‘चुनावी वर्ष में अपव्यय बढ़ने से राज्यों को चालू वित्त वर्ष में ज्यादा कर्ज लेना होगा’

New Delhi
New Delhi ‘चुनावी वर्ष में अपव्यय बढ़ने से राज्यों को चालू वित्त वर्ष में ज्यादा कर्ज लेना होगा’

नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। राज्यों की वित्तीय स्थिति पर एमके ग्लोबल फाइनेशियल सर्विसेज कंपनी की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्यों में चुनावी वर्षों में उनकी सरकारों का वित्तीय अपव्यय अक्सर बढ़ जाता है और इस कारण कई राज्यों को चालू वित्त वर्ष में बाजार से अधिक कर्ज उठाना पड़ सकता है। ऐसे प्रमुख दस राज्य हैं जिनमें पिछले वित्त वर्ष या चालू वित्त वर्ष में विधानसभा चुनाव हुए हैं या चुनाव होने वाले हैं। रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर राज्य सरकारें चुनावी वर्ष में अपना राजस्व खर्च (अनुत्पादक खर्च) बढ़ा देती हैं और इसका असर पूंजी गत खर्च (उत्पादक खर्च) में कमी के रूप में भी दिखता है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वित्त वर्ष 2024-25 में ऐसे राज्यों को बाजार से अधिक कर्ज लेना पड़ सकता है।

स्टेट फाइनेंसेज शीर्षक ने जारी एमके ग्लोबल की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 20 वर्षों में 19 राज्यों के हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि औसतन, चुनावी वर्षों के दौरान राज्यों का राजकोषीय घाटा उनके सकल राज्य घरेलू उत्पाद ( जीएसडीपी) की तुलना में चुनावी वर्ष के पिछले वर्ष की तुलना में 0.5 प्रतिशत अधिक रहा। विश्लेषण से यह तथ्य भी उभरा है कि चुनावी वर्ष में जीएसडीपी की तुलना में उनके राजस्व व्यय का अनुपात 0.4 अधिक रहा और पूंजीगत व्यय का अनुपात 0.1 प्रतिशत कम रहा। इन दो दशकों में केवल पांच राज्यों में चुनावी वर्षों में राजकोषीय घाटे का स्तर कम हुआ। रिपोर्ट के अनुसार चुनावी वर्ष में वित्तीय अपव्यय के मामले में छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिश, झारखंड और हिमाचल प्रदेश सबसे आगे रहे हैं। ये वे राज्य है जिनमें हाल ही में चुनाव हुए हैं या अगले 15 महीनों में चुनाव होने वाले हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे चालू वित्त वर्ष और उसके बाद के वर्षों में इन राज्यों की राजकोषीय स्थिति फिसल सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र और राज्य दोनों ही स्तार पर विगत में सरकारें मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की चालें चलती रही हैं। इसी संदर्भ में रिपोर्ट में आंध्र प्रदेश में सस्ते चावल के वितरण की योजना, 2009 की केंद्र सरकार की कृषि ऋण माफी योजना, पीएम गरीब कल्यण योजना के तरह दी जा रही मुफ्त खाद्य योजना आदि का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में मामले में राज्यों और पार्टियों के बीच लोकलुभावनवाद अपनाने की होड़ को सरकारों के वित्तीय स्वास्थ्य की कमजोर दशा की दृष्टि से चिंता का विषय बताया गया है। वित्त वर्ष 2024- 25 के राज्य बजट लोकलुभावनवाद-आधारित राजकोषीय अपव्यय पर केंद्रित हैं। पांच प्रमुख राज्यों (कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना) में वित्त वर्ष 2023-24 में चुनाव कराए गए। अन्य पांच राज्यों आंध्र प्रदेश, ओडिशा, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में वित्त वर्ष 2024-25 में चुनाव हुए या कराए जाने हैं।

रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, तमिलनाडु और ओडिशा ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए नए/संशोधित बजट की घोषणा की है, जबकि आंध्र प्रदेश द्वारा जल्द ही संशोधित बजट प्रस्तुत किया जाने वाला है। विश्लेषण के अनुसार इन राज्यों ने अपने चालू वित्त वर्ष में बजट अनुमान में राजकोषीय घाटे में 0.3 प्रतिशत की वृद्धि की है, जबकि संशोधित बजट में राजस्व खर्च में 0.8 प्रतिशत अधिक रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नई लोकलुभावन योजनाओं की शुरूआत के कारण राजस्व खर्च में वृद्धि हुई है, जो औसतन संबंधित राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद जीएसडीपी के 1.5-1.7 प्रतिशत के बराबर है। इस बढ़ती प्रवृत्ति से राज्यों की राजकोषीय मजबूती की प्रगति रुक सकती है।
रिपोर्ट में पिछले कुछ वर्षों में राज्यों की राजकोषीय स्थिति में सुधार की प्रवृत्ति का उल्लेख करते हुए कहा कि वर्ष 2020-21 इनका राजकोषीय घाटा औसतन जीएसडीपी के 3.7 प्रतिशत था जो घटकर वित्त वर्ष 2022-23 में 2.6 प्रतिशत पर आ गया था, लेकिन वित्त वर्ष 2023-24 में यह बढ़ कर 2.8 प्रतिशत हो गया। वित्त वर्ष 2024-25 के बजट अनुमान के अनुसार यह जीएसडीपी के 3.0 प्रतिशत तक चला जाएगा।

रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्यों के भारी लोकलुभावन उपायों के कारण चालू वित्त वर्ष में राज्यों के राजकोषीय घाटे में जीएसडीपी के 0.1-0.2 प्रतिशत तक वृद्धि हो सकती है। यह कृषि राज्यों के राजस्व जुटाने में अड़चनों के बीच और भी चिंताजनक बतायी गयी है। इसी संदर्भ में इस बात का उल्लेख किया गया है कि केंद्र की सकल राजस्व प्राप्तियों में राज्यों को किया गया हस्तांतरण वित्त वर्ष 2020-21 में 59 प्रतिशत था जो अब 54 प्रतिशत तक सीमित होने का अनुमान है। इस बीच राज्यों का कर राजस्व वित्त वर्ष 2023-24 में वार्षिक आधार पर केवल नौ प्रतिशत बढ़ा था। रिपोर्ट के अनुसार इन राज्यों ने पिछली 14 तिमाहियों में से 13 में अपने सांकेतिक कार्यक्रम में अनुमानित बाजार ऋण की तुलना में कम उधार उठाया है। इसका मुख्य कारण यह था कि राज्यों को वित्त वर्ष 2021-22 में केंद्र से पिछली बकाया राशियों का अतिरिक्त हस्तांतरण भी प्राप्त हुआ है। रिपोर्ट का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में राज्यों को बाजार से अधिक उधार लेना पड़ सकता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here