Subedar Joginder Singh Birth Anniversary: भारत-चीन युद्ध जोकि वर्ष 1962 में लड़ा गया था और जो देश के इतिहास में काले अक्षरों में लिखा हुआ है, क्योंकि इस युद्ध में भारत को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन इस जंग का एक ऐसा हीरो, एक ऐसा बहादुर योद्धा भी था, जिसने गोली लगने के बाद भी हार नहीं मानी और जंगल के शेर के सामान अकेला युद्ध के मैदान में डटा रहा। ये हीरो कोई और नहीं बल्कि सूबेदार जोगिंदर सिंह थे, जिनकी आज यानी 26 सितंबर को पुण्यतिथि मनाई जा रही है। जोगिंदर सिंह ने ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ के नारे लगाते हुए चीनी सेना पर हमला किया था और अकेले ही चीनी फौज पर भारी पड़े।
पंजाब के मोगा कलां में 26 सितंबर 1921 में पैदा हुए देश के लिए शहीद होने वाले सूबेदार जोगिंदर 1936 में फौज में भर्ती हुए थे। जोगिंदर ने सबसे पहले साल 1948 में भारत और पाकिस्तान युद्ध में भाग लिया था। साल 1962 में जब भारत की चीन के साथ जंग शुरू हुई तो जोगिंदर सिंह बुमला में तैनात थे, जिस बैटल को इन्होंने लड़ा था, उसे बैटल आॅफ बुमला के नाम से जाना जाता है। 20 अक्टूबर 1962 को भारत के सामने अचानक चीनी सेना आ खड़ी हुई।
इस दौरान चीनी सेना के 200 चीनी सैनिक और उनके मुकाबले भारत के पास बहुत ही कम सैनिक थे। बावजूद इसके सूबेदार जोगिंदर सिंह और उनके तुच्छ साथी चीनी सेना पर भारी पड़े, कई चीनी सैनिक तो छिपने को मजबूर हो गए। दोबारा फिर चीनी सेना ने छिपकर उन पर हमला कर दिया, इस हमले में जोगिंदर सिंह की जांघ में गोली लग गई। ऐसे में भी वो घबराए नहीं बल्कि गोली लगने के बाद भी वो चीनी सैनिकों के सामने डटे हुए थे और उनके खिलाफ लड़ते रहे।
उन्होंने जांघ पर पट्टी बांधकर बड़ी ही बहादुरी से बहुत से चीनी सैनिकों को ढेर कर दिया। इस दौरान बहुत से चीनी सैनिक आए और जोगिंदर सिंह को युद्धबंदी बना लिया गया। ऐसे में एक दिलचस्प बात जोकि यह है कि जब चीनी सेना को पता चला कि जोगिंदर सिंह के शहीद होने की सूचना के बाद उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया है तो वो भी सम्मान से भर गई। चीन ने पूरे सम्मान के साथ 1963 में जोगिंदर सिंह की अस्थियों को उनकी बटालियन को सौंप दिया।