जब कभी कहीं आतंकी हमले होते हैं तो मानवता की चीख-पुकार पूरी दुनिया सुनती है। पर, अफसोस कि एकाध दिन में हालात सामान्य हो जाते हैं और सरकार आतंकियों पर की जाने वाली कार्रवाईयों को भूल जाती है। परिणाम यह होता है कि मौका पाकर खूनी खेल खेलने वाले ये दुर्दांत आतंकी फिर कोई बड़ा कारनामा कर जाते हैं। हम चर्चा 10 जुलाई की देर शाम अमरनाथ यात्रियों पर हुए आतंकी हमले के प्रसंग की कर रहे हैं।
पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में अमरनाथ यात्रियों पर हुए हमले की जिम्मेदारी ली है। इस हमले में 6 महिलाओं समेत 7 श्रद्धालुओं की मौत हुई, जबकि 32 घायल हो गए।
कश्मीर के आईजी मुनीर खान के अनुसार, पाकिस्तानी आतंकवादी अबू इस्माइल ने हमले की साजिश रची थी। आईबी का कहना है कि इस हमले को कुल 4 आतंकियों ने अंजाम दिया। इसमें पाकिस्तान के दो और दो स्थानीय आतंकी थे।
सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अमरनाथ श्रद्धालुओं पर हमले के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कश्मीर की स्थिति से जुड़ी जानकारी दी। जानकारी मिलने पर पीएम ने घटना की कड़ी निन्दा की तथा शोक संतप्त परिवार के प्रति संवेदना प्रकट की। सबके बावजूद इस हमले ने कुछ सवाल छोड़े हैं, जिसका जवाब सरकार व खुफिया एजेंसियों को देर-सबेर देना होगा।
आपको बता दें कि 17 साल पहले 2001 में अमरनाथ यात्रियों पर हुआ आतंकी हमला आखिरी था। 21 जून, 2001 को शेषनाग के निकट हुई आंतकी घटना में 6 तीर्थयात्रियों समेत 13 लोगों की मौत हुई थी। जिसमें 2 पुलिस वाले भी शामिल थे।
आतंकियों ने यात्रा के रास्ते में लैंड माइन से धमाका कर और गोलीबारी कर यात्रियों पर हमला किया था। यह घटना पवित्र गुफा से महज 19 किमी दूर हुई थी। इस आतंकी घटना के बाद यात्रा स्थगित कर दी गई थी। जब ये हमला हुआ था उस वक्त तकरीबन 3 हजार अमरनाथ यात्री शेषनाग में रात्रि विश्राम कर रहे थे। हमला करने वाला आतंकी साधु के भेष में तीर्थ यात्रियों के साथ घुलमिल गया था।
उसने पहले से रास्ते में बिछाई गई आईईडी डिवाइस को रिमोट के जरिए ब्लास्ट किया और एके-47 से अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। उस आतंकी की घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी। 2001 से पहले साल 2000 में पहलगाम में आतंकियों ने अमरनाथ यात्रियों को अपना निशाना बनाया था। इस हमले में 30 लोगों की जान चली गई थी।
उल्लेखनीय है कि अमरनाथ यात्रा हिंदुओं के लिए पवित्र अमरनाथ गुफा तक की यात्रा है। यह गुफा समुद्र तल से 3,888 मीटर यानी 12,756 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां तक केवल पैदल या खच्चर के जरिए ही पहुंचा जा सकता है। दक्षिण कश्मीर के पहलगाम से ये दूरी करीब 46 किलोमीटर की है। जिसे पैदल पूरा करना होता है। इसमें अमूमन पांच दिन तक का वक्त लगता है।
एक दूसरा रास्ता सोनमर्ग के बालटाल से भी है, जिससे अमरनाथ गुफा की दूरी महज 16 किलोमीटर है। लेकिन मुश्किल चढ़ाई होने के कारण ये रास्ता बेहद कठिन माना जाता है। ये गुफा बर्फ से ढकी रहती है, लेकिन गर्मियों में थोड़े वक्त के लिए जब गुफा के बाहर बर्फ मौजूद नहीं होती, उस वक्त तीर्थयात्री यहां पहुंच सकते हैं। श्रावण के महीने में ये यात्रा शुरू होती है।
45 दिनों तक तीर्थ यात्री यहां आ सकते हैं। इस यात्रा के लिए आने वाले लोगों की बढ़ती संख्या को देखकर ही 2000 में श्राइन बोर्ड का गठन किया गया जो राज्य सरकार से मिलकर इस यात्रा को कामयाब बनाता है।
जानकारी के अनुसार, अमरनाथ गुफा के दर्शन के लिए हर साल लाखों हिंदू श्रद्धालु अपना पंजीयन कराते हैं। हालांकि भारत प्रशासित कश्मीर में मौजूदा तनाव को देखते हुए इस साल इस यात्रा में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है।
इस यात्रा की शुरूआत से पहले सुरक्षा बलों ने मीडिया को जो जानकारी दी थी, उसके मुताबिक 300 किलोमीटर लंबे रूट के लिए सेना, पैरामिलिट्री फोर्स और राज्य पुलिस के करीब 14 हजार जवानों को तैनात किया गया है।
सेना की दो बटालियनों के अलावा सीआरपीएफ और बीएसएफ की 100 टुकड़ियों को तैनात किया गया है। यह संख्या पिछले साल अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा कर रहे जवानों की तुलना में दोगुनी है। कश्मीर में मौजूदा तनाव को देखते हुए सुरक्षा बलों को किसी चरमपंथी हमले की आशंका पहले से थी, लिहाजा इस बार ज्यादा सुरक्षा बलों को अत्याधुनिक तकनीकों से भी लैस किया गया था।
अलग से बटालियनों को कवर अप के लिए भी तैनात रखा गया। बावजूद इसके 10 जुलाई की रात आतंकी हमले हुए, जिसमें आधा दर्जन से अधिक लोगों की जान चली गई और दर्जनों लोग जख्मी हो गए। अब सवाल यह है कि बगैर श्राइन बोर्ड की अनुमति और उसमें पंजीकृत हुए बगैर गुजरात की यात्रियों से भरी बस को वहां क्यों जाने दिया गया? बस को रास्ते में रोककर सुरक्षाकर्मियों ने जांच-पड़ताल क्यों नहीं की?
यदि वह बस सुरक्षा के मानकों को पूरा नहीं कर रही थी तो उसे आगे जाने की अनुमति देनी ही नहीं चाहिए। बहरहाल, कहा जा रहा है कि कश्मीर में आतंकियों ने अपने 15 साल पुराने अलिखित वादे को तोड़ दिया है, जिसमें अमरनाथ यात्रियों पर हमला नहीं करने की बात कही गई थी। अमरनाथ यात्रा कश्मीर में काफी विवाद का विषय रहा है,
बावजूद पिछले एक दशक से ज्यादा समय से यह आतंकी घटनाओं से दूर ही रहा। पिछले साल एक एनकाउंटर में मारे गए हिज्बुल आतंकी बुरहान वानी का भी एक वीडियो जून में जारी हुआ था, जिसमें वह अमरनाथ यात्रियों को विश्वास दिला रहा था कि उन्हें आतंकियों द्वारा नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि खून के प्यासे आतंकियों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। अब देखना यह है कि सरकार इस घटना के बाद क्या कार्रवाई करती है।
-राजीव रंजन तिवारी
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