कैथल में खूंखार हुए कुत्ते, 14 माह में 3576 को बनाया शिकार

Kairana News
Stray Dogs: आवारा कुत्तों के आतंक से निजात दिलाए जाने की गुहार

सरकारी अस्पताल में रोजाना पहुंच रहे 50 से 70 पीड़ित मरीज | Stray Dogs menace

कैथल(सच कहूँ/विकास कुमार )। सावधान! अगर आप वाहन से या पैदल किसी गली, मोहल्ले या बाजार से गुजर रहे हैं तो अचानक आवारा कुत्तों(Stray Dogs Panic) द्वारा आप पर हमला करके घायल किया जा सकता है। वर्ष 2019 में जनवरी से लेकर दिसंबर माह तक 3076 लोगों को आवारा कुत्तों द्वारा अपना शिकार बनाया जा चुका है और वर्ष 2020 में जनवरी व फरवरी माह में 500 के करीब लोगों को कुत्तों द्वारा काटा जा चुका है।

  • कैथल शहर व आसपास के गांवों में लगातार आवारा कुत्तों का आतंक बढ़ता ही जा रहा है।
  • शहर व गांवों की हर गली, चौराहों पर कुत्तों की भरमार देखी जा सकती है।
  • आने-जाने वाले वाहन चालकों के साथ राहगीरों पर भौंकने के साथ काट रहे हैं।
  • आवारा कुत्ते विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त भी है, जो शहर में कई प्रकार की बीमारियों को न्यौता भी दे रहे हैं।
  • आलम यह बन चुका है कि कुत्तों द्वारा बच्चे, युवा, महिलाएं व बुजर्गों को अपना शिकार बनाया जा रहा है।
  • सरकारी अस्पताल में रोजाना 50 से 70 लोग कुत्ते के काटने का इलाज करवाने के लिए पहुंचे हैं।
  • अस्पताल परिसर में बने टीकाकरण कमरे में रैबिज का टीका लगवाने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ रही है।

आवारा कुत्तों पर नकेल कसने में प्रशासन नाकाम | Stray Dogs Panic

लोगों में इस बात को लेकर भारी रोष है कि शहर में हजारों की तादाद में सड़कों पर घूम रहे आवारा कुत्तों पर प्रशासन द्वारा नकेल कसने के लिए कोई कठोर कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। (Stray Dogs Panic)कुत्तों द्वारा निरंतर लोगों को काटने के कारण शहरवासियों में भय व दहशत का माहौल भी देखा जा रहा है। कुत्तों के डर से छोटे-छोटे बच्चे घरों से बाहर निकलने से भी कतराने लगे हैं, क्योंकि बच्चों के हाथों में खाने की वस्तुए देखकर कुत्तें छीनने की कौशिक करते हैं और इस दौरान बच्चों को काट लेते हैं।

लोगों का आरोप है कि शहर में कुत्तों द्वारा लोगों को काटने की बढ़ रही संख्या के बारे में कई बार प्रशासन को अवगत करवाया जा चुका है, लेकिन प्रशासन इस तरफ किसी प्रकार का ध्यान देने की जहमत नहीं उठा रहा है। शहरवासियों ने प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन से शहर व आसपास के गांवों में लगातार बढ़ रही आवारा कुत्तों के बढ़ रहे प्रकोप पर अंकुश लगाने की मांग की है, ताकि लोगों के दिलों में कुत्तों के आतंक को लेकर बढ़ रहा खौफ कम हो सके।

सरकारी अस्पताल में 100 रुपए में मिलने वाला रैबिज का टीका, बाजार में तीन गुना महंगा

सरकारी अस्पताल में 100 रुपए में मिलने वाले रैबिज के टीके की कीमत बाजार में 380 से लेकर 490 रुपए कीमत है। ग्रामीणा इलाकों से कुत्ते के काटने का सरकारी अस्पताल कैथल में आने वाले मरीजों का कहना है कि कस्बा ढांड सहित विभिन्न गांव के कई सरकारी अस्पतालों में रैबिज के टीके न होने की सूरत में उन्हें कैथल या कौल के अस्पताल में इलाज के लिए आना पड़ता है। जिस कारण समय व धन की तो बर्बादी होती है और कई बार कुत्ते द्वारा अधिक काटने पर जख्म बड़ा होने पर ऐसी सूरत में प्राइवेट अस्पताल में महंगा इलाज करवाना पड़ता है। मौजूदा समय में ढांड प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में रैबिज के टीके नहीं है। लोगों ने प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन से मांग की है कि रैबिज के टीके गांवों में बने अस्पतालों में भी उपलब्ध करवाएं जाए, ताकि लोगों को किसी प्रकार की परेशानी ना हो।

रैबिज के टीकों को अस्पताल में पूरा स्टाक : हरबीर सिंह

सरकारी अस्पताल में फार्मास्सिट हरबीर सिंह ने बताया कि कैथल सरकारी अस्पताल के दर्ज रिकार्ड के अनुसार कैथल शहर व आसपास के गांव में गत वर्ष जनवरी से दिसंबर माह में 3076 व इस वर्ष जनवरी व फरवरी माह में लगभग 500 बच्चे, युवा, बजुर्ग व महिलाओं को आवारा कुत्तों द्वारा काटा गया है। जिनका इलाज सरकारी अस्पताल में किया गया है। इनमें बीपीएल पात्र लोग भी शामिल है। जिनका इलाज बी.पी.एल. का कार्ड दिखाने पर मुफ्त में किया जाता है, जबकि अन्य लोगों को एक बार 100 रुपए की फीस जमा करवानी पड़ती है और चार बार टीका लगवाने पर हर बार 100 रुपए की पर्ची कटती है। अस्पताल में रैबिज के टीकों का पूरा स्टाक है और मरीजों को कोई दिक्कत नहीं आने दी जा रही है।

प्रशासन उठाए इस दिशा में सख्त कदम: भार्गव

समाजसेवी राकेश भार्गव ने कहा कि सरकार व प्रशासन को चाहिए कि शहर व आसपास के गांवों में आवारा कुत्तों द्वारा लोगों को काटने की घटना पर नकेल कसने के लिए जल्द ही इस दिशा में कठोर कदम उठाने चाहिए, ताकि लोगों के मन में कुत्तों के बढ़ते कहर के प्रति बढ़ रहा भय कम हो सके। हालांकि पूर्व में आवारा पशुओं को पकड़ने के लिए संबंधित विभाग द्वारा ठेका दिया जाता था, लेकिन अबकी बार ऐसा नहीं हुआ है, जो सरासर गलत है।

 

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