Hello Doctor: लाइलाज बीमारी के इलाज को भी साध्य कर रहा ‘आयुर्वेद’

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  • विश्व स्जोग्रेन सिंड्रोम दिवस: 30 मरीजों का सही दिशा में चल रहा इलाज

  • आयुष विश्वविद्यालय के डॉ. राजा सिंगला के इलाज से आधा दर्जन मरीज ठीक

  • ऑटोइम्यून रोग है स्जोग्रेन सिंड्रोम, आयुर्वेद में इलाज संभव: डॉ.

  • स्जोग्रेन सिंड्रोम बीमारी में मुंह से लार व आंखों से सूख जाते हैं आंसू

कुरुक्षेत्र। स्जोग्रेन सिंड्रोम का नाम जब आता है तो लाइलाज बीमारी का आभास होता है लेकिन आयुर्वेद ने इस लाइलाज बीमारी के इलाज को भी साध्य कर दिया है। स्जोग्रेन सिंड्रोम ऐसी बीमारी है जिसमें व्यक्ति के आंखों से आंसू व मुंह में लार बनना बंद हो जाती है। ऐसे व्यक्ति की आंखों से आंसू नही आते और मुंह में लार न बनने के कारण खाने को तरल पदार्थ के साथ गटकना पड़ता है। डॉक्टर इस बीमारी को लाइलाज बीमारी बताते हैं लेकिन श्री कृष्णा आयुष विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र के पंचकर्म विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजा सिंगला के इलाज से कई मरीजों की तो ठीक होने के बाद दवाई भी बंद की जा चुकी है और 30 मरीजों का इलाज चल रहा है। वहीं आज के दिन 23 जुलाई को विश्व स्जोग्रेन सिंड्रोम दिवस के रूप में मनाया जाता है।

मुंह, आंख, त्वचा, नाक या ऊपरी श्वास नलिका में आ जाता है रूखापन

सच कहूँ ब्यूरो से विशेष बातचीत में डॉ. राजा सिंगला ने बताया कि स्जोग्रेन सिंड्रोम इम्यून सिस्टम से जुड़ी हुई बीमारी है। यह एक ऑटोइम्यून स्थिति है, इसका अर्थ है कि आपका इम्यून सिस्टम गलती से अपने शरीर के अन्य भागों को प्रभावित करता है। ऐसा तब होता है जब वाइट ब्लड सेल स्लाइवा ग्लैंड्स, आंसू ग्रंथियों और अन्य एक्सोक्राइन ऊतकों में जाकर उन पर असर डालते हैं, जिससे हमारे शरीर में आंसू और स्लाइवा के उत्पादन में कमी आती है। यह रोग होने से मुंह, आंख, त्वचा, नाक या ऊपरी श्वास नलिका में रूखापन आ जाता है।

स्जोग्रेन सिंड्रोम अन्य संयोजी ऊतकों की बीमारियों के साथ एक्सोक्राइन ग्रंथियों की सूजन से जुड़ा हुआ है जिससे गठिया की समस्या भी रहती है। यही नही शरीर के अन्य भागों जैसे जोड़ों, फेफड़ों, किडनी आदि को भी इससे नुकसान होता है। डॉ. सिंगला ने बताया कि उन्होने स्जोग्रेन सिंड्रोम के मरीजों को आयुर्वेदिक कषाय, पंचकर्म चिकित्सा, कवल गण्डूष, आॅयल पुलिंग और धूम वाष्प स्वेदन व आयुर्वेदिक औषधियों से संस्कारित गौ घृत से ठीक किया है।

इस बीमारी से ग्रसित होने के बाद मरीज को चाहिए कि ज्यादा पानी पिएं, ज्यादा न चलें, दही, उड़द की दाल सहित ठंडी चीजों का सेवन न करें।

महिलाओं में ज्यादा होती है यह दिक्कत: सिंगला

डा. राजा सिंगला ने बताया कि स्जोग्रेन सिंड्रोम की समस्या पुरुषों की बजाय महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलती है और यह रोग 40 साल की उम्र के बाद ही शुरू होता है। स्जोग्रेन सिंड्रोम के मुख्य लक्षणों में आंखों में जलन, खुजली होती है। मुंह की लार बननी बंद हो जाती है। इसके साथ ही कुछ भी निगलने यहां तक की बोलने में भी समस्या होती है।

इसके अलावा जोड़ों में दर्द, सूजन और जकड?, त्वचा पर रैशेस और रूखी त्वचा, लगातार सुखी खांसी, लंबे समय तक थकान होना मुख्य लक्षण हैं। इस बीमारी से ग्रसित होने के बाद मरीज को चाहिए कि ज्यादा पानी पिएं, ज्यादा न चलें, दही, उड़द की दाल सहित ठंडी चीजों का सेवन न करें।

कुछ दिनों के बाद ही मिला अच्छा परिणाम: संतोष

शाहाबाद निवासी 47 वर्षीय शिक्षिका संतोष हुड्डा का कहना है कि 2006 में उसे बुखार आया और आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा। डॉक्टर से इलाज शुरू करवाया तो कोई आराम नही आया। इन वर्षों के दौरान उसने चंडीगढ पीजीआई स्थित कई बडे अस्पतालों में अपना इलाज करवाया। इसी दौरान एक चिकित्सक द्वारा उसकी आंखों के सुराखों को बंद करने के लिए स्टड भी डाले गए ताकि आंखों में डाली जाने वाली दवाई मुंह तक न जाए।

इस दौरान उन्हे बड़ा नंबर चश्मा लग गया और आंखों की रोशनी कम होने लगी। सालों बीत जाने के बाद उसे कोई आराम नही आया। 2021 में उसने श्री कृष्णा आयुष विश्वविद्यालय के पंचकर्म विभाग के डॉक्टर राजा सिंगला से इलाज शुरू करवाया। आयुर्वेदिक इलाज से उसे 20वें दिन आराम महसूस होने लगा। संतोष ने बताया कि अब उसकी आंखों से आंसू भी आते हैं और मुंह में लार भी बन रही है।

आयुर्वेद के प्रति बढ़ा लोगों का विश्ववास : कुलपति

श्रीकृष्णा आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बलदेव ने कहा कि राजकीय आयुर्वेदिक अस्पताल में कई बड़ी असाध्य बीमारियों का इलाज डॉक्टरों द्वारा किया जा रहा है। इससे देश व प्रदेश के नागरिकों का आयुर्वेदिक चिकित्सा के प्रति अटूट विश्ववास बना है। आने वाले समय में आयुर्वेदिक अस्पताल में ओर मूलभूत सुविधाओं को बढ़ाने के साथ ही सिद्द्धा, यूनानी और होम्योपेथी में भी इलाज शुरू किए जाने की योजना है।

चल फिर भी नहीं सकते थे राजस्थान के राजेंद्र

श्री कृष्णा आयुष विश्वविद्यालय में इलाज के लिए पहुंचे राजस्थान के भरतपुर जिला निवास राजेंद्र ने बताया कि कुछ सालों पहले उसको यह दिक्कत शुरू हुई थी। पहले उसकी आंखों से आंसू आने बंद हुए। इसके बाद उसके मुंह में लार नही बन रही थी। कुछ ही समय के बाद उसके जोड़ों में दर्द रहना शुरू हो गया और एक दिन ऐसा आया कि वह बैड पर ही रहने लगे। उससे चला-फिरा भी नही जा रहा था।

इस दौरान वे एम्स के अलावा अन्य बड़े संस्थानों में इलाज के लिए गए लेकिन कोई फायदा नही मिला। इसके बाद कुछ माह पहले उसने श्री कृष्णा आयुष विश्वविद्यालय से अपना इलाज शुरू करवाया। यहां आयुवे?दक इलाज से वह ठीक हैं। अब वे स्वयं चलकर अपनी डयूटी पर जाते हैं। आयुुर्वेदिक इलाज से उसे दोबारा से जीवन मिला है।

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