Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने की जौहर विश्वविद्यालय मामले में याचिका खारिज

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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने की जौहर विश्वविद्यालय मामले में याचिका खारिज

नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। Supreme Court: उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय की जमीन का पट्टा रद्द करने के उच्च न्यायालय के एक फैसले को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 18 मार्च 2024 के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा, ‘हमें उच्च न्यायालय के आदेश में कोई खामी नजर नहीं आती। यह मामला वरिष्ठ समाजवादी पार्टी नेता मोहम्मद आजम खान के नेतृत्व वाले ट्रस्ट द्वारा संचालित मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय की जमीन का पट्टा रद्द करने का है। Supreme Court

पीठ ने खान की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा, ‘हम मामले में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, क्योंकि तथ्य बहुत गंभीर हैं। शहरी विकास मंत्री और अल्पसंख्यक मामलों के तत्कालीन मंत्री के तौर पर आपने परिवार द्वारा संचालित ट्रस्ट को जमीन आवंटित करवाई। यह पद के दुरूपयोग का स्पष्ट मामला है, अगर ऐसा नहीं है तो और क्या होगा। इस पर सिब्बल ने कहा कि ये सभी तथ्य हैं, जिन पर विवाद नहीं किया जा सकता है, लेकिन जमीन का पट्टा आवंटित करने का फैसला व्यक्तिगत तौर पर नहीं लिया गया, बल्कि कैबिनेट ने लिया था। उन्होंने दावा किया कि पट्टा रद्द करने से पहले कोई कारण बताओ नोटिस जारी नहीं किया गया था।

पीठ ने यह कहने पर कि हमें उच्च न्यायालय के आदेश में कोई खामी नजर नहीं आती, सिब्बल ने जोर देकर कहा कि यह कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण है। हम पांच प्रतीशत बच्चों से 20 रुपये फीस ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह कोई लाभ कमाने वाला संगठन नहीं है। उन्होंने कहा कि यह मामला 200 से अधिक छात्रों के भविष्य से भी जुड़ा है। उनके अनुरोध पर हालांकि, अदालत ने राज्य के सचिव (स्कूल शिक्षा या सक्षम प्राधिकारी) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। उच्च न्यायालय के समक्ष उत्तर प्रदेश सरकार ने तर्क दिया था कि यह ह्यभाई-भतीजावादह्ण का मामला है, जहां कैबिनेट मंत्री (तत्कालीन) खुद संस्थान चलाने वाले एक निजी ट्रस्ट के अध्यक्ष (जमीन आवंटन के वक्त) हैं। कानून में निर्धारित प्रक्रियाओं को दरकिनार करके सभी स्वीकृतियां उन्होंने ही दीं। सरकार की ओर से यह भी दावा किया गया कि उच्च शिक्षा (शोध संस्थान) के उद्देश्य से अधिग्रहीत की गई भूमि का उपयोग रामपुर पब्लिक स्कूल चलाने के लिए किया जा रहा था। Supreme Court

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