2020 के मुकाबले इस बार 40 फीसदी कम जलाई गई पराली
सुनाम ऊधम सिंह वाला(सच कहूँ/कर्म थिंद)। पिछले सप्ताह से किसानों द्वारा धान के अवशेष को आग लगाने का सिलसिला लगातार अब भी जारी है। पिछले 5 दिनों से पराली का धुआं आसमान में छाया हुआ है और दिन के समय भी अंधेरा जैसा माहौल बना हुआ है। आज पांच दिनों बाद कुछ समय के लिए सूर्य देवता के दर्शन हुए हैं। इस धूएं से जहां जनजीवन भी प्रभावित हो रहा है वहीं बीमार व्यक्तियों और स्वास के मरीजों के यह जहरीला धुआं आफत बन रहा है। आम लोगों को भी इस धूएं से बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
कुछ लोगों ने बात करते कहा कि इस जहरीले धुएं के कारण आंखों में जलन हो रही है, गला खराब और खांसी, जुकाम की शिकायत आम ही देखने को मिल रही है। परंतु प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के विवरणों अनुसार 2020 के मुकाबले इस साल पराली 40 फीसदी कम जलाई गई है। शुरूआत के समय में तो किसानों द्वारा पराली बहुत कम जलाई गई थी परंतु बाद में पराली के अवशेष को संभालने वाले यंत्रों की कमी के चलते किसान पराली को जलाने में प्राथमिकता दे रहे हैं।
बहुत से किसानों ने कहा कि अगर उनको पराली की संभाल वाले कृषि यंत्र सही समय पर मिल जाते तो वह पराली को जलाने से गुरेज करते, परंतु अगर वह इसमें अगर देरी करते हैं तो उनका गेहूं बिजाई का समय निकल जाएगा, जिससे उनको पिछेती गेहूं के उत्पादन का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इस संबंधी विभिन्न क्ख किसान यूनियनों ने ऐलान किया है कि या तो सरकार पक्के तौर पर पराली के हल के लिए उनको प्रति क्विंटल उचित मुआवजा दे या फिर पराली के अवशेष को संभालने के लिए मशीनरी मुहैया करवाए और अगर ऐसा नहीं होता है तो उनके पास पराली को आग लगाने के अलावा कोई चारा नहीं है।
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