गुरु और शिष्य

Guru and disciple
कौत्स अपने गुरु महर्षि कण्व के आश्रम में तपस्या कर रहे थे। एक दिन गुरु और शिष्य दोनों ही जंगल में देर रात काम करते रहे। इसी बीच गुरु ने कौत्स से कहा- ‘हे वत्स! तुम आश्रम जाओ।’ रास्ते में कौत्स ने पीड़ा से कराहती एक सुंदरी को देखा, लेकिन वे अपनी राह चलते बने। पीछे से महर्षि कण्व भी उसी रास्ते से आए और उन्होंने भी उस स्त्री को वैसे ही कराहते देखा, तो उन्हें अपने शिष्य पर बड़ा क्रोध आया, वे स्वयं उस स्त्री को आश्रम ले गए और उसकी चिकित्सा व्यवस्था कर दी। फिर उन्होंने अपने शिष्य कौत्स को बुलाकर कहा- ‘तुमने मार्ग में इस स्त्री को कराहते हुए देख उठाया क्यों नहीं?’ शिष्य ने नतमस्तक होकर कहा- ‘हे भगवान, मुझे संदेह था कि कहीं मैं इस स्त्री के सौंदर्य से विचलित न हो जाऊँ।’ महर्षि कण्व ने गंभीर होकर कहा ‘वत्स, क्या इससे सौंदर्य के प्रति तुम्हें विरक्ति हो जाएगी। छिपा हुआ भाव कभी भी प्रकट हो सकता है। वासना का एकमात्र उपाय है वैसे ही वातावरण में रहकर आत्मनियंत्रण का अभ्यास करना। जैसे सूखे में तैरना नहीं सीखा जा सकता, ठीक उसी प्रकार आत्मनियंत्रण का अभ्यास एकांत में नहीं हो सकता।’
जब ब्राउनिंग ने कहा
ब्राउनिंग ने कहा, ‘विचार कर्म की आत्मा है।’ विचार की पवित्रता से ही विश्व का निर्माण हुआ है, जैसा कि सृष्टि से पूर्व ईश्वर ने सोचा था कि ‘मैं एक से अनेक हो जाऊँ और फिर उसने प्रकृति की रचना की।’ चूंकि महान विचार ह्रदय से आते हैं, हम मन की शुद्धि से अपने व्यक्तित्व, समाज, देश तथा विश्व में कल्याणकारी परिवर्तन ला सकते हैं। एक गड़रिए से एक व्यक्ति ने पूछा, ‘आज मौसम कैसा होगा?’ उसने कहा, ‘जैसा मैं चाहूँगा।’ व्यक्ति ने पूछा, ‘ऐसा कैसे हो सकता है? क्या मौसम तुम्हारा गुलाम है?’ गड़रिए ने उत्तर दिया, ‘नहीं, गुलाम नहीं है। मौसम हर हाल में वैसा ही रहेगा, जैसा ईश्वर चाहेगा और उसकी प्रसन्नता में ही मेरी प्रसन्नता है।’ कितना साफ-सुथरा विचार है उस गड़रिए का। प्रश्नकर्त्ता उसकी बात सुनकर भौंचक्का रह गया। उसने गड़रिए का विचार जानकर यह सबक सीखा कि हालात तो जैसे हैं वैसे ही रहेंगे, उन्हें बदला नहीं जा सकता। बदलने वाली चीज तो हमारा मन है। फिर क्यों ने हम उसे बदलें। गीता कहती है, ‘मनुष्य अपने मन की मलीनता को हटाकर समभाव ग्रहण करे, जिससे उसके विचारों को दृष्टिकोण सीमितता से हटकर व्यापक बने। इसी में विश्वकल्याण निहित है।’

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