‘गुड गर्वनेंस’ की जड़ में जमा ‘बेड करप्शन’

Corruption

देश विकास के पथ पर अग्रसर हो रहा है लेकिन इस विकास की बुनियाद में भ्रष्ट तंत्र भी फल फूल रहा है। इस तरफ ध्यान न दिया जाना एक गंभीर बात है। यह विकास को खोखला करने वाला कदम है। हाल ही में भ्रष्टाचार के दो केस चर्चा में रहे,जिसने सबका ध्यान आकर्षित किया। पहला मामला है मध्यप्रदेश का, जहां जबलपुर में लोकायुक्त की विशेष अदालत ने गैर कानूनी तरीके से आय से 208.58 प्रतिशत अधिक संपत्ति इकट्ठी करने वाले जबलपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) के पूर्व कार्यपालन मंत्री और भू अर्जन अधिकारी (इंजीनियर) जी एन सिंह को पांच साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई तथा 1.30 करोड़ रुपए का जुर्माना भी लगाया। आरोपी को अर्थदंड की राशि अदा नहीं करने पर दो साल का अतिरिक्त कारावास भुगतना पड़ेगा।

न्यायालय ने अनुपातहीन संपत्ति को राजसात करने का भी आदेश दिया। इसी तरह का दूसरा केस सामने आया,झारखंड से,जहां पूर्व भू राजस्व मंत्री दुलाल भुइयां को आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने पांच साल की कारावास की सजा सुनाई तथा साथ ही दस लाख का जुर्माना भी लगाया। जुर्माना अदा नहीं करने की स्थिति में एक साल की अतिरिक्त कारावास की सजा सुनाई जाएगी। इस मंत्री पर आय से एक करोड़ से अधिक संपत्ति अर्जित करने का मामला सालों पहले दर्ज हुआ था। जिसपर अब फैसला आया है। इस सजा से कोर्ट ने अच्छा संदेश दिया है, लेकिन दूसरी तरफ देश में भ्रष्ट तंत्र की भयावह स्थिति को भी उजागर किया है।

कभी किसी बाबू के पास करोड़ों को संपत्ति मिलती है, तो कभी किसी अफसर, मंत्री के पास। यह सरकारी तंत्र के दुरुपयोग का सबसे घिनौना खेल है। अब सवाल यह है आखिर इतना कुछ लूटे जाने के बाद भी, भ्रष्टाचार पर लगाम लगा पाने में सरकारी तंत्र फेल क्यों हो जाता है। नि:सन्देह बढ़ता भ्रष्टाचार विकास की राह में एक अवरोधक है, लेकिन दुर्भाग्य से इसके उन्मूलन के लिए सरकारी प्रयास काफी कमजोर है। सरकार जहां ‘गुड गवर्नेंस’ की बात करती है उसी ‘गुड गवर्नेंस’ की जड़ में ‘बैड करप्सन’ का दीमक लगा हुआ है जो डेवलपमेंट और देश की छवि को कमजोर कर रहा है।

यह चिंतनीय विषय है कि हम जहां एक और विकसित राष्ट्र और न्यू इंडिया का सपना देख रहे है लेकिन दूसरी और भ्रष्टाचार खत्म करने के कोई ठोस कार्य नहीँ कर पाये है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो और अन्य संस्थाएं केवल भ्रष्टाचार की शिकायत पर ही कार्रवाई को अंजाम देती है जबकि जरूरत है सरकारी कार्यो की सतत निगरानी की। अब सरकार को भ्रष्टाचार रोकने के त्वरित कार्य करते हुए निम्न कदम उठाने चाहिए। घूसखोरी पर लगाम लगाने के लिए कुछ पुख्ता कार्य किए जा सकते है।पहला, सरकार को लोकपाल और लोकायुक्त को अधिक सशक्त बनाकर स्वतंत्र रूप से कम करने का अधिकार देना चाहिए, ना कि केवल शिकायत मिलने पर ही करवाई हो। जिससे बड़े पैमाने पर भ्रष्ट लोगों पर निगरानी का कार्य आसान हो सके।

दूसरा, पब्लिक सेक्टर में सूक्ष्म स्तर पर अधिक भ्रष्टाचार है, उसके लिए अलग से निगरानी कमेटी बने ताकि इंफ्राटेक्चर के कार्यो में पारदर्शिता हो सके। तीसरा,टेक्नोलॉजी के सही इस्तेमाल से ‘चेक एंड बैलेंस’ का ऐसा सिस्टम विकसित करना होगा जिससे भ्रष्टाचार को पकड़ने में आसानी हो। चौथा,सरकारी कार्य में ट्रांसपेरेंसी हो जैसे कि कुछ जगह टेंडर्स के लिए आॅनलाइन फीडिंग का कार्य हो रहा है।

ऐसे कामों को व्यापक बनाया जाये। पांचवां, टर्न अराउंड टाइम यानि किसी कार्य को करने के लिए समयसीमा तय हो और उस समयसीमा में ही वह कार्य पूर्ण हो ऐसा सिस्टम बनाना होगा। छठा, रिश्वत लेने और देने वाले को सख्त और त्वरित सजा का प्रावधान बने। अभी तक ज्यादातर मामलों में सस्पेंसन होता है जो बाद में बहाल हो जाते है, इसलिए कठोर सजा होनी चाहिए। इन तमाम प्रयासों से भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने में कामयाबी मिल सकती है। सरकार को केवल विल पावर के साथ भ्रष्टाचार उन्मूलन को लेकर त्वरित गति से कार्य करने की आवश्यकता है।

अगर गम्भीरता नहीं रहेगी, तो फिर इसे रोक पाना मुमकिन नहीं होगा। बड़े स्तर पर, जो जिम्मेदार है, वो भ्रष्ट तंत्र में शामिल ना रहे यह सुनिश्चित किया जाना बहुत जरूरी है। क्योंकि कई दफा उच्च स्तर की सह से ही घूस का खेल खेला जाता है। हर स्तर पर जो पतली गलियां है उनपर पुख्ता तरीके से नजर रखनी होगी।
-नरपत दान चारण

 

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