उन दिनों सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) स्कूल में पढ़ते थे। वह सभी विषयों में तो बहुत तेज थे लेकिन बांग्ला भाषा पर उनकी पकड़ कम थी। एक दिन बांग्ला के अध्यापक ने विद्यार्थियों को एक निबंध लिखने के लिए दिया। सुभाष चूंकि बांग्ला में कमजोर थे, इसलिए उनके निबंध में अनेक कमियां निकलीं। सभी विद्यार्थी उनका मजाक उड़ाने लगे। कक्षा का एक विद्यार्थी सुभाष से बोला, ‘वैसे तो तुम देशभक्त बनते हो मगर अपनी ही भाषा पर तुम्हारी पकड़ कमजोर है।’ सुभाष को यह बात चुभ गई। अब उन्होंने बांग्ला के व्याकरण का अध्ययन करना आरंभ कर दिया।
उन्होंने दृढ़ संकल्प किया कि अब वे बांग्ला भाषा में केवल पास होने लायक अंक ही नहीं लाएंगे बल्कि उसमें अव्वल होंगे। कुछ समय बाद सुभाष ने बांग्ला में महारत हासिल कर ली। वार्षिक परीक्षाएं निकट थीं। अधिकतर विद्यार्थी बालक सुभाष को देखकर बोलते, ‘चाहे तुम कक्षा में प्रथम आ जाओ किंतु बांग्ला विषय में पास हुए बिना तुम सर्वप्रथम नहीं कहला सकते।’ वार्षिक परीक्षाएं हुईं। Subhash Chandra Bose
परिणाम के दिन जब शिक्षक ने कक्षा में सर्वप्रथम आने वाले विद्यार्थी के रूप में सुभाष का नाम पुकारा तो उनसे ईर्ष्या करने वाला विद्यार्थी बोला, ‘भला यह कैसे संभव है? बांग्ला में तो यह मुश्किल से पास होता है। फिर यह सर्वप्रथम कैसे?’ इस पर शिक्षक मुस्करा कर बोले, ‘हैरानी तो इसी बात की है कि इस बार सुभाष ने सभी विषयों के साथ-साथ बांग्ला में भी सबसे अधिक अंक प्राप्त किए हैं।’ यह सुनकर सभी विद्यार्थी दंग रह गए। सुभाष अपना परिणाम प्राप्त करने के बाद विद्यार्थियों से बोले, ‘यदि मन में लगन, उत्साह और एकाग्रता हो तो इंसान सब कुछ हासिल कर सकता है।’
यह भी पढ़ें:– PAN Card: अब नहीं चुरा सकते आप किसी की पहचान, मोदी सरकार ने किया ये प्रावधान!