पंजाब-हरियाणा के बीच सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर का मामला फिर से सुलगने लगा है। गत दिवस पंजाब के सभी राजनीतिक दलों ने हरियाणा को और पानी न देने का प्रस्ताव पास किया है। उक्त मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है और अदालत ने केंद्र व राज्यों को बातचीत से यह विवाद सुलझाने की पेशकश भी की थी किंतु कोई परिणाम नहीं पहुंचा। यह बात लगभग पहले भी स्पष्ट थी कि इस मामले का राजनीतिक समाधान न के बराबर है।
नहर के मामले में पंजाब का पक्ष कमजोर होने के कारण राजनीतिक गतिविधियों ने जोर पकड़ लिया है। एसवाईएल नहर का मामला कानूनी की बजाय राजनीतिक ज्यादा हो गया है। पानी की आवश्यकताओं के तकनीकी पक्षों की अपेक्षा ज्यादा वोट बैंक की राजनीति हावी हो रही है। यही हाल हरियाणा का है। वास्तव में दोनों राज्य ही पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। विशेष तौर पर भू-जल का स्तर और गुणवत्ता ज्यादा प्रभावित हुई है। पंजाब की नदियां दूषित हो चुकी हैं। पंजाब और राजस्थान की आधी आबादी सतलुज का गंदा पानी पीने को मजबूर है।
पानी की बचत के लिए पंजाब और हरियाणा सहित अन्य राज्यों की प्रदर्शन बेहद बुरा है। बारिश के पानी को स्टोर करने व धान की खेती को कम करने के लिए कोई रणनीति नहीं बनाई गई। दूसरी तरफ मानसून में बाढ़ की समस्या भी दोनों राज्य ही झेल रहे हैं। पानी की संभाल के लिए बड़े प्रोजेक्ट स्थापित नहीं किए गए। महानगरों व छोटे बड़े शहरों की घरेलू कार्यों में पानी का बड़े स्तर पर दुरुपयोग हो रहा है। यदि पानी की बचत को गंभीरता से लिया जाए और इज्रराइल जैसी कृषि तकनीकें इस्तेमाल की जाएं तब स्वत: ही पानी के विवाद समाप्त हो जाएं। पानी का मामला राजनीति के साथ-साथ कानून व्यवस्था का मामला भी बन गया है। दोनों राज्यों में तनावपूर्ण हालात बन रहे हैं।
दरअसल देश में कोई ठोस जल नीति नहीं होने के कारण लगभग आधी दर्जन राज्यों के मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। अब सतलुज का मामला सुप्रीम कोर्ट में है। अत: यही उचित होगा कि सभी राजनीतिक दल व विभिन्न प्रदेशवासी संयम व जिम्मेदारी से न्यायालय के निर्णय का इंतजार करें। सदभावना व भाईचारे को कायम रखें।
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