जन्म से नहीं दोनों हाथ फिर भी कर रही कमाल

Asian Para Games
शीतल शुरुआत में रोजाना 50-100 तीर चलाती थी। जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, ये गिनती 300 तक पहुंच गई

डेढ़ वर्ष पूर्व जब शीतल ने तीरंदाजी शुरू की थी तब वह दुनिया की पहली बिना हाथों की महिला तीरंदाज बनी थी, लेकिन अब पूरी दुनिया में कुल छह बिना हाथ के तीरंदाज आ चुके हैं।

चीन में आयोजित एशियन पैरा गेम्स (Asian Para Games) में तीन मेडल जीतने वाली 16 साल की दिव्यांग शीतल देवी जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ की रहने वाली हैं। वर्ल्ड आर्चरी के मुताबिक शीतल देवी इंटरनेशनल लेवल पर प्रतिस्पर्धा करने वाली बिना हाथों वाली पहली महिला तीरंदाज हैं। शीतल देवी ने मिक्स्ड डबल्स और सिंगल्स में गोल्ड मेडल जीता है जबकि महिला डबल्स में सिल्वर मेडल हासिल किया है।

किश्तवाड़ (जम्मू कश्मीर) जिले के दूरदराज गांव लोई धार की शीतल देवी के जन्म से ही दोनों हाथ नहीं है। आर्चर शीतल देवी का जन्म फोकोमेलिया के साथ हुआ था। यह एक गंभीर बीमारी है। इसमें अंग अविकसित होते हैं। शीतल ने बताया कि मेरे माता-पिता को हमेशा मुझ पर भरोसा था। गांव में मेरे दोस्तों ने भी साथ दिया। एक चीज मुझे पसंद नहीं आई। जब लोगों को पता चलता था कि मेरे हाथ नहीं हैं, तो उनके चेहरे का भाव बदल जाता था। अब ये मेडल साबित करते हैं कि मैं खास हूं। ये मेडल सिर्फ मेरे लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के हैं।

शीतल देवी का आर्चर के तौर पर सफर साल 2021 में उस समय शुरु हुआ, जब उन्होंने किश्तवाड़ में भारतीय सेना के एक युवा कार्यक्रम के लिए नामांकन किया। अपनी एथलेटिक्स प्रतिभा के कारण शीतल ने स्काउट्स का ध्यान आकर्षित किया। इसके बाद आर्मी ने शीतल के लिए कृत्रिम हाथ के लिए बेंगलुरु में मेजर अक्षय गिरीश मेमोरियल ट्रस्ट से संपर्क किया। ट्रस्ट ने स्टोरीटेलिंग प्लेटफॉर्म से संपर्क किया। हालांकि प्रोस्थेटिक फिट नहीं हुआ। ऐसा लगने लगा कि शीतल का करियर शुरु होने से पहले ही खत्म हो जाएगा। लेकिन शीतल का पेड़ों पर चढ़ना उसके करियर के लिए फायदेमंद साबित हुआ।

जब स्पोर्ट्स फिजियोथेरेपिस्ट श्रीकांत अयंगर ने उसका मूल्यांकन किया तो पाया कि शीतल के शरीर का ऊपरी हिस्सा बहुत मजबूत है। उन्हें टेस्ट में 10 में से 8.5 अंक मिले। अयंगर ने तीरंदाजी, तैराकी और दौड़ का सुझाव किया। इसके बाद ये फैसला किया गया कि शीतल देवी ने कटरा में श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में ट्रेनिंग लेंगी। कोच अभिलाषा चौधरी और कुलदीप वेदवान ने कभी तीरंदाज को बिना हथियार के ट्रेनिंग नहीं दी थी। शीतल शुरुआत में रोजाना 50-100 तीर चलाती थी। जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, ये गिनती 300 तक पहुंच गई। ट्रेनिंग के 6 महीने बाद शीतल ने वो कर दिखाया, जिसका सबको इंतजार था। शीतल ने सोनीपत में पैरा ओपन नेशनल्स में सिल्वर मेडल हासिल किया। Asian Para Games

शीतल देवी के पिता खेतों में काम करते हैं। शीतल ने बताया कि मेरे पिता पूरे दिन चावल और सब्जी के खेत में काम करते थे। जबकि मां परिवार की 3-4 बकरियों की देखभाल करती थी। किसी तरह से घर का खर्च चलता था। बचत करना मुश्किल था।