हरियाणा सरकार के सरकारी स्कूलों में बेहतरीन शिक्षा के दावों की खुल रही कलई

Haryana Govt School

न नई पुस्तकें मिल रहीं और न पुरानी, बच्चे कैसे करेंगे पढ़ाई?

  • सरकारी स्कूलों में उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं पुस्तकें
  • शिक्षा विभाग ने गत दो वर्षों से नहीं कराई उपलब्ध

गुरुग्राम(सच कहूँ/संजय मेहरा)। प्रदेश के निजी स्कूलों में जुलाई तक विद्यार्थियों को बिना ड्रैस के जाने पर तो सरकार ने छूट देने के आदेश दे दिए हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों में पाठ्य पुस्तकों को लेकर अभी तक सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है। प्रदेश के सरकारी स्कूलों में इस समय पुस्तकों की किल्लत है। पहले बच्चे अपनी सीनियर कक्षाओं के बच्चों से पुस्तकें लेकर पढ़ लेते थे, लेकिन अब वह भी नहीं मिल रही। यानी अब पुरानी पुस्तकें हैं नहीं, नई मिल नहीं पा रही, ऐसे में बच्चे कैसे अपनी पढ़ाई शुरू करें।

एक अप्रैल से शैक्षणिक सत्र 2022-23 की शुरूआत हो गई है। बच्चे भी स्कूलों में जाने शुरू हो गए हैं। बात करें पहली से आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों की तो उनके पास पुस्तकें ही नहीं हैं। पहले जहां सत्र शुरू होने से पहले ही स्कूलों में किताबें शिक्षा निदेशालय की ओर से पहुंचा दी जाती थी, वह ट्रेंड धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। अब बच्चों को किताबों का इंतजार ही करना पड़ता है। शिक्षा का अधिकार (आरटीई) के तहत पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक पुस्तकें सरकार द्वारा नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाती हैं। गत दो वर्षों से शिक्षा निदेशालय ने पुस्तकें स्कूलों को नहीं भेजी हैं। ऐसे में सीनियर कक्षा के छात्रों से ही पुस्तकें लेकर जूनियर कक्षा के छात्र पढ़ाई कर रहे थे। पुस्तकें दो साल में खराब हो जाती हैं। फट जाती हैं। ऐसे में किताबें स्कूलों में वापस जमा भी नहीं हो पाई। कोरोना महामारी के कारण भी सब कुछ प्रभावित रहा।

पैसे भी सब बच्चों को नहीं मिले

सरकार के निर्देशानुसार शिक्षा निदेशालय ने प्रदेश के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के बैंक खातों में पुस्तकें खरीदने के लिए 250-300 रुपये जमा कराने की शुरूआत की गई है। यह राशि बैंक खातों में गड़बड़ी के चलते सभी बच्चों के खातों में जमा नहीं हो पाई। हालांकि इतनी सी राशि में भी सभी पुस्तकें नहीं खरीदी जा सकती है।

बाजारों में पुस्तकें भी नहीं मिली

पहली से आठवीं कक्षा तक की पुस्तकें सरकार द्वारा बच्चों को नि:शुल्क दी जाती हैं। ऐसे में प्राइवेट पुस्तक प्रकाशक इन पुस्तकों को छापने की रिस्क नहीं लेते। उन्हें लगता है कि पुस्तकों की बिक्री नहीं हो पाएगी। सरकार द्वारा दी गई राशि से जब बच्चे बाजारों से पुस्तकें लेने गए तो पुस्तकें स्टॉक में नहीं थी। यानी बाजारों में दुकानों पर पुस्तक उपलब्ध नहीं हो सकी।

मजबूरी में निकलवाने पड़े प्रिंट

बीते सत्र में भी पुस्तकों को लेकर काफी मारामारी थी। इस दौरान एक बीच का रास्ता स्कूलों द्वारा निकाला गया। अभिभावकों को पीडीएफ फॉरमेट में पूरे पाठ्यक्रम की सामग्री स्कूलों द्वारा उपलब्ध कराई गई। उसके प्रिंट निकलवाकर बच्चों द्वारा स्कूलों में लाया गया, तब उनकी पढ़ाई हुई। अब नया सत्र फिर से शुरू हो चुका है, लेकिन पाठ्य पुस्तकें अभी भी उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में शिक्षक बोर्ड पर लिखकर या फिर मौखिक तौर पर पढ़ाई करवा रहे हैं। किताबें नहीं होने के कारण बच्चों की समझ में भी कुछ खास नहीं आ रहा। एक तरह से बच्चों-शिक्षकों का स्कूलों में टाइम पास ही हो रहा है।


छात्रों को पुस्तकें नहीं मिलने के कारण पढ़ाई बाधित हो रही है। सरकार को परिणाम तो बेहतर चाहिए, लेकिन सुविधाएं देने में गंभीरता नहीं दिखाई जा रही। बच्चों के पास किताबें नहीं हैं, ऐसे में उन्हें कैसे पढ़ाया जाए। दो साल हो चुके हैं, किताबें नहीं मिल पाई हैं।
-दुष्यंत ठाकरान, जिला प्रधान राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ, गुरुग्राम


पहली से आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों का पूरा डाटा शिक्षा निदेशालय को समय से भेजा जा चुका है, ताकि पाठ्य पुस्तकें आ सकें। अभी तक निदेशालय की ओर से स्कूलों में पुस्तकें नहीं आई हैं। कब आएंगी, हमें इसकी भी जानकारी नहीं है। पुरानी किताबों को लेकर शिक्षकों को निर्देश दिए गए हैं कि वे बच्चों से मंगवाएं।
-शशि बाला अहलावत, जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी, गुरुग्राम


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