सरसा (सकब)। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि संत, पीर-फकीर एक ही संदेश देते हैं कि प्रभु, परमात्मा की भक्ति-इबादत करो। हर समय एक ही चर्चा करते हैं कि अच्छे-नेक कर्म करो, सुमिरन करो। सुमिरन करने से इन्सान अपने अंदर की बुराइयां, अंदर के बुरे विचारों, पाप-कर्मों पर जीत हासिल कर सकता है और फिर बुरे विचार इन्सान को अपने साथ चलने पर मजबूर नहीं करते। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि हर इन्सान को सुख मिले, शांति मिले और हर इन्सान परमपिता परमात्मा की दया-मेहर, रहमत के लायक बने, इसीलिए ही पीर-फकीर सबको प्रभु के नाम से जोड़ते हैं, प्रभु का नाम लेने के लिए प्रेरणा देते हैं।
संतों ने किसी से प्रभु का नाम जपवाकर खुद के लिए कोई करोड़ों रुपये इकट्ठे नहीं करने होते। उनका तो एक ही मकसद, एक ही उद्देश्य होता है कि किसी भी तरह से हर प्राणी को सुख मिले। जैसे गृहस्थी-दुनियावी लोगों की एक ही इच्छा होती है कि उनका घर, उनकी औलाद, उनका परिवार ऐशो-आराम की जिन्दगी जीए, दूसरे से कोई मतलब नहीं। कहता है कि मेरे वाले सुखी बसें, उनको पैसा मिले, उन्हें किसी चीज की कमी ना रहे। 99 प्रतिशत लोगों का, जो गृहस्थी हैं, जीने का यही मकसद होता है। आप जी फरमाते हैं कि संत-फकीरों का लक्ष्य कोई औैर होता है। जिस तरह एक घर, परिवार में रहने वाले मुखिया का सारा ध्यान अपने भाई-बहन, बेटा-बेटी, परिवार पर होेता है कि उनको अच्छा मिले, वे अच्छा बनें, उसी तरह संत, पीर-फकीरों का भी लक्ष्य होता है कि मालिक की जितनी भी औलाद है वो भी प्रभु की दया-मेहर, रहमत से मालामाल जरूर हो। वो पीर-फकीर सबके लिए सोचते हैं, क्योंकि जो त्यागी, तपस्वी हैं, उनका फर्ज यही होता है कि वो दूसरों का भला सोचें।
खुद थोड़ा दु:ख उठाएं और दूसरों को सुख पहुंचाएं। जो ऐसा सोचते हैं, अमल करते हैं यकीनन वो मालिक के बहुत प्यारे भक्त होते हैं। तो संत, पीर-फकीरों का यह लक्ष्य, निशाना होता है कि सृष्टि का भला हो और हर प्राणी मालिक की दया-दृष्टि से, दया-मेहर, रहमत से खुशियां हासिल करे। गम, चिंता-परेशानियां लोगों को न हों, उनमें बर्दाश्त-शक्ति बढ़े ताकि आपसी झगड़े न हो, ईर्ष्या-नफरत न हो, कोई किसी की टांग खिंचाई न करे। उनकी सोच सर्वव्यापक, सबके लिए होती है, सर्व-सांझी होती है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि हर इन्सान को सुमिरन करना चाहिए और सुमिरन पर कोई जोर भी नहीं लगता।
लेटकर, बैठकर, काम-धंधा करते हुए और आप यकीन मानो कि जो सेवा-सुमिरन लगन से करता है, जिसके अंदर मालिक के खजाने हैं वो जरा-जरा सी बात पर कभी पारा ऊपर-नीचे लेकर नहीं जाते। वह अपनी जिन्दगी को एक रस बना लेता है। न ही उसे गमों की मार तोड़ सकती है और न ही खुशियां, बहारेें उसे मालिक से दूर कर पाती हैं यानि खुशियों में बहकता नहीं और गम या कोई चिंता आती है तो उसमें वह टूटता नहीं। मालिक की दया-दृष्टि से, रहमो-करम से वह हमेशा आगे बढ़ता रहता है। वह प्रभु से प्रभु को मांगता हुआ, प्रभु से प्रभु की खलकत का भला मांगता हुआ कदम आगे बढ़ाता है और एक दिन यहां-वहां दोनों जहानों में खुशियों का हकदार बन जाता है।
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