चंडीगढ़। चंडीगढ़ को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच खिंचतान ने सियासी हलकों में चिंताए बढ़ा दी हैं। चंडीगढ़ कांग्रेस प्रधान और वरिष्ठ नेता सुभाष चावला का कहना है कि चंडीगढ़ को उसके मूल स्वरूप में ही रहने दिया जाना चाहिए। इस मुद्दे पर सियासत नहीं होनी चाहिए। चावला हैरान हैं कि आखिर पंजाब और हरियाणा ऐसे प्रस्ताव पारित क्यों कर रहे हैं। साथ ही चंडीगढ़ नगर निगम को भी ऐसे प्रस्ताव लाने की क्या जरूरत है? चावला ने 1980 का दशक याद दिलाते हुए कहा कि वरिष्ठ नेताओं इस विषय पर सोचना चाहिए क्योंकि यही कुछ उन दिनों भी हुआ था। पंजाब से आवाज उठी थी। उसके खिलाफ हरियाणा से आवाज उठी और फिर चंडीगढ़ से आवाज उठी। यह आवाजें अपने साथ क्षेत्र को उग्रवाद की तरफ ले गर्इं। कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। कई बड़े नेता उग्रवाद की भेंट चढ़ गए। इसका कारण सिर्फ पंजाब का उग्रवाद था। करोड़ों-अरबों की संपत्तियों का नुकसान हुआ।
बहुत मुश्किल और प्रयासों के बाद क्षेत्र में शांति बहाल हुई थी। चावला ने कहा कि बयानबाजियों से वही दिन लौट कर आ सकते हैं। इस मुद्दे पर पहले पंजाब बोला, फिर हरियाणा से आवाज उठी और अब चंडीगढ़ बोलेगा। कल कुछ गर्म ख्याली नेता बोलेंगे। फिर हरियाणा से कुछ आवाजें उठेंगी। इसका अंत कहां होगा। चावला कहते हैं कि चंडीगढ़ पंजाब और हरियाणा की राजधानी होने के अलावा केन्द्र शासित भी है। यहां का हाईकोर्ट संयुक्त है, विधानसभा का भवन एक है। नगर निगम भी बन गया है। पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ तीनों मिल कर इसकी देखरेख करते हैं। चंडीगढ़ की मौजूदा स्थिति की वजह से ही उसकी पहचान है, तरक्की की है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर का दर्जा प्राप्त किया है।
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