नेवल बेस बनाने की तैयारी में दुश्मन
कोलंबो। चीन के कर्ज जाल में फंसा श्रीलंका अब गंभीर आर्थिक संकट और भुखमरी की मार झेल रहा है। इसी के चलते श्रीलंकाई सरकार को पिछले हफ्ते देश में आर्थिक आपातकाल का ऐलान करना पड़ा। खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों, मुद्रा में गिरावट और तेजी से घटते विदेशी मुद्रा भंडार ने श्रीलंका की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है। हालात इस कद्र बिगड़ चुके हैं कि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को विभिन्न आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के लिए सेना को बुलाना पड़ा। आर्थिक तंगी की बदौलत श्रीलंका को चीन से बार-बार कर्ज लेना पड़ रहा है। ऐसे में श्रीलंका के चीन का उपनिवेश बनने का खतरा बढ़ रहा है और यह भारत के लिए बेहद चिंता की बात है।
चीन के विस्तार का केन्द्र बना श्रीलंका
चीन की इंडो पैसिफिक एक्सपेंशन और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में चीन ने श्रीलंका को भी शामिल किया है। श्रीलंका ने चीन का कर्ज न चुका पाने के कारण हंबनटोटा बंदरगाह चीन की मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स लिमिटेड कंपनी को 1.12 अरब डॉलर में साल 2017 में 99 साल के लिए लीज पर दे दिया था। हालांकि अब श्रीलंका इस पोर्ट को वापस चाहता है।
महिंदा राजपक्षे के कार्यकाल में गहरी हुई चीन से दोस्ती
महिंदा राजपक्षे के कार्यकाल में श्रीलंका और चीन की दोस्ती और गहरी हो गई। श्रीलंका ने विकास के नाम पर चीन से भरपूर कर्ज लिया। लेकिन, जब उसे चुकाने की बारी आई तो श्रीलंका के पास कुछ भी नहीं बचा। जिसके बाद हंबनटोटा पोर्ट और 15,000 एकड़ जगह एक इंडस्ट्रियल जोन के लिए चीन को सौंपना पड़ा। अब आशंका जताई जा रही है कि हिंद महासागर में अपनी गतिविधियों को जारी रखने के लिए चीन इसे बतौर नेवल बेस भी प्रयोग कर सकता है।
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