बेंच ने मामले की सुनवाई 6 अगस्त से शुरू की और सुनवाई रोजाना चली
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में 5 सदस्यीय बेंच ने लगातार 40 दिनों तक सुनवाई की। जस्टिस रंजन गोगोई की इस बेंच में उनके अलावा जस्टिस शरद अरविंद बोबडे, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ और जस्टिस एस अब्दुल नजीर भी शामिल रहे। बेंच ने मामले की सुनवाई 6 अगस्त से शुरू की और सुनवाई रोजाना चली, अब सभी को फैसले का इंतजार है। सुप्रीम कोर्ट राम मंदिर विवाद पर कुछ भी फैसला दे सकता है, ऐसे में आगे की स्थिति क्या होगी। क्या यह अंतिम फैसला होगा और सभी पक्षों को इस फैसले पर रजामंदी देनी होगी।
रिव्यू पीटिशन का होगा मौका
- कोर्ट के फैसले के बाद हर पक्ष के पास पुनर्विचार याचिका (रिव्यू पिटीशन) डालने का मौका रहेगा।
- कोई भी पक्षकार फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकता है जिस पर बेंच सुनवाई कर सकती है।
- हालांकि कोर्ट को यह तय करना होगा कि वह पुनर्विचार याचिका को कोर्ट में सुने या फिर चैंबर में सुने।
- बेंच अपने स्तर पर ही इस याचिका को खारिज कर सकती है या फिर इससे ऊपर के बेंच को स्थानांतरित कर सकती है।
- हालांकि कोर्ट के फैसले के अब तक के इतिहास बताते हैं कि बेंच अपने स्तर पर ही याचिका पर फैसला ले लेता है।
क्या है क्यूरेटिव पिटीशन
- सुप्रीम कोर्ट की ओर से पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुनाए जाने के बाद भी पक्षकारों के पास एक और विकल्प होगा।
- कोर्ट के फैसले के खिलाफ यह दूसरा और अंतिम विकल्प है जिसे क्यूरेटिव पिटीशन (उपचार याचिका) कहा जाता है।
- हालांकि क्यूरेटिव पिटीशन पुनर्विचार याचिका से थोड़ा अलग है,
- इसमें फैसले की जगह मामले में उन मुद्दों या विषयों को चिन्हित करना होता है
- जिसमें उन्हें लगता है कि इन पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
- इस क्यूरेटिव पिटीशन पर भी बेंच सुनवाई कर सकता है या फिर उसे खारिज कर सकता है।
- इस स्तर पर फैसला होने के बाद केस खत्म हो जाता है और जो भी निर्णय आता है वही सर्वमान्य हो जाता है।
क्या था हाई कोर्ट का फैसला
इलाहाबाद हाई कोर्ट की 3 जजों की बेंच ने करीब 9 साल पहले 30 सितंबर, 2010 को अपने फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को तीनों पक्षों (सुन्नी वक्फ बोर्ड, निमोर्ही अखाड़ा और राम लला विराजमान) में बराबर-बराबर बांट दिया जाए। हालांकि हाई कोर्ट इस फैसले को किसी भी पक्ष ने नहीं माना और इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट की ओर से 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी गई।
Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करे।