पड़ोस में आतंक की दस्तक से भारत में चिंता, पीएम ने श्रीलंका को दिया मदद का आश्वासन

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राष्ट्रपति कोविंद और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा की।

नई दिल्ली, sach kahoon। पड़ोसी देश श्रीलंका में रविवार को एक के बाद एक आठ बम विस्फोटों ने अस्सी व नब्बे के दशक की याद ताजा कर दी है जब यह छोटा सा दक्षिण एशियाई देश तमिल अलगाववादी आतंकियों का शिकार था। यही वजह है कि भारत ने इन विस्फोटों को बहुत गंभीरता से लिया है। एक तरफ जहां भारत ने श्रीलंका से जुड़ी अपनी सुरक्षा व्यवस्थाओं को चाक चौबंद करने में जुट गया है वहीं सरकार की तरफ से उच्च स्तर पर पड़ोसी देश से संपर्क साधा गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति मथरीपाला सिरीसेना और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को फोन कर हालात का जायजा लिया और भारत की तरफ से विस्फोट में मारे जाने वाले सभी नागरिकों के प्रति अपनी संवेदना जताई और घायलों के जल्द से ठीक होने की कामना की। मोदी ने पहले एक ट्विट के जरिए और बाद में राजस्थान में एक चुनावी रैली में इन विस्फोटों को बर्बर कृत्य करार देते हुए श्रीलंका को हर तरह की मदद देने का भी आश्वासन दिया।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा की। सभी ने कहा है कि इस तरह की आतंकी घटनाओं का सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं है। विस्फोट के कुछ ही देर बाद विदेश मंत्री स्वराज ने यह ट्विट किया कि श्रीलंका में हुए विस्फोट के बाद वह लगातार वहां स्थिति भारतीय उच्चायोग के साथ संपर्क में है। कोलंबो स्थित भारतीय उच्चायोग में घटना में प्रभावित लोगों के बारे में जानकारी देने के लिए हेल्पलाइन नंबर भी स्थापित किया।

फिर आतंक ग्रसित पड़ोस नहीं चाहता भारत

श्रीलंका में हुए सिलसिलेवार विस्फोटों में दो सौ से ज्यादा लोगों के मारे जाने को लेकर भारत के गुस्से व चिंता की वजहें भी बेहद साफ है। श्रीलंका अस्सी के दशक से लेकर वर्ष 2009 तक तमिल अलगाववादी संगठनों के आतंक से ग्रसित रहा और इसका बहुत ज्यादा असर भारत पर भी पड़ा। इस हिंसा की वजह से सैकड़ों भारतीय सेना की जान गई और बाद में भारत के पूर्व पीएम राजीव गांधी की हत्या तमिल आतंकी संगठन ने की। यही वजह है कि वर्ष 2009 में श्रीलंका की सेना ने तमिल आतंकियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की तो भारत चुप रहा।

एक समय भारत के चार अहम पड़ोसी देश बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान व श्रीलंका में भारी अस्थिरता थी और इसे भारत की आतंरिक सुरक्षा के लिए भी बेहद खतरनाक माना गया था। यही नहीं पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ने भी श्रीलंका में पैर फैलाना शुरु कर दिया था। पिछले एक दशक से वहां शांति की वजह से भारत में इस पड़ोसी देश के लिए नया रणनीतिक नजरिया बना था जिसको लेकर अब खतरा पैदा हो गया है।

इस्लामिक आतंकी संगठन को लेकर ज्यादा चिंता

पड़ोसी देश में आतंक की दस्तक से भारत की चिंता की एक अन्य वजह यह भी है कि इस बार आतंक का चेहरा दूसरा नजर आता है। अभी तक जो सूचनाएं मिल रही है उसके मुताबिक यह हमला तौहीद जमात नाम के एक आतंकी संगठन का करतूत है। इस संगठन के बारे में सबसे पहले वर्ष 2013 मे श्रीलंका के तत्कालीन रक्षा मंत्री ने चिंता जताई थी। इस्लामिक आतंकी संगठन आइएसआइएस के साथ इसके तार जुड़े होने को लेकर श्री लंका की सरकार लगातार सूचनाएं मिल रही थी। इस जमात में आइएसआइएस से वापस आये आतंकियों के शामिल होने की बात सामने आई थी। यही वजह है कि कई देशों की खुफिया एजेंसियों ने श्री लंका सरकार को संभावित आतंकी वारदातों के बारे में भी चेतावनी दी थी।

भारत के प्रमुख रणनीतिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी मानते हैं कि श्री लंका का यह सिलसिलेवार आत्मघाती हमला भारत के लिए इसलिए भी चिंता का कारण है कि इसमें तौहीद जमात का नाम आ रहा है। पूर्व में इस जमात के लिंक भारतीय राज्य तमिलनाडु में भी पाये गये हैं। चेलानी श्रीलंका में हुए इस हमले को आधुनिक मानव इतिहास के सबसे क्रूरतम आतंकी हमलों में से एक मान रहे हैं क्योंकि मृतकों की संख्या दो सौ से ज्यादा हो चुकी है। जो मुंबई हमले में मारे गये लोगों से भी ज्यादा है।

श्रीलंका में हुई विस्फोटों से चिंता की वजहें

  • 1. पूर्व में पड़ोसी देश की आतंकी घटनाओं से भारत पर पड़ा था बड़ा असर
  • 2. चीन के खिलाफ भारत की भावी रणनीति में श्रीलंका की अहम भूमिका
  • 3. पड़ोसी देश में इस्लामिक आतंकवाद के पनपने के कई दूसरे खतरे

श्रीलंका में अस्थिरता भारत इसलिए भी नहीं चाहेगा कि यह उसकी भावी रणनीति के लिए बेहद अहम है। खास तौर पर जिस तरह से चीन जिस तरह से भारत को चारों तरफ से घेरने की कोशिश मे है उसे देखते हुए श्रीलंका बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। चीन की तरफ से लगातार इस पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। श्रीलंका में चीन एक बड़ा बंदरगाह हासिल कर चुका है। जबकि भारत जापान की मदद से वहां एक बड़ा बंदरगाह हमबनतोता व हवाई पोर्ट के लिए बातचीत कर रहा है। वहां आतंकी वारदात बढ़ने से राजनीतिक अस्थिरता बढ़ेगी और इससे भारत के लिए भी फैसला करना मुश्किल होगा।

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