सख्ती बरतना कांगे्रस की मजबूरी बनी

Strictness became the compulsion of Congress
अब जो कुछ भी हो, एक बात स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आई है कि कांग्रेस ने कर्नाटक और मध्यप्रदेश के घटनाक्रम से सीख जरूर ली है, उसी का यह नतीजा है कि कांग्रेस ने पायलट और उसके साथियों के विरुद्ध कड़ा रूख अख्तियार किया है। परिणामस्वरूप पायलट को न केवल उप मुख्यमंत्री बल्कि प्रदेशाध्यक्ष पद से हाथ धोना पड़ा है। इसी तरह तीन मंत्रियों की भी छुट्टी कर दी। इतनी बड़ी कार्यवाही की पायलट को भी उम्मीद नहीं थी। अब यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस पिछले कुछ वर्षों से राजनीति के क्षेत्र में गंवा चुकी प्रतिष्ठा पुन: हासिल करने हेतु अब अपने नये रूप में नजर आ रही है। दरअसल यूथ नेता मध्य प्रदेश जैसी बगावत कर पार्टी में अपना अस्तित्व बनाना चाहते थे।
हालांकि अब कांग्रेस पार्टी हाईकमान की सोच यह दर्शा रही है कि कि अनुशासन के बिना न सरकार चलाई जा सकती है और न ही पार्टी, साथ ही एक ही पार्टी में दो पक्ष सरकार के काम में बाधक बनते हैं। पार्टी में लोकतंत्र आवश्यक है लेकिन जब पद के लिए खींचतान बढ़ जाए तब अनुशासन भंग होता है। यूं भी कांग्रेस देश की पहली पार्टी है जिसने यूथ विंग के चुनाव शुरू कर पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की परंपरा शुरू की है। हलांकि इन चुनावों में भी कई बार पुराने राजनीतिक घरों के युवा भी बाजी मार जाते हैं फिर भी नए मेहनती और समर्पित नेताओं को भी मौका मिल जाता है। भले ही पार्टी में लोकतंत्र जरूरी है लेकिन यह पार्टी का आंतरिक मामला होता है। सरकार के नेतृत्व में परिवर्तन और मंत्रीमंडल में फेरबदल जैसे निर्णय पार्टी मंच पर रखकर सत्तापक्ष के लिए राजनीतिक स्थिरता की जिम्मेदारी को निभाना जरूरी है। सरकार गिरना, मध्यकालीन चुनाव और आए दिन मुख्यमंत्री बदलना राजनीति में कोई अच्छा परिणाम लेकर नहीं आता।
कांग्रेस हाईकमान द्वारा लिया सख्त फैसला राजनीतिक क्षेत्र में उचित कदम है, लेकिन देखना यह होगा कि पार्टी इस निर्णय के कितने प्रभावशाली तरीके से लागू करती है। इस मामले में भाजपा ने पिछले 10 वर्ष में अनुशासन की मिसाल कायम की है, जिसने नए नेताओं को मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी दी। विशेष तौर पर हरियाणा में मनोहर लाल को निरंतर दूसरी बार राज्य की कमान सौंपी। अदित्यानाथ योगी का चुनाव से पहले कहीं जिक्र नहीं था, बस पार्टी ने कमान सौंपी और कहीं भी विरोध नहीं हुआ। कांग्रेस के लिए राजस्थान किस तरह की अनुशासन का प्रयोगशाला साबित होता है, यह समय बताएगा। कांग्रेस को न केवल आज अपने संगठन की मजबूती के लिए प्रयास करने होंगे बल्कि संयोजन और समन्वय पर आधारित रणनीति पर ध्यान देना होगा। यदि कांग्रेस को अपनी खोई हुई ख्याति पुन: प्राप्त करनी है, तो उसके लिए संगठन के शीर्ष से लेकर निम्न स्तर तक कार्यकतार्ओं और नेताओं का अपने संगठन के प्रति पूर्ण समर्पण भाव के साथ सक्रिय रहना एक जरूरी शर्त है।

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।