समानता के सच्चे पैरोकार थे डॉ. अंबेडकर

Dr. Bhim Rao Ambedkar

धार्मिक समुदायों के लिए पृथक निर्वाचिका और आरक्षण की मांग की।

डॉ. अंबेडकर (Dr. Bhim Rao Ambedkar) समानता के सच्चे पैरोकार थे। हालांकि उन्हें जब भारत सरकार अधिनियम 1919 तैयार कर रही साउथबोरोह समिति के समक्ष गवाही देने के लिए आमंत्रित किया गया तो उन्होंने सुनवाई के दौरान दलितों एंव अन्य धार्मिक समुदायों के लिए पृथक निर्वाचिका और आरक्षण की मांग की। तब उनकी इस इस मांग की तीव्र आलोचना हुई और उन पर आरोप लगा कि वे भारतीय राष्ट्र एवं समाज की एकता को खंडित करना चाहते हैं। पर सच तो यह है उनका इस तरह का कोई उद्देश्य नहीं था।
उनका असल मकसद इस मांग के जरिए ऐसे रुढ़िवादी हिंदू राजनेताओं को सतर्क करना था जो जातीय भेदभाव से लड़ने के प्रति गंभीर नहीं थे

920 में मुंबई में साप्ताहिक मूकनायक के प्रकाशन की शुरूआत की

इंग्लैंड से लौटने के बाद जब उन्होंने भारत की धरती पर कदम रखा तो समाज में छुआछुत और जातिवाद चरम पर था। उन्हें लगा कि यह सामाजिक कुप्रवृत्ति और खंडित समाज देश को कई हिस्सों में तोड़ देगा। सो उन्होंने हाशिए पर खड़े अनुसूचित जाति-जनजाति एवं दलितों के लिए पृथक निर्वाचिका की मांग कर परोक्ष रुप से समाज को जोड़ने की दिशा में पहल तेज की। अपनी आवाज को जन-जन तक पहुंचाने के लिए 1920 में मुंबई में साप्ताहिक मूकनायक के प्रकाशन की शुरूआत की जो शीध्र ही पाठकों में लोकप्रिय हो गया।

 रुढ़िवाद से ग्रस्त भारतीय समाज को झकझोर दिया

दलित वर्ग के एक सम्मेलन के दौरान दिए गए उनके भाषण से कोल्हापुर राज्य का स्थानीय शासक शाहु चतुर्थ बेहद प्रभावित हुआ और डॉ. अंबेडकर के साथ उसका भोजन करना रुढ़िवाद से ग्रस्त भारतीय समाज को झकझोर दिया। डॉ. अंबेडकर ने मुख्यधारा के महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों को जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति नरमी पर वार करते हुए उन नेताओं की भी कटु आलोचना की जो अस्पृश्य समुदाय को एक मानव के बजाए करुणा की वस्तु के रुप में देखते थे। ब्रिटिश हुकूमत की विफलताओं से नाराज अंबेडकर ने अस्पृश्य समुदाय को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए एक ऐसी अलग राजनैतिक पहचान की वकालत की जिसमें कांग्रेस और ब्रिटिश दोनों का कोई दखल न हो।

  • दरअसल अंबेडकर ही एकमात्र राजनेता थे जो छुआछुत की निंदा करते थे।
  • जब 1932 में ब्रिटिश हुकूमत ने उनके साथ सहमति व्यक्त करते हुए अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने की घोषणा की तब महात्मा गांधी ने इसके विरोध में पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया।
  • यह अंबेडकर का प्रभाव ही था कि गांधी ने अनशन के जरिए रुढ़िवादी हिंदू समाज से सामाजिक भेदभाव और अस्पृश्यता को खत्म करने की अपील की।
  • रुढ़िवादी हिंदू नेताओं, कांग्रेस के नेताओं और कार्यकतार्ओं तथा पंडित मदन मोहन मालवीय ने अंबेडकर और उनके समर्थकों के साथ यरवदा में संयुक्त बैठकें की।

भाषण में अंबेडकर ने कांग्रेस की नीतियों की जमकर आलोचना की।

8 अगस्त 1930 को उन्होंने एक शोषित वर्ग के सम्मेलन के दौरान अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा और कहा कि ह्यहमें अपना रास्ता स्वयं बनाना होगा और स्वयं राजनीतिक शक्ति शोषितों की समस्याओं का निवारण नहीं हो सकती। उनको शिक्षित करना चाहिए, उनका उद्धार समाज में उनका उचित स्थान पाने में निहित है। उनको अपना रहने का बुरा तरीका बदलना होगा। उनको शिक्षित होना चाहिए। एक बड़ी आवश्यकता उनकी हीनता की भावना को झकझोरने और उनके अंदर दैवीय असंतोष की स्थापना करने की है, जो सभी ऊंचाइयों का स्रोत है। इस भाषण में अंबेडकर ने कांग्रेस की नीतियों की जमकर आलोचना की।

अरविंद जयतिलक

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