अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा प्राचीनतम भटनेर दुर्ग

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जितना इतिहास शानदार, उतनी ही हालत जर्जर

हनुमानगढ़ (सच कहूँ न्यूज)। देश के सबसे पुराने किलों में शामिल हनुमानगढ़ का भटनेर किला अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। 1726 साल पहले स्थापित हनुमानगढ़ का भटनेर किला देश के सबसेपुराने किलों में शामिल है। किवदंतियों के अनुसार इस किले का निर्माण श्रीराम के भाई भरत ने करवाया था मगर ज्ञात इतिहास के अनुसार इस किले की स्थापना 291 ईस्वी में बताई जाती है। मंगलवार को जीतने के कारण इस किले का नाम भटनेर के बदलकर हनुमानगढ़ कर दिया गया था मगर सबसे पुराने और मजबूत किलों में शामिल भटनेर आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। हिन्दुस्तान पर जितने भी विदेशी आक्रांताओं ने हमले किये वो सबसे पहले इसी किले ने झेले थे।

यह किला हिन्दुस्तान का प्रवेश द्वार कहा जाता था। विलुप्त सरस्वती नदी और वर्तमान की घग्घर नदी के मुहाने पर करीब 1726 साल पूर्व स्थापित यह किला सबसे पुराना किला तो है ही साथ ही यह सबसे मजबूत किलों में भी शामिल रहा है। वैसे तो कहा जाता है कि श्रीराम के भाई भरत ने इस किले की स्थापना की थी मगर ज्ञात इतिहास के अनुसार गजनी से लाहौर होते हुए भटनेर आए भूपत भाटी ने इस किले की स्थापना की थी और इसी भाटी परिवार ने बाद में जैसलमेर में सोनार किले की नींव रखी थी। तैमूर लंग ने भी अपनी किताब में लिखा है कि उसने इससे मजबूत किला पूरे हिन्दूस्तान में नहीं देखा है।

सार-संभाल के अभाव में हो रही दुर्गति

इसका वर्णन उसने अपनी किताब में भी किया है। 52 बीघों में फैले 52 बुर्जांे के इस किले का इतिहास जितना शानदार है आज इसकी हालत उतनी ही जर्जर है। किले के आसपास आबादी बस चुकी है और इसके बुर्ज जर्जर होकर कभी भी गिरने की स्थिति में है और पुरातत्व विभाग भी इस किले के रख-रखाव पर करोड़ों का बजट खर्च कर चुका है जो कहीं दिखाई नहीं देता। जैसलमेर के राजा भूपत सिंह की ओर से स्थापित इस किले के साथ उन्होंने पंजाब के भटिण्डा और हरियाणा के सिरसा में भी किले स्थापित किए थे और इसी कारण भाटी राजा होने के कारण ही इस किले का नाम भटनेर और भाटी होने के कारण ही पंजाब के किले का नाम भटिण्डा पड़ा।

भटनेर ने झेले सबसे पहले विदेशी आक्रमण

इस किले से पंजाब के भटिण्डा और हरियाणा के सिरसा तक एक बहुत बड़ी भूमिगत सुरंग थी और हिन्दूस्तान पर हुए प्रत्येक विदेशी आक्रमण को सबसे पहले इसी किले ने झेला था।

बल्लियों का सहारा

वर्तमान में इस किले में देखने को कुछ भी नहीं बचा है और बल्लियों के सहारे किले की दीवारों और छतों को सहारा दिया गया है। ऐसे में अगर कोई विदेशी या देशी पर्यटक भूला-भटका यहां आ भी जाता है तो उसको निराशा ही हाथ लगती है। इसी किले के साथ ही हनुमानगढ़ शहर का इतिहास भी जुड़ा हुआ है।

पर्यटन के नक्शे पर भी अनदेखी

अब इसे विडम्बना ही कहेंगे कि देश के सबसे पुराने किलों में शुमार होने के बावजूद यह किला आज तक पर्यटन के नक्शे पर उभरकर नहीं आ सका और ना ही इसकी सार-संभाल के प्रति भी कोई सरकार या पुरातत्व विभाग सजग है। ऐसे में दिन-प्रतिदिन जर्जर होती जा रही इस प्राचीन धरोहर के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

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