कोलंबो (एजेंसी)। नीदरलैंड के हेग स्थित पीपुल्स ट्रिब्यूनल ने 2009 में जाने माने पत्रकार एवं संपादक लसांथा विक्रमतुंगे की हत्या मामले में श्रीलंकाई सरकार को दोषी माना है। एक स्थानीय अखबार में बुधवार को दी गयी जानकारी के अनुसार पीपुल्स ट्रिब्यूनल ने पत्रकार की हत्या मामले में श्रीलंका सरकार को मानवाधिकारों के हनन का दोषी पाया है। रिपोटर्स विदआउट बॉर्डर्स, फ्री प्रेस अनलिमिटेड और पत्रकारों के संरक्षण के लिए गठित समिति द्वारा गठित इस ट्रिब्यूनल को हालांकि किसी को दोषी ठहराने का कोई न्यायिक अधिकार तो नहीं है, लेकिन इस ट्रिब्यूनल का उद्देश्य लोगों में जागरूकता बढ़ाना, सरकारों पर दबाव बनाना और सबूत एकत्र करना है।
श्रीलंकाई पत्रकार की हत्या मामले में लगभग एक साल तक ट्रिब्यूनल में सुनवायी की गयी। पीड़ित के परिजनों, पत्रकारों और विशेषज्ञों सहित 50 से अधिक लोगों की गवाही ट्रिब्यूनल में करायी गयी। इसके बाद ट्रिब्यूनल ने 19 सितंबर को अपना फैसला सुनाया कि इस मामले में श्रीलंका सरकार को पत्रकार लसांथा विक्रमतुंगे के अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों विशेषकर जीवन के अधिकार, अभिव्यक्ति की आजादी और प्रभावी निदान के अधिकारों के हनन का दोषी पाया गया।
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क्या है मामला
ट्रिब्यूनल के जज एडुआर्डो बेरटोनी ने कहा, ‘सरकार ने राजनीति आधार पर भेदभाव करते हुए विक्रमतुंगे के आजादी के अधिकार का हनन किया था। जज माटीर्ना फोर्टी ने कहा कि विक्रमतुंगे मामला यह बताता है कि श्रीलंका के एक जाने माने और सरकार के फैसलों के खिलाफ बेबाक राय रखने वाले पत्रकारों के सामने उस समय कितनी परेशानियां थीं और आज भी जारी हैं। इस पूरे मामले पर ट्रिब्यूनल के दिये गये फैसले पर श्रीलंका के दिवंगत संवाददाता के पुत्री अहिंसा विक्रमतुंगे ने कहा ‘पीपुल्स ट्रिब्यूनल ने मेरे पिता को न्याय देने का काम किया है जो काम श्रीलंका की सरकार पिछले 13 वर्षों में नहीं कर पायी। उन्होंने कहा कि इस फैसले ने उसको और उसकी उम्मीद को मजबूती दी है।
यह फैसला एक साफ संदेश है कि ऐसे अपराधों को अंजाम देने वाले न्याय का उल्लंघन नहीं कर सकते। उन्होंने अपने ट्वीट में ट्रिब्यूनल के साथ-साथ उन सभी लोगों का धन्यवाद दिया जिन्होंने उनके पिता को न्याय दिलाया और इस लड़ाई में सहयोग दिया। गौरतलब है कि विक्रमतुंग की आठ जनवरी 2009 में कुछ अज्ञात हमलावरों ने हत्या कर दी थी। माना जाता है कि हमलावरों के तार श्रीलंका की सेना से जुड़े थे। उस समय महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति और उनके भाई गोतबाया राजपक्षे रक्षा सचिव थे।
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