Royalty is not a Tax : नई दिल्ली (एजेंसी)। सर्वोच्च न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 25 जुलाई को 1989 के 7 न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले को गलत करार देते हुए बहुमत से फैसला सुनाया कि राज्यों को खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का अधिकार है। शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा कि नाबालिगों द्वारा केंद्र को दी जाने वाली रॉयल्टी को कर नहीं कहा जा सकता, बल्कि यह एक संविदात्मक भुगतान है। Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट ने सात जजों की संविधान पीठ के फैसले को गलत ठहराया!
न्यायालय ने अपने सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 1989 के फैसले को गलत करार देते हुए कहा कि खनिजों पर रॉयल्टी को कर माना जाता है तथा राज्यों को खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने के अधिकार को 8:1 बहुमत से बरकरार रखा। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने 9 न्यायाधीशों की पीठ का नेतृत्व किया जिसने फैसला सुनाया और इसमें न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, अभय ओका, बीवी नागरत्ना, जेबी पारदीवाला, मनोज मिश्रा, उज्ज्वल भुयान, एससी शर्मा और एजी मसीह शामिल हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने और 7 सहयोगियों के लिए फैसला लिखा। कानूनी समाचार वेबसाइट लाइव लॉ के अनुसार, न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने असहमतिपूर्ण निर्णय दिया।
अदालत ने जिन मुख्य प्रश्नों की जांच की, वे थे कि क्या खनन पट्टों पर रॉयल्टी को कर माना जाना चाहिए और क्या संसदीय कानून खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम 1957 के अधिनियमित होने के बाद राज्यों के पास खनिज अधिकारों पर रॉयल्टी/कर लगाने का अधिकार है। अदालत ने कहा, ‘‘रॉयल्टी कर की प्रकृति में नहीं है क्योंकि यह खनन पट्टे के तहत पट्टेदार द्वारा भुगतान किया जाने वाला एक संविदात्मक प्रतिफल है। रॉयल्टी और डेड रेंट दोनों ही कर की विशेषताओं को पूरा नहीं करते हैं।’’ Supreme Court