भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के रूप में अमित शाह का तीन साल का कार्यकाल अभूतपूर्व सफलता से भरा रहा है। पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले इस शख्स ने जब से बागडोर संभाली तो भगवा दल ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व और अमित शाह के चुनावी रण कौशल की बदौलत 1980 के दशक में अछूत सी समझी जाने वाली भाजपा आज देश की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित हो गई है। अमित शाह को यह मुकाम विरासत में नहीं मिला है बल्कि यहां तक पहुंचने में उनकी लग्न, कड़ी मेहनत और बुद्धि कौशल और कुशल प्रबंधन का अहम योगदान है।
शिकागो के व्यवसायी अनिल चन्द्र शाह के मुंबई स्थित घर में 1964 में अमित शाह का जन्म हुआ। उन्होंने बायोकैमिस्ट्री में बीएससी तक शिक्षा ग्रहण की। इसके पश्चात वे कुछ समय तक पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगे। फिर कुछ समय तक शेयर ब्रोकरज के कारोबार में भी हाथ आजमाया। लेकिन उनके मन में कुछ बड़ा करने की इच्छा ने उन्हें यहां भी टिकने नहीं दिया। उसी दौरान वे आरएसएस से जुड़े और भाजपा के सक्रिय सदस्य भी बन गए।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में शामिल होने के बाद अमित शाह ने संघ की विद्यार्थी शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लिए चार साल तक कड़ी मेहनत से काम किया। उसी दौरान भाजपा संघ की राजनैतिक शाखा बनकर उभरी और अमित शाह 1984-85 में पार्टी के स्थायी सदस्य बने। भाजपा सदस्य के रूप में उन्हें अहमदाबाद के नारायणपुर वार्ड में पोल एजेंट का पहला दायित्व सौंपा गया। तत्पश्चात वे इसी वार्ड से सचिव बनाए गए। इस तरह दायित्वों को सफलतापूर्वक संपन्न करने के चलते उच्च पदों के लिए चुने गए। शाह ने युवा पार्टी के प्रचार-प्रसार के लिए दिन-रात एक करते हुए पूरे रणनीतिक कौशल का परिचय दिया।
1989 का लोकसभा चुनाव अमित शाह के राजनैतिक जीवन के लिए बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ, जब उन्हें भाजपा के जन नेता लाल कृष्ण आडवाणी की गांधी नगर लोकसभा सीट का चुनाव प्रबंधन का दायित्व सौंपा गया। दोनों का यह गठबंधन ऐसा बना कि दो दशकों यानि 2009 के लोकसभा चुनाव तक अमित शाह आडवाणी की चुनावी रणनीति तैयार करते रहे।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जब गांधी नगर से लोकसभा का चुनाव लड़ा तो अमित शाह ही चुनाव प्रभारी बनाए गए थे। इसके बाद शाह गुजरात के चेस एसोसिएशन अध्यक्ष, गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष, गुजरात स्टेट फाइनेंस कार्पोरेशन लिमिटेड के अध्यक्ष, अहमदाबाद जिला को-आॅपरेटिव बैंक के चेयरमैन भी बने।
2003 में जब दोबारा गुजरात में नेरन्द्र मोदी की सरकार बनी तो अमित शाह को राज्य मंत्री मंडल में शामिल किया गया और गृह मंत्रालय सहित कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी गई। इसके बाद अपने कार्य कौशल के बल पर वे तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी के चहेते, भरोसेमंद और करीबी नेताओं में शुमार हुए। शाह की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अहमदाबाद की सरखेज विधानसभा सीट से लगातार चार बार वह विधायक निर्वाचित हुए।
उपलब्धियों भरे राजनीतिक जीवन में उनके नाम के साथ कुछ विवाद भी जुड़े रहे। गुजरात का गृह मंत्री रहते उन पर सोहराबुद्दीन और गायत्री तुलसी के फर्जी मुठभेड़ के आरोप लगे। इसके चलते उन्हें तीन महीने जेल में भी जाना पड़ा। इसके बाद उन्हें जमानत मिल गई लेकिन कोर्ट ने सबूतों से छेड़छाड़ की आशंका के मद्देनजर उनके गुजरात से बाहर जाने पर भी रोक लगा दी थी। उतार-चढ़ाव भरे इस दौर में शाह ने अपना धैर्य नहीं खोया और अंत में कोर्ट ने इन दोनों ही केसों में उन्हें क्लीन चिट दी। वहीं सम-विषम परिस्थितियों में घिरे शाह पार्टी नेतृत्व में अपना विश्वास लगातार जमाए रहे।
फिर 2014 के लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजी और अमित शाह को इन चुनावों में उत्तर प्रदेश का प्रभार सौंपा गया। शाह ने एक बार फिर अपने चुनावी रण कौशल को धार दी और मोदी लहर पर सवार भाजपा ने 282 सीटों पर विजय हासिल की, जिनमें से अकेले उत्तर प्रदेश में 42.3% वोटों के साथ पार्टी ने 80 में से 71 सीटें जीती, जो 1989 के चुनावों के बाद किसी भी पार्टी को प्रदेश में मिले सबसे ज्यादा वोट थे। इस जीत से गद्गद् भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर चुन लिया।
तत्पश्चात अमित शाह के नेतृत्व में देश भर में भाजपा का ‘महासदस्यता अभियान’ चलाया गया और देश भर के कोने-कोने से लोग भाजपा से जुड़े। अमित शाह ने पार्टी पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं और आम लोगों के साथ सीधा संपर्क स्थापित करने के लिए पहली बार ‘जन-संवाद’ कार्यक्रम शुरू किया, जिसमें आमजन, कार्यकर्ता और पार्टी पदाधिकारी बिना पहले से समय लिए भी मिलते हैं। भाजपा अध्यक्ष ने चुनावी रैलियों के साथ-साथ कार्यकर्ता सम्मेलन पर भी ध्यान केन्द्रित किया। वहीं देश भर के बुद्धिजीवियों, लेखकों और सोशल मीडिया से जुड़े लोगों को भी पार्टी से जोड़ने की कवायद भी शुरू की ताकि देश को भाजपा और सरकार के विजन से सही मायनों में अवगत कराया जा सके।
शाह की सरपरस्ती में भाजपा ने हर स्तर पर चुनावी सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए। चाहे वह विभिन्न राज्यों के विधान सभा चुनाव हों, चाहे वह स्थानीय निकायों के चुनाव हों या फिर उप-चुनाव। शाह के अध्यक्ष कार्यकाल में जितने भी चुनाव हुए, लगभग सभी चुनावों में भाजपा ने जीत हासिल की। जिन राज्यों में भाजपा सरकार नहीं बना पाई, वहां भी भाजपा के मत प्रतिशत में बड़ा इजाफा हुआ। आज देश के 29 में से 18 राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगियों की सरकारें हैं।
2017 में हुए पाँच राज्यों के चुनाव में भाजपा ने चार राज्यों में जीत हासिल की। वहीं उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में पार्टी को तीन चौथाई बहुमत मिला। आज देश के लगभग सभी बड़े राज्यों, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात और बिहार में भाजपा की सरकारें हैं। हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में भी भाजपा ने अपना परचम लहराया। जम्मू-कश्मीर, असम और मणिपुर में तो आजादी के बाद पहली बार भाजपा गठबंधन की सरकार बनी। हरियाणा में पहली बार भाजपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की। केरल विधान सभा में आजादी के बाद पहली बार भाजपा ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। पूर्वोत्तर के चार राज्यों में भाजपा और राजग की सरकार है। महाराष्ट्र, ओडिशा, गुजरात, राजस्थान, चंडीगढ़, हरियाणा, दिल्ली, केरल और पश्चिम बंगाल में हुए स्थानीय निकाय के चुनावों में भी भाजपा को अभूतपूर्व सफलता मिली। ओडिशा में हुए स्थानीय निकाय के चुनावों में भी पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की।
वर्तमान में भाजपा नीत राजग के 33 घटक हैं, महाराष्ट्र में शिवसेना, बिहार में जदयू, जम्मू-कश्मीर में पीडीपी, पंजाब में अकाली दल बादल, बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट, असम गण परिषद, भारत धर्म जन सेना, महाराष्ट्र गोमांतक पार्टी, पत्ताली मक्काल काची, रिपब्लिक पार्टी आॅफ इंडिया (अठावले), आॅल इंडिया एन.आर. कांग्रेस, लोकजन शक्ति पार्टी, तेलगुदेशम, केरल कांग्रेस, अपना दल, मणिपुर पीपुल्स पार्टी तथा नागा पीपुल्स फ्रंट आदि पार्टियां शामिल हैं। गुजरात में शाह और स्मृति ईरानी की जीत के साथ ही अब भाजपा राज्यसभा में भी बहुमत के करीब पहुंच गयी है, जिससे भाजपा के लिए आने वाले समय में संसद में महत्वपूर्ण बिलों और कानूनों को पास करवाने की राह आसान होगी।
इन हालातों में भाजपा नीत राजग 2019 के लोकसभा चुनाव में 2014 की सफलता दोहराती नजर आ रही है, क्योंकि अभी तक कांग्रेस सहित विपक्षी दलों से उसके सामने कोई बड़ी चुनौती नहीं दिख रही है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उसे पंजाब में अकाली दल, आंध्र प्रदेश में तेलगू देशम और महाराष्ट्र में सहयोगी शिवसेना जैसे दलों को संतुष्ट रखना होगा, वरना खेल बिगड़ सकता है।
– जसविन्द्र इन्सां
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