राष्ट्रीयता के महानायक, प्रथम उपप्रधानमन्त्री तथा प्रथम गृहमन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को इस वर्ष उनके जन्मदिवस पर समूचा राष्ट्र एक अनूठे एवं यादगार तरीके उन्हें याद करेगा। इस दिन उनकी स्मृति में निर्मित किये गये एकता की मूर्ति-स्टैच्यू आॅफ यूनिटी का भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लोकार्पण किया जाएगा। यह एक अनूठा, विलक्षण एवं दर्शनीय स्मारक है, जो गुजरात में सरोवर बांध से 3.2 किमी की दूरी पर साधू बेट नामक स्थान पर निर्मित किया गया है जो कि नर्मदा नदी पर एक टापू है। यह विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति है, जिसकी लम्बाई 182 मीटर (597 फीट) है। वर्तमान में विश्व की सबसे ऊँची स्टैच्यू या मूर्ति 152 मीटर की चीन में स्प्रिंग टैम्पल बुद्ध है।
उससे कम दूसरी ऊँची मूर्ति भी भगवान बुद्ध की ही है जिसकी ऊँचाई 120 मीटर है। बुद्ध की यह मूर्ति सन् 2008 में म्याँमार सरकार ने बनवायी थी और विश्व की तीसरी सबसे ऊँची मूर्ति भी भगवान बुद्ध की है, जो जापान में है, जिसकी ऊँचाई 116 मीटर हैं। स्टैच्यू आॅफ यूनिटी सरदार पटेल की तेजस्विता एवं राष्ट्रीयता का स्मृति स्थल है, यह उनके प्रति सम्पूर्ण राष्ट्र की श्रद्धांजलि का तीर्थ स्थल भी है। स्टैच्यू आॅफ यूनिटी का बड़ा सच यह है कि सही समय पर लिये गये इस निर्णय ने सरदार पटेल के राष्ट्र-निर्माण में किये गये योगदान का सही मूल्यांकन किया है। यह स्मारक चुनौती बना है उन लोगों के लिये जो राष्ट्रीय एकता के लिये सिर्फ योजनाएं बनाते हैं, पर क्रियान्विति में पसीना नहीं बहाते। यह स्मारक एक सन्देश भी है उनके लिये जो ऐसे राष्ट्र-नायक के योगदान को विस्मृत करने की कुचेष्टाएं करते हैं, उनके नाम पर राजनीति करते हैं।
सच तो यह है कि इस स्मारक ने हमारे भीतर विश्वास एवं विवेक को और अधिक सुदृढ़ता दी है कि खोजने वालों को उजालों की कमी नहीं है। सार्वभौम व्यक्तित्व की इस तरह की जा रही अभ्यर्थना भारतीय संस्कृति का गौरव बन रही है। स्टैच्यू आॅफ यूनिटी एक ऐसे विराट व्यक्तित्व का स्मारक है, जो एक राजनेता ही नहीं, एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं बल्कि इस देश की आत्मा थे। राष्ट्रीय एकता, भारतीयता एवं राजनीति में नैतिकता की वे अद्भुत मिसाल थे। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष भी कहा जाता है। उन्हें 1991 में भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। भले ही वे आज हमारे बीच नहीं है लेकिन वे इस माटी के लिए किये गये उल्लेखनीय अवदानों के लिए सदियों तक याद किये जायेंगे और यह स्मारक उसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।
सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाड में हुआ। वे कृषक परिवार से थे। उनके पिता का नाम झवेरभाई पटेल एवं माता का नाम लाडबा देवी है। वे उनकी चौथी संतान हैं। लन्दन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढ़ाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। उनका जन्म दिवस राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्टैच्यू आॅफ यूनिटी केवल मूर्ति या स्टैच्यू नहीं है, यह एक सम्पूर्ण स्मारक है जहां मेमोरियल संग्रहालय, गार्डेन और श्रेष्ठ भारत भवन नाम से एक कन्वेंशन सेंटर भी होगा। जहां सरदार पटेल का सम्पूर्ण जीवन सजीव एवं प्रभावी तरीके से प्रस्तुत होगा। जैसाकि उनका 1893 में 16 साल की आयु में ही झावेरबा के साथ विवाह कर दिया गया था। उन्होंने अपने विवाह को अपनी पढ़ाई के रास्ते में नहीं आने दिया। 1897 में 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। 1900 में जिला अधिवक्ता की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, जिससे उन्हें वकालत करने की अनुमति मिली।
गोधरा में वकालत की प्रेक्टिस शुरू कर दी। 1902 में इन्होंने वकालत का काम बोरसद स्थानांतरित कर लिया। क्रिमिनल लॉयर के रूप में उनकी यश और कीर्ति चारों ओर फैली, खूब नाम कमाया। अपनी वकालत के दौरान उन्होंने कई बार ऐसे केस लड़े जिसे दूसरे नीरस और हारा हुए मानते थे। उनकी प्रभावशाली वकालत का ही कमाल था कि उनकी प्रसिद्धि दिनों-दिन बढ़ती चली गई। गम्भीर और शालीन पटेल अपने उच्चस्तरीय तौर-तरीकों लिए भी जाने जाते थे। वे अपना कर्तव्य पूरी ईमानदारी, समर्पण व हिम्मत से साथ पूरा करते थे। उनके इन गुणों का साक्षात्कार तब हुआ जब सन् 1909 में वे कोर्ट में केस लड़ रहे थे, उस समय उन्हें अपनी पत्नी की मृत्यु (11 जनवरी 1909) का तार मिला। पढ़कर उन्होंने इस प्रकार पत्र को अपनी जेब में रख लिया जैसे कुछ हुआ ही नहीं। दो घंटे तक बहस कर उन्होंने वह केस जीत लिया। बहस पूर्ण हो जाने के बाद न्यायाधीश व अन्य लोगों को जब यह खबर मिली कि सरदार पटेल की पत्नी का निधन हो गया है तब उन्होंने सरदार पटेल से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि उस समय मैं अपना फर्ज निभा रहा था, जिसका शुल्क मेरे मुवक्किल ने न्याय के लिए मुझे दिया था। मैं उसके साथ अन्याय कैसे कर सकता था। ऐसी कर्तव्यपरायणता और शेर जैसे कलेजे की मिशाल इतिहास में विरले ही मिलती है। इससे बड़ा चरित्र और क्या हो सकता है?
स्टैच्यू आॅफ यूनिटी, सरदार पटेल का जीवन और दर्शन किस तरह भातीयता को सुदृढ़ करने साक्षी बना, उसको बयां करेगा। यह स्मारक सरदार पटेल के चिन्तन को सजीवता देगा। जैसाकि एकता में सबसे बड़ा बाधक स्वहित है। आज के समय में स्वहित ही सर्वोपरि हो गया है। आज जब देश आजाद है, आत्मनिर्भर है तो वैचारिक मतभेद उसके विकास में बेड़ियाँ बनी हुई हैं। आजादी के पहले इस स्वार्थी दृष्टिकोण एवं स्वहित की भावना का फायदा अंग्रेज उठाते थे और आज देश के राजनीतिक लोग। देश में एकता के स्वर को सबसे ज्यादा बुलंद सरदार पटेल ने किया था। उनकी सोच, उनका दर्शन, उनकी राष्ट्रीयता के कारण ही आज हम एक सूत्रता में बंधे हुए हैं। उनकी सोच आज के युवा जैसी नयी सोच थी। वे सदैव देश को एकता का संदेश देते थे। राष्ट्रीयता को उन्होंने केवल परिभाषित ही नहीं किया बल्कि उसे संगठित करके दिखाया।
वे अपना निजी त्याग, राष्ट्रीयता के प्रति सर्वस्व बलिदान कर देने की भावना एवं कठिन जीवनचर्या को वर्चस्व बनाकर किसी पर नहीं थोपते अपितु व्यक्ति की स्वयं की कमजोरियों को उसे महसूस करवाकर उससे उसको बाहर निकालने का मानवीय स्पर्श करते थे। आपने साल का वृक्ष देखा होगा- काफी ऊंचा् शील का वृक्ष भी देखें- जितना ऊंचा है उससे ज्यादा गहरा है। सरदार पटेल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व में ऐसी ही ऊंचाई और गहराई थी। जरूरत है इस गहराई को मापने की। उन्हें भारतीय राजनीति का आदर्श बनाकर प्रस्तुत करने की। एक महान राष्ट्रनायक के इन योगदानों का अंकन करने में यद्यपि यह स्मारक बहुत छोटा है, पर इसने राष्ट्रीय जीवन में सच्चे राष्ट्रनायक का सम्मान कर लोकतंत्र में लोगों की आस्था, आदर्श और आदर की भावना को एक साथ ऊंचाई और गहराई दे दी है।
सरदार पटेल अपनी विलक्षण सोच एवं अद्भुत कार्यक्षमता से असंख्य लोगों के प्रेरक बन गए। उनका जीवन एक यात्रा का नाम है- आशा को अर्थ देने की यात्रा, ढलान से ऊंचाई देने की यात्रा, गिरावट से उठने की यात्रा, मजबूरी से मनोबल की यात्रा, सीमा से असीम होने की यात्रा, जीवन के चक्रव्यूह से बाहर निकलने की यात्रा, परतंत्रता से स्वतंत्रता की यात्रा, बिखराव से जुड़ाव की यात्रा। उनका अभियान सफल हुआ और यह देश एकता के सूत्र में बंधा। उस महापुरुष के इसी मनोबल का साक्ष्य बनेगा स्टैच्यू आॅफ यूनिटी। सरदार पटेल का संपूर्ण जीवन विलक्षणताओं एवं उपलब्धियों का समवाय है जिसमें सर्वत्र देश के लिए त्याग भावना एवं कुछ नया करने का जज्बा दिखाई देता है। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध खेड़ा सत्याग्रह और बरडोली विद्रोह का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। उनकी सफलता का सफरनामा भी यही है कि दिशा एवं दायरों के चुनाव में उनका विवेकी निर्णय हर मोड़ पर जागृत रहा। प्रसिद्धि में अहं उन्हें कभी छू नहीं सका, आलोचनाओं एवं विरोध के बीच वे कभी आहत नहीं हुए। उनकी निष्काम, निस्पृह जीवनयात्रा सबके लिये प्रेरणा है और इस प्रेरकता की रोशनी यह स्टैच्यू आॅफ यूनिटी हमें देता रहेगा। यह स्मारक उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।
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