हुए नुमाइंदों को आम जनता के लिए प्रेरक बनना चाहिए था। इस मामले में हरियाणा से भी काफी कुछ सीखने की आवश्यकता थी जहां मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर स्पीकर ज्ञानचंद ने कोरोना पीड़ित होने पर सत्र में भाग नहीं लिया। यह पहली बार हुआ है जब हरियाणा विधानसभा में सत्र की कार्यवाही बिना मुख्यमंत्री और स्पीकर के चली। नि:संदेह जनता के मुद्दों की अपनी महत्वता है लेकिन देश के हालातों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

महामारी के कारण कई दिन चलने वाले सत्र को एक दिवसीय करना इस तथ्य की गवाही भरता है कि केंद्र से लेकर राज्य सरकारें सत्र को लंबा नहीं खींचना चाहती। पिछले करीब पांच माह से लॉकडाऊन से अनलॉक के दौरान सभी राज्य सरकारें ही लोगों को घरों में रहने की अपील कर रही हैं। इन परिस्थितियों में कोरोना पीड़ितों के संपर्क में आने वाले लोगों का सार्वजनिक स्थानों पर जाकर बैठना उचित नहीं। यह स्वास्थ्य विभाग के नियमों की भी उल्लंघना है। एक तरफ राजनीतिक दल नीट और जेईई की परीक्षा करवाने का विरोध यह तर्क देकर कर रहे हैं कि विद्यार्थियों कोरोना का शिकार हो जाएंगे, फिर विधायकों का कोरोना पीड़ित या संपर्क में होने के बावजूद विधानसभा में जाना कहां तक सही है। यह केवल विधायकों के स्वास्थ्य का ही सवाल नहीं है बल्कि पूरे देश की जनता का सवाल है।

 

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