दीवाली से पहले मिलावटखोरी के मार से बचें

Stopping Adulteration
त्योहारी सीजन और यह मिलावटखोरी!

वर्तमान वैश्विक दुनिया का आधार ही बाजार व्यवस्था पर टिका हुआ है। बाजारवाद के इस आधुनिक युग में मनुष्य अपनी दैनिक उपभोग की वस्तुओं की पूर्ति बाजार के माध्यम से करता है। हम अपने दैनिक जीवन में उपभोग योग्य खाद्य पदार्थों मसलन दूध, दही, घी, मिठाई, सब्जी, पनीर, सरसों तेल, चावल, दाल और की खरीदारी स्थानीय दुकान या फिर शहरों में अवस्थित बाजार के माध्यम से करते है। खाद्य पदार्थों के अलावा हम सौन्दर्य प्रसाधन की वस्तुओं साबुन, शैम्पू, हेयर आॅयल, इत्र, कास्मेटिक क्रीम की खरीददारी भी स्थानीय दुकान से करते है।

एक ओर मिलावटी खाद्य पदार्थ जहाँ हमारे स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करते है तो वही दूसरी तरफ सौन्दर्य प्रसाधन में मिलावट से हमारा रुप बिगड़ जाता है और सुन्दर दिखने के बजाय हम और कुरुप दिखने लगते है। शैम्पू एवं हेयर आॅयल में मिलावट के कारण असमय बाल झड़ने की समस्या उत्पन्न हो जाती है तो वही साबुन और कॉस्मेटिक क्रीम में मिलावट हमारे चेहरे की चमक और सुन्दरता को बर्बाद करके छोड़ देता है। खाद्य पदार्थों में मिलावट से समाज के सभी धर्मों एवं वर्गों के उपभोक्ता बुरे तरीके से प्रभावित होते है।

साधारणतया: किसी खाद्य पदार्थों को तब मिलावटी पदार्थों की श्रेणी में रखा जाता है। जिसके उपभोग मात्र से मनुष्य बीमार हो जाता है या अभीष्ट पदार्थ का पोषक तत्व समाप्त होता है या पोषक तत्वों में बड़ी मात्रा में कमी आ जाती है। किसी खाद्य पदार्थ या अन्य जनोपयोगी वस्तुओं में मिलावट के मुख्य दो ही कारण होते है। पहली अवस्था में दुकानदार अधिकतम लाभ कमाने के लोभ से वस्तुओं में मिलावट करता है तो वही मिलावट करने की दूसरी अवस्था तब उत्पन्न होती है, जब बाजार में मांग की मात्रा पूर्ति से अधिक हो जाती है।

हालांकि, दोनों अवस्था में मिलावटखोरों का एकमात्र उद्देश्य मुनाफा कमाना ही होता है। खाद्य पदार्थों में समान्यतया तीन तरह से मिलावट की जाती है। पहला, वे चीजें जिसका इस्तेमाल इंसानों के लिए खतरनाक है। दूसरा, किसी समान में उससे कम कीमत या गुणवत्ता वाले पदार्थ का मिलाया जाना। तीसरा , ऐसी चीजों को मिलाना जो पूरी तरह या आंशिक रुप से उस पदार्थ के बहुमूल्य पोषक तत्वों को कम कर दें। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत मे सबसे ज्यादा मिलावट दूध, खाने के तेल, घी, चीनी, शहद और मसालों में की जाती है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि देश में बेचे जाने वाले 68.7 फीसद दूध और दूध से बने सामान में मिलावट पाई गई है।

यह आश्चर्यजनक तथ्य है कि भारत में सरसों तेल का उत्पादन उसके उपभोग के स्तर से कम है। सरसों तेल को उपभोग स्तर तक पहुंचाने के उद्देश्य से सरसों तेल में व्यापक स्तर पर आजीमोन नामक खतरनाक रसायन की मिलावट की जाती है। खतरनाक रसायन आजीमोन मिलावट युक्त सरसों के तेल के उपयोग से कई तरह की गंभीर बीमारियों का खतरा है। मिलावटखोरी की गंभीर समस्या से भारत को रु-ब-रु कराते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि 2025 तक भारत के 87 फीसद लोगों को मिलावटी खाना खानें के कारण गंभीर बीमारी का सामना करना पड़ सकता है। मिलावटी खाना का सेवन करने से कई तरह की बीमारियों का शिकार मनुष्यों को होना पड़ रहा है। लिवर, पेट में गड़बड़ी, कैंसर, उल्टी, दस्त, जोड़ों में दर्द, ह्दय संबंधी परेशानियाँ एवं फूड प्वाइजनिंग की जड़ मिलावट युक्त खाद्य पदार्थ ही है।

मिलावटी खाना खाने की वजह से कई बार महिलाओं का गर्भपात हो जाता है। इसके अलावा , मानव मस्तिष्क को भी नुकसान पहुंचता है। जो बच्चे लंबे समय तक मिलावटी खानें का सेवन करते है, उनकी सोचने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है। इसके बाद नवम्बर, 2014 में मिलावटी दूध पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को फटकार लगाई। कोर्ट ने एकबार फिर राज्यों से कानून में संशोधन या नया कानून लाए जाने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत नें मिलावट खोरी के सवाल पर सरकार से पूछा था कि सरकार मिलावटखोरी के अपराध के लिए उम्रकैद की सजा का प्रावधान लाने के बारे में सोच रही है या नहीं? लेकिन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को कोई जवाब देना उचित नहीं समझा।

फिर अगस्त, 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने मिलावट को गंभीर मुद्दा बताते हुए राज्य सरकारों को फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट 2006 को प्रभावी तरीके से लागु करने के निर्देश दिए। सुप्रीम कोर्ट के बार बार निर्देश देने के बावजूद सरकार ने मिलावटखोरी जैसे अति संवेदनशील मुद्दे को अपने एजेंडे से बाहर रखा है। होना तो यह चाहिए था कि खाद्य मानकों से छेड़छाड़ या मिलावट करने वाले या गुणवत्ता में कोताही बरतने वालों को आतंकवादियों जैसी ही सजा मिलनी चाहिए। आखिर वे लोगों की जिदंगी से खिलवाड़ करते हैं और अपने स्वार्थ को साधने के लिए खाने- पीने की वस्तुओं को जरिया बनाते है। मिलावटखोर भी अपना स्वार्थ साधने के लिए पूरे समाज को वैसे ही नुकसान पहुंचाते है, जैसे कोई आतंकवादी। अत: आतंकवादियों एवं मिलावटखोरों के सजा की प्रकृति एक समान होनी चाहिए

यह समय की मांग है कि हम सभी को मिलकर ईमानदारीपूर्वक मिलावटखोरी के खिलाफ जंग छेड़ना होगा। हमें दुनिया के विकसित देशों से प्रेरणा लेकर मिलावटखोरी के खिलाफ सख्त कानून बनाने होंगे। अमेरिका और यूरोप के अन्य देशों में यह व्यवस्था है कि वहाँ अगर किसी कंपनी के सामान पर मिलावट की आंशका होती है तो उसे तब तक के लिए बैन कर दिया जाता है, जबतक कि उसे क्लीन चिट न मिल जाए। भारत में इसी तरह का कानून बनाए जाने की आवश्यकता है। इसके अलावे हम सभी को जागरुक होकर वैसे होटल, रेस्टॉरेंट और दुकानदार का सार्वजनिक बहिष्कार करना चाहिए, जहाँ थोड़ा भी मिलावट की आशंका दिखे। जबतक मिलावटखोरी के कालाबाजार को नेस्तनाबूद नहीं किया जाता, तब तक विश्व की महाशक्ति एवं विश्वगुरु बनने का हमारा सपना मृगमरीचिका के ही जैसे रहेगा।

कुन्दन कुमार

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