सोमली रात से ही व्याकुल थी। करवट बदल-बदलकर उसने रात काटी। उसकी इस दशा को उसकी सास ने ताड़ लिया था। वह भी उससे दो-चार हाथ दूर ही सोयी हुई थी। काफी देर तक वह कुछ बोली नहीं। यूं भी अपनी इस बहू को वह कुछ कहना ठीक नहीं मानती थी, पढ़ी-लिखी होने के कारण। इस वर्ष वह गांव की सरपंच भी चुनी गई थी। इससे उसके सम्मुख उसका कद कुछ और बढ़ गया था। फिर भी जब उससे न रह गया तो उसने उससे पूछ ही लिया-‘बेटी होमा, हूं थायो तमने (तुझे क्या हुआ) इस पर उसने करवट बदलते हुए इतना ही जवाब दिया-मैं ठीक हूं। आप सो जाओ। इस पर आगे उसने कुछ और पूछना ठीक नहीं समझा और वह चुपचाप लेटी रही।
सोमली समीपस्थ नगर के एक होस्टल में रहकर पढ़ी थी। इसलिये वह शुद्घ हिन्दी में लिख भी लेती थी और वह उसमें भली-भांति बातचीत भी कर लेती थी। उसका मायका समीप के गांव में ही था। उसका पति बुघा पढ़ा-लिखा नहीं था लेकिन वह सुंदर, सुसभ्य और मेहनती था। बचपन से ही वह उसे पसंद करती थी। शादी के पहले भी यदा-कदा वह हाट बाजार में उससे बातचीत कर लेती थी। जब उसके बूढ़े मां-बाप ने उसके संग उसके ब्याह की बात चलायी तो उसने कोई आपत्ति नहीं उठाई। अलबत्ता बुधा ने जरूर उसके बाप से कहा था-हूं सोमली ना काबिल न थी, तुम तिनो ब्याव कई था पढ्या-लिख्या मरदाना हाथे करिये (मैं सोमली के योग्य नहीं हूं। तुम उसका विवाह किसी पढ़े-लिखे मर्द के साथ कर दो।) उसकी यह बात सुनकर उसका बाप भी कुछ दिनों तक उलझन में पड़ा रहा। लेकिन सोमली के जोर देने पर उसने बुधा के साथ ही उसका संबंध तय कर दिया और अच्छे पढ़े-लिखे लड़कों की पेशकश को उसने आंख-मूंदकर ठुकरा दिया।
















