बेपरवाह मस्ताना जी की रहमत से चार के चौदह बने

Mastana ji

सरसा। प्रेमी गोबिन्द मदान सरसा शहर (हरियाणा) से परम पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के एक अद्भुत करिश्मे का इस प्रकार वर्णन करता है:-
मार्च 1960 में होली वाले दिन की बात है बेपरवाह जी ने मुझे हुक्म फरमाया, नानक लांगरी को साथ लेकर तीन हजार रुपया डेरे में से ले लो और दिल्ली जाओ। वहां से दो शामियाने बने बनाए खरीद कर ले आओ। दो अप्रैल को मस्तानी मौज का जन्म दिन बड़ी धूम-धाम से मनाया जाएगा। 18’गुणा36′ फुट के बड़े दो शामियाने स्टेज पर लगाएंगे।” शहनशाह जी के हुक्मानुसार मैं और नानक लांगरी सुबह पहली बस चढ़कर दिल्ली चले गए। उस समय दिल्ली में हमारी कपड़े की दुकान थी। मेरे बड़े भाई जै दयाल मदान उस दुकान पर रहते थे। वहां पहुंच कर उनसे सलाह की कि शामियानों के लिए अच्छा व मजबूत कपड़ा खरीदा जाए ताकि दरबार के पैसों का नुकसान न हो। आढ़त वाली दुकान पर बुधु शाह दलाली का काम करता था। उसका भाई कमला मार्किट में शामियानों का ही काम करता था, नए शामियाने बनाता व बेचता था। हम उसके पास चले गए।

 उसने सलाह दी कि तुम बने बनाए शामियाने न खरीदो क्योंकि इनमें रस्सियां, नवार व दसूती पुरानी लगी होती है, जिसको नया रंग किया होता है। तुम अगर सामान खरीद कर बनाओगे तो दो की बजाए इस रकम से चार बन जाएंगे। उसकी राय अनुसार हमने चार शामियानों का कपड़ा व जरूरत का सामान खरीद लिया। इस सारे सामान पर दो हजार आठ सौ नब्बे रुपये खर्च हुए। हम सामान लेकर सरसा दरबार में आ गए। जब बेपरवाह मस्ताना जी महाराज को कपड़ा दिखाया तो शहनशाह जी ने वचन फरमाए ‘‘यह बने-बनाए लेने थे क्योंकि दो अप्रैल को हमें इनकी जरूरत है। दस-पंद्रह दिन का समय है। अगर अब कपड़ा लाए हो तो तुम्हारी जिम्मेवारी है कि दो अप्रैल से पहले-पहले शामियाने तैयार करवाएं।’’ हमने हाथ जोड़कर विनती की शहनशाह जी तैयार तो आपजी ने ही करवाने हैं। हमारी जो ड्यूटी लगी है हम पूरी निभाएंगे। अभी टेलर मास्टर लेने जाते हैं। बाग वाली तरफ गेट के बाहर एक बड़ा कमरा था। उसे खाली करवा दिया गया। हम शहर में से आठ टेलर मास्टर मशीनों सहित लेकर दरबार में आ गए। उन टेलर मास्टरों के हैड मास्टर बदरी प्रसाद जी थे। पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने हुक्म फरमाया ‘‘हर रोज शाम को सात बजे शमियानों का जितना काम हो जाए उसकी रिपोर्ट हमें दी जाए।’’

पहले दिन हमने दर्जियों को विनती की कि कपड़े के निचली तरफ बढ़िया डिजाइन तैयार करो। सात बजे सच्चे पातशाह जी आएंगे, उन्हें दिखाना है। शाम तक शामियाने का निचला भाग चार रंगों के डिजाइन (लाल, पीला, हरा व नीला) से तैयार किया गया। सात बजे बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के आने पर उनको दिखाया गया। डिजाइन देखकर प्यारे सतगुरु बहुत खुश हुए व वचन फरमाया, ‘‘वंझ भैणेयां! इतना अच्छा डिजाइन बनाया। इस प्रकार उस दिन एक शामियाना तैयार हो गया। सच्चे पातशाह जी ने उसी समय मोहन लांगरी को बुलाया तथा हुक्म दिया, ”इन टेलर मास्टरों के लिए हलवा बनाकर लाओ।” जब हलवा लाया गया तो शहनशाह जी ने अपने पवित्र कर-कमलों से सारे टेलर-मास्टरों को प्रसाद दिया। प्रसाद खाकर टेलर मास्टर तो मस्ती में झूमने लगे। वह सारी रात तथा सारा दिन काम पर लगे रहे। दूसरे दिन शाम तक दो शामियाने और तैयार कर दिए गए।

तीसरे दिन शाम को फिर विनती करके सच्चे पातशाह जी को शामियाने दिखाए परम दयालु सतगुरु जी ने मोहन लाल लांगरी को हुक्म किया ‘‘इनको खोआ लाकर खिलाओ।’’ जब टेलर-मास्टर हुक्म का प्रसाद खाते गए तभी मस्तो मस्त हो गए। न दिन को टिक पाते, न रात को चौथे दिन दो और शामियाने तैयार कर दिए गए। इसी तरह चार दिनों में पांच शामियाने तैयार हो गए। शाम को वाली दो जहान जब शामियाने देखने के लिए आए तो पूछा, ‘‘कितने तैयार हो गए ?’’ हमने कहा, शहनशाह जी पांच तैयार हो गए। शहनशाह जी ने फरमाया, ‘‘तुम तो कहते थे कि चार का कपड़ा है, पांच कैसे बन गए ?’’ हमने विनती की, साईं जी इस रहस्य को तो आपजी ही जानते हो। परन्तु दो-तीन शामियानों का कपड़ा और बाकी पड़ा है।

उस दिन फिर बेपरवाह जी के हुक्म से दर्जियों को प्रसाद मंगवाकर खिलाया गया। वे फिर मस्तो मस्त होकर काम में जुट गए। पांचवें दिन दो शामियाने और तैयार कर दिए तथा कुल सात शामियाने बन गए। उसी तरह शाम को सात बजे शहनशाह जी दर्जियों का काम देखने के लिए आए। हमने विनती की, सार्इं जी। यह क्या हो रहा है ? इस पर सर्व-सामर्थ सतगुरु जी ने टेलर मास्टर, नानक लांगरी तथा मदान को फरमाया, “बई। बोलो, कोई मां तैयार कर देगी। प्रसाद हर रोज दिया जाता है, जिससे टेलर मास्टर मस्तो मस्त रात-दिन काम करने में लगे रहते हैं।” छठे दिन दो और शामियाने तैयार हो गए। यानि कुल नौ शामियाने बन चुके थे। डेरे में बड़ी हैरानी हो रही थी कि कपड़ा कहां से आता है ? जब शहनशाह जी आते तो देखकर फरमाते “बई ! यह तो बदरी व सोहन जाहिरा करामात दिखा रहे हैं या नानक लांगरी।’’ हम स्वयं बड़े अचम्भे में थे। जब सातवें दिन बेपरवाह जी आए तो दो शामियाने और तैयार हो गए। उस दिन भी प्रसाद देकर शहनशाह जी चले गए।

आठवें दिन पूजनीय बेपरवाह मस्ताना महाराज बाहर आए तो तेरह शामियाने बन चुके थे। सच्चे पातशाह जी ने फरमाया, ‘‘बस करो। शामियानों के लिए कपड़ा मंगवाया था, तेरह शामियाने बन चुके हैं तथा अभी और कपड़ा बाकी बचा पड़ा है।’’ फिर अंतर्यामी दातार जी फरमाने लगे, ‘‘तुम तो कृष्ण भगवान वाला काम करते हो। कौरव द्रोपदी को सभा में नग्न करने के लिए साड़ी खींचते गए वे (कृष्ण जी)बढ़ाते गए चीर खत्म नहीं हुए। तुम वह काम न करो। क्यों ? करामात दिखाने का हुक्म नहीं है।’’ नौवें दिन आए तो चोजी सतगुरु जी ने पूछा, ‘‘यह बने शामियाने कितनी जगह पे आ जाएंगे ? थोड़ी बहुत कमी हुई तो लगाने पर पता चल जाएगा।’’ उस दिन केवल एक तैयार हुआ। पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने हुक्म किया, ‘‘बई ! बस करो। जो कपड़ा बच गया है इसमें से साधुओं के कच्छे, बनियानें, वास्कटें, पाजामे कुर्ते, परने आदि बना दो’’ इस तरह कुल चौदह शामियाने तैयार हो गए व दुनिया भर का कपड़ा बच गया। डेरे में, सारे शहर में तथा बाहर के डेरों में बड़ा शोर मच गया। हर रोज

सौ-दो-सौ आदमी देखने आते कि चार शामियानों का कपड़ा था तथा चौदह बन गए और अभी भी कपड़ा उतना बचा पड़ा है। तीन-चार दिनों में जो कमी थी, रस्से, छल्ले, नवार वगैरह फिट करके बांस लगाकर तैयार करके 31 मार्च को गोल गुफा के सामने शामियाने लगा दिए गए। पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज जब बाहर आए तो चौदह शामियाने 18’गुणा36′ फुट के नए रंग-बिरंगे डिजाइन के लगे देखकर बहुत खुश हुए व वचन फरमाया, ‘‘संगत सुख पाएगी।’’ जैसे कि दुर्योधन ने हजारों गज साड़ियां खींच डाली थी लेकिन मालिक ने द्रोपदी के चीर को खत्म नहीं होने दिया। कपड़ा और आता गया इसी तरह दो की बजाए चार शामियानों का कपड़ा आया लेकिन पूजनीय बेपरवाह जी की रहमत का कमाल यह हुआ, कि उसमें से 18’गुणा36′ के चौदह शामियाने तैयार हो गए और फिर भी बहुत कपड़ा बाकी बच गया। सतगुरु मालिक सर्व सामर्थ है। उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है।

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