माननीय राष्टÑपति रामनाथ कोविंद ने उस बिल पर हस्ताक्षर कर दिए हैं, जिससे रिश्वत देने वालों के खिलाफ भी सजा देने वाला कानून बन गया है। रिश्वतखोरी बहुत ही बड़ी समस्या है जो लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को लागू करने में अड़चन पैदा कर रही है। तेज-तर्रार लोग रिश्वत देकर अपना काम निकलवाने में सफल हो जाते हैं। गरीब लोगों के काम लटकते रहते हैं व अपना काम करवाने के लिए सरकारी कार्यालयों में परेशान होते रहते हैं। दुनिया भर के सर्वेक्षण में रिश्वतखोरी में भारत का नाम चोटी पर रहा है।
रिश्वत की वजह से अधिकारी कोई न कोई तरीका निकालकर गैर-कानूनी काम करवाने में माहिर बने हुए हैं। एक कलर्क से लेकर उच्च पदाधिकारी व राजनीतिक नेता रिश्वत के मामलों में फंसे हुए हैं। नए कानून से रिश्वतखोरी पर कुछ हद तक रोक लगेगी। प्रतिदिन ही पटवारी, जूनीयर इंजीनियर, पुलिस अधिकारी रिश्वत लेने के मामलों में गिरफ्तार किए जा रहे हैं। महिला पुलिस अधिकारी भी रिश्वतखोरी की चर्चा में आ रही हैं। रिश्वतखोरी का ही परिणाम है कि एक-दो दिनों में होने वाला काम 6 महीनों तक लटक जाता है। रिश्वतखोरी का यह धंधा जहां सरकारी सेवाएं ठप्प कर रहा है वहीं निजी कंपनियों ने रिश्वत देकर मोटा पैसा कमाया है। ट्रांसपेरेसी इंटरनैशनल संस्था ने अपने एक सर्वेक्षण में दावा किया है कि 69 फीसदी भारतीय सरकारी काम करवाने के लिए रिश्वत देते हैं।
भारत की गिनती रिश्वत लेने वाले पांच चोटी के देशों में होती है। रिश्वत मांगने वालो में पुलिस सबसे आगे है। बेशक नया कानून बनने से रिश्वतखोरी में कमी आएगी लेकिन यह भी यकीनी बनाना होगा कि अधिकारियों व कर्मचारियों की जिम्मेवारी भी तय की जाए कि वे निश्चित समय के अंदर लोगों के काम करें। पारदर्शिता सबसे जरूरी है। कुछ राज्यों में सेवा का अधिकार कानून लागू किया गया है, जिसके तहत तय समय में काम न होने पर संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी लेकिन यह कानून भी सिर्फ कागजों तक ही सीमित होकर रह गया। अब रिश्वत देने वालों के खिलाफ कार्रवाई होने से सरकारी ढ़ांचा चुस्त-दुरूस्त हो सकता है, बशर्ते कि अधिकारियों के कामों को लेखा-जोखा हो।