देश की बेहाली पर सुप्रीम कोर्ट का दर्द

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देश में कोई आदेश या कानून कितना लागू हो पाता है, यह सब सुप्रीम कार्ट के न्यायधीशों के दर्द से अच्छी तरह समझा जा सकता है। अक्सर ही माननीय न्यायालय को अपने आदेशों, निर्देशों को लागू करवाने के लिए केन्द्र या राज्य सरकारों की डांट-फटकार करनी पड़ती है, लेकिन इस शुक्रवार को हद तब हो गई जब सुप्रीम कार्ट के माननीय न्यायाधीश ने एक विवाद में यहां तक कह दिया कि इस न्यायालय को बंद कर देना चाहिए एवं यह देश रहने लायक नहीं बचा।

मामाला निजी टेलीकॉम कम्पनियों का है, जिन्होंने सरकार को 1.47 लाख करोड़ रूपये बकाया चुकाना है, परंतु सरकार की हालत या नीयत पर ही यहां सवाल खड़ा हो रहा है कि जिन सरकारी अधिकारियों ने कम्पनियों से वसूली करनी है वही अधिकारी कम्पनियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं।

यह देश का दुर्भाग्य है कि 1.47 लाख करोड़ रूपया जो सरकारी खजाने में जमा होना चाहिए, उसमें सरकारी अधिकारी ही रोड़ा अटका रहे हैं। यह बेहद दु:खद बात है कि एक ओर कालेधन पर काबू पाने के लिए सख्त सजाओं एवं जुर्माने की व्यवस्था की गई है, साथ ही हर रोज वाले काले धन को पकड़ने के लिए छापेमारी की जा रही है, वहीं देश का प्रशासन टेलीकॉम कम्पनियों से राजस्व वसूली में रोड़ा बन रहा है। प्रशासन में भ्रष्टाचार को बनाए रखने वाले अधिकारियों के खिलाफ सरकार की ओर से किसी भी तरह की कार्रवाई की कोई खबर नहीं।

उच्चतम न्यायालय के तल्ख एवं गुस्से भरे शब्दों से प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़े होना स्वभाविक है। उक्त घटना सरकार के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान या तेवरों पर सवाल खड़े कर रही है कि कानून केवल मध्यवर्ग या आम आदमी के लिए ही रह गया है? सरकारी खजाने का धन इस देश के लोगों का धन है परंतु इस देश में बड़े व्यवसायिक घराने सरकार व प्रशासन से मिलीभुक्त कर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं। राजस्व में वृद्धि करने के लिए सरकार एक तरफ विदेशी कम्पनियों, विदेशी सरकारों के सामने गिड़गिड़ाती है कि उसके यहां निवेश कीजिए।

प्रधानमंत्री दुनिया भर में घूम-घूमकर निवेश करवाने में जुटे हुए हैं लेकिन देश के भीतर उच्चतम न्यायलय के सख्त आदेश के बाद भी निजी कम्पनियां देश का धन दबाकर बैठी हैं और उन्हें किसी की परवाह भी नहीं है। इतना ही नहीं यहां उच्चतम न्यायरलय तब भी बेबस नजर आया है, जब न्यायालय के आदेश राजनीतिक पार्टियों से उनके दागी सांसदों, विधायकों का ब्यौरा मांगते हैं। देश में न्यायालय के आदेश को नहीं मानना न्यायालय की अवमानना है। जो देश अपने ही कानूनों का सम्मान नहीं करता वह कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता। मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार एवं कालेधन पर काबू पाने के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं की हैं, सरकार कम से कम उन घोषणाओं की ही शर्म कर ले, और देश के धन को बर्बाद करने वालों या डकार जाने वालों के खिलाफ गंभीरता से कठोर कार्रवाई करे।

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