पशुओं को अफारा बीमारी से बचाने के लिए 1 लीटर मीठे तेल में 100 ग्राम काला नमक, 100 ग्राम मीठा खाने वाला सोडा, 30 ग्राम अजवाइन व 20 ग्राम हिंग मिला कर दें, अफारा से बचाव के लिए जरूरत से ज्यादा बरसीम, खड़ा गेहूं व ज्यादा राशन न खिलाएं।
गर्मी के मौसम में पशुओं को अपने शरीर का तापमान सामान्य बनाएं रखने में काफी दिक्कतें आती हैं। हीट स्ट्रेस के कारण जब पशुओं के शरीर का तापमान 101.5 डिग्री फेरनेहाइट से 102.8 फेरनहाइट तक बढ़ जाता है, तब पशुओं के शरीर में इसके लक्षण दिखने लगते हैं। भैंसों एवं गायों के लिए थर्मोन्यूट्रल जोन 5 डिग्री सेंटीग्रेड से 25 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच होता है।
थर्मोन्यूट्रल जोन में सामान्य मेटाबोलिक क्रियाओं से जितनी गर्मी उत्पन्न होती है, उतनी ही मात्रा में पशु पसीने के रूप में गर्मी को बाहर निकालकर शरीर का तापमान सामान्य बनाए रखते हैं।
हीट स्ट्रेस के दौरान गायों में सामान्य तापक्रम बनाए रखने के लिए खनपान में कमी, दुग्ध उत्पादन में 10 से 25 फीसदी की गिरावट, दूध में वसा के प्रतिशत में कमी, प्रजनन क्षमता में कमी, प्रतिरक्षा प्रणाली में कमी आदि लक्षण दिखाई देते हैं। गर्मियों में पशुओं को स्वास्थ्य रखने एवं उनके उत्पादन के स्तर को सामान्य बनाए रखने के लिए पशुओं की विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है।
प्रमुखतया दो वजह से होता है पशुओं पर गर्मी का प्रभाव
1. इनवायरमेंटल हीट
2. मेटावालिक हीट
सामान्यतया इनवायरमेंटल हीट की अपेक्षा मेटावालिक हीट द्वारा कम गर्मी उत्पन्न होती है, लेकिन जैसे-जैसे दुग्ध उत्पादन और पशु की खुराक बढ़ती है उस स्थिति में मेटावालिज्म द्वारा जो हीट उत्पन्न होती है वह इनवायरमेंटल हीट की अपेक्षा अधिक होती है।
इसी वजह से अधिक उत्पादन क्षमता वाले पशुओं में कम उत्पादन क्षमता वाले पशुओं की अपेक्षा गर्मी का प्रभाव ज्यादा दिखाई देता है। इनवायरमेंटल हीट का प्रमुख स्त्रोत सूर्य होता है। अत: धूप से पशुओं का बचाव करना चाहिए।
पशुपालकों के खूब काम आएंगे ये टिप्स
दूध उत्पादन के लिए पशुपालकों के लिए जरूर है कि वे हमेशा दुधारू नस्ल के पशु ही पालें। गाय में साहिवाल, हरियाणा, करनस्विस, करन फ्रिज वैगरह और भैंस में मुर्रा, मेहसाना वैगरह नस्लें माली नजरिए से फायदेमंद साबित होती हैं। दुधारू पशु (गाय भैंस) खरीदने से पहले उस की नस्ल, दूध देने की कूवत वैगरह की जांच जरूर करनी चाहिए। पशु का वंशावली का रिकार्ड भी जरूर देखना चाहिए, यानी उस की माँ, नानी, परनानी वैगरह कितना दूध देती थी। इस के अलावा अपने इलाके और सुविधाओं के आधार पर ही पशु का चुनाव करें।
पशुशाला हमेशा ऐसी जगह बनाएं, जहाँ बारिश का पानी नहीं भरता हो। जगह हवादार व साफ सुथरी होनी चाहिए। पशुशाला का फर्श पक्का खुरदरा रखें। गोबर को पशुशाला से उठा कर दूर खाद के गड्ढे में डालें। पशुशाला से पानी की निकासी का भी सही बंदोबस्त रखें। पशुशाला के आसपास गन्दा पानी जमा न होने दें।
पशुशाला में मक्खी मच्छर से बचाव का भी इंतजाम करें। पशुओं को सर्दीगर्मी व बरसात से बचाने के लिए पशुशाला में बचाव का इंतजाम करें। ध्यान रखें कि पशुओं को किसी भी तरह की परेशानी न हो। सर्दी के मौसम में पशुशाला में बिछावन के लिए भूसा, लकड़ी का बुरादा, पेड़ों की सूखी पत्तियों या गन्ने के सूखी पत्तियाँ इस्तेमाल करें। बिछावन गीला होने के बाद उसे गोबर के साथ उठा कर खाद के गड्ढे में डाल दें। हर रोज सुखा बिछावन ही इस्तेमाल में लाएं।
गर्मियों में इन बातों का रखें ध्यान
- पशुओं को दिन के समय सीधी धूप से बचाएं, उन्हें बाहर चराने न ले जाएं।
- हमेशा पशुओं को बांधने के लिए छायादार और हवादार स्थान का ही चयन करें।
- पशुओं के पास पीने का पानी हमेशा रखें।
- पशुओं को हरा चारा खिलाएं।
- यदि पशुओं में असमान्य लक्षण नजर आते हैं तो नजदीकी पशुचिकित्सक से संपर्क करें।
- यदि संभव हो तो डेयरी शेड में दिन के समय कूलर, पंखे आदि का इस्तेमाल करें।
- पशुओं को संतुलित आहार दें।
- अधिक गर्मी की स्थिति में पशुओं के शरीर पर पानी का छिड़काव करें।
गर्मी का पशुओं की शारिरिक क्रियाओं पर प्रभाव
अपने शरीर के तापमान को गर्मी में भी सामान्य रखने के लिए पशुओं की शारीरिक क्रियाओं में कुछ बदलाव देखने को मिलते हैं।
- गर्मी के मौसम में पशुओं की श्वसन गति बढ़ जाती है, पशु हांपने लगते हैं, उनके मुंह से लार गिरने लगती है।
- पशुओं के शरीर में बाइकार्बोनेट आयनों की कमी और रक्त के पी.एच. में वृद्धि हो जाती है।
- पशुओं के रियुमन में भोज्य पदार्थों के खिसकने की गति कम हो जाती है,
- जिससे पाच्य पदार्थों के आगे बढ़ने की दर में कम हो जाती है
- रियुमन की फर्मेन्टेशन क्रिया में बदलाव आ जाता है।
- त्वचा की ऊपरी सतह का रक्त प्रभाव बढ़ जाता है, जिसके कारण आंत्रिक ऊतकों का रक्त प्रभाव कम हो जाता है।
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