विवादों पर स्थिति स्पष्ट हो

Status on disputes should be clear
भारत और चीन की सेना के बीच कमांडर स्तर की बैठक को मोलडो में मैत्रीपूर्ण व सकारात्मक माहौल में हुई, आखिरकार चीन ने अपनी सेना को पीछे हटाने पर सहमति जताई है। इससे पूर्व चीन यह साबित करने पर अड़ा हुआ था कि गलती भारतीय सेना ने की है। हालांकि धोखेबाज चीन पहले की भांति अपनी बात पर कितना यथार्थ रहता है, यह तो समय ही बताएगा क्योंकि झड़प से पहले भी चीन ने अपनी सेना ढाई किलोमीटर पीछे हटाने की बात कही थी लेकिन देश में सरकार के लिए यह आवश्यक है कि मामले में भ्रम दूर कर स्पष्ट जानकारी दी जाए। होना तो यह चाहिए था कि सर्वदलीय पार्टी मीटिंग के बाद किसी भी प्रकार के मतभेद की गुंजाईश न रहे लेकिन हुआ इससे विपरीत।
सर्वदलीय मीटिंग के बाद सरकार व विपक्षी दलों के जमकर ब्यानबाजी हो रही है, जो अभी तक रूकी नहीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस मामले संबंधी दिए गए बयान के बाद कांग्रेसी नेता राहुल गांधी, सोनिया गांधी, पी चिंदम्बरम व डा. मनमोहन सिंह के बयान मीडिया में आए। हमारे नेताओं के ब्यान दुश्मन देशों के लिए मददगार न बने, इसको लेकर भी सावधान रहना होगा। राहुल गांधी ने ‘झड़प’ भारत या चीन के क्षेत्र में होने संबंधी सवाल किया है और पी चिदम्बरम ने यह सवाल उठाया है कि यदि चीन हमारी जमीन में दाखिल ही नहीं हुआ तब झड़प से पहले विंग कमांडरों की मीटिंग क्यों हुई? इन परिस्थितियों में राजनीतिक बयान हालातों को और भी उलझन में डाल देते हैं, साथ ही सैनिकों में भी भ्रम व नाकारात्मक प्रभाव पड़ता है। दरअसल इस विषय पर असमंजस की स्थिति सरकार ने बनाई, क्योंकि झड़प क्षेत्र संबंधी किसी भी सेना के वरिष्ठ अधिकारी ने जानकारी नहीं दी। यदि सेना के वक्ता या विदेश मंत्रालय इस मामले को स्पष्टता से मीडिया के समक्ष पेश करते, तब इतनी नौबत आनी ही नहीं थी। लोगों व सेना में भ्रम की स्थिति पैदा नहीं होनी थी। जानकारी में जरा सी त्रुटि कूटनीतिक संघर्ष को कमजोर कर सकती है।
नि:संदेह सभी राजनीतिक दल व लोग सेना के साथ डटकर खड़े हैं। संवेदनशील मामलों में अस्पष्टता व जानकारी देने में देरी नुकसानदायक साबित हो सकती है, ऐसे में चीन और नेपाल जैसे धोखेबाज देशों मौका का फायदा उठा सकते हैं। चीन के बाद अब पाकिस्तान भी भारत के खिलाफ सक्रिय हो गया है। वह (पाक) भारत-चीन विवाद में कश्मीर में मुद्दा उठाकर अपना उल्लू सीधा करने के लिए मुस्लिम देशों के संगठन (ओआइसी) में जा रहा है। बाहरी ताकतों के साथ निपटने के लिए आंतरिक एकता व मजबूती की आवश्यकता होती है जो विश्वास व वास्तविक्ता पर टिकी होती है। बेहतर हो यदि इस मामले में प्रोटोकॉल की पालना की जाए।

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