सरसा। पूज्य हजूर पिता संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि रोजाना इस संसार में कितने ही लोग आते हैं और पता नहीं कितने ही चले जाते हैं, लेकिन कोई इससे शिक्षा नहीं लेता। पता नहीं कब आपका भी बुलावा आ जाए और आपको इस संसार से जाना पड़े। इसलिए ऐसा होने से पहले ही क्यों न मालिक की भक्ति-इबादत कर ली जाए ताकि आवागमन से आजादी मिल जाए। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि इन्सान को मान-बड़ाई के चक्कर में पड़कर पाप-कर्म नहीं करना चाहिए, क्योंकि एक दिन सभी ने इस दुनिया को छोड़कर जाना है। इन्सान को पाप-कर्म न करके जितना हो सके मालिक की भक्ति-इबादत करनी चाहिए, दूसरों का भला करना चाहिए और अच्छाई-नेकी पर चलना चाहिए।
संत यही शिक्षा देते हैं कि इन्सान हमेशा सही रास्ते पर चले, अपने मंजिले-मकसूद तक पहुंचे। यहां रहते हुए खुशियां हासिल करे और अगले जहान के लिए भी मालिक की दया-मेहर के काबिल बना रहे। आप जी फरमाते हैं कि आज का इन्सान गृहस्थी चलाता हुआ बड़ा ही परेशानी और टेंशन में रहता है। सुबह उठते ही टेंशन शुरू हो जाती है। इन्सान बचपन, जवानी खेलते-खेलते गुजार देता है। उसे समय का कुछ भी पता नहीं चलता लेकिन थोड़ी-सी अधेड़ उम्र आते ही उसे अहसास होता है कि गृहस्थ क्या होती है? जिस समय इन्सान की शादी होती है उस समय वह बहुत खुश होता है।
सोचता है कि उसके जैसा तो दुनिया में और कोई दूसरा है ही नहीं, लेकिन बच्चे होने पर वह दु:खी, परेशान रहने लगता है। कभी बच्चों के लिए ये लाना, कभी वो, कभी बीमारी। इन्सान सारा जीवन ऐसे ही टेंशन में काट देता है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि आज का इन्सान बड़ा ही चालाक बनता है। वह भगवान को झांसा देने से भी नहीं चूकता। हाथ जोड़कर ऐसे बैठ जाता है कि जैसे अभी सीधा आसमान से उतरा हो लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। सभी को गुरु-गुरु करना चाहिए। मालिक की भक्ति करनी चाहिए, सुमिरन करना चाहिए तो यकिन मानिए आप अंदर-बाहर से खुशियों से मालामाल हो जाएंगे।
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