खुदगर्ज हैं ज्यादातर दुनियावी रिश्ते-नाते
दुनिया में ज्यादातर रिश्ते-नाते खुदगर्ज हैं। जब तक मतलब होता है तो हर कोई प्यार से बातें करता है और जैसे ही मतलब निकल जाता है तो तू कौन, मैं कौन? इस घोर कलियुग के स्वार्थी रिश्तों में अगर कोई दोनों जहान में साथ देने वाला है तो वो अल्लाह, वाहेगुरु, राम है।
सच्ची भावना से नजर आता है भगवान
कभी भी बुरा कर्म न करो, न ही बुरी सोच रखो। सत्संग का दायरा ऐसा जबरदस्त होता है, अगर एक शिक्षार्थी की तरह आओ तो ऐसी शिक्षा लेकर जाओगे, जिससे आप ही नहीं आपकी कुलों का उद्धार हो जाएगा। वहीं अगर आप बुरी सोच रखते हैं तो कुलों पर भी असर लाजमी पड़ता है।
सोचने की शक्ति को कमजोर करते हैं बुरे विचार
इन्सान के अंदर जो बुरे विचार आते हैं, वो सब मन की देन हैं और जो अच्छे विचार आते हैं, वो आत्मिक विचार हैं। बुरे विचारों से इन्सान के शरीर पर हर तरह का असर होता है। शारीरिक शक्ति का नाश होता है, दिमाग के सोचने की शक्ति कम हो जाती है और बुरे विचारों का ताना-बाना बुनते रहने से इन्सान का आत्मबल कम होता चला जाता है।
मालिक से मिलाने वाले कर्म करो
अल्लाह, वाहेगुरु, राम ने इन्सान को इसलिए बनाया कि यह दुनिया में आकर अच्छे-नेक कर्म करे, अल्लाह, वाहेगुरु, राम को याद करे ताकि जन्म-मरण का चक्कर हमेशा के लिए खत्म हो जाए। जीते-जी परमानन्द की प्राप्ति हो, तमाम लज्जतें, खुशियां, मनुष्य की झोली में पड़ें।
संत कभी किसी को बुरा नहीं कहते
संत, पीर-फकीर इस दुनिया में सबका भला करने के लिए आते हैं। उनका किसी भी धर्म, मजहब या किसी भी व्यक्ति से कोई वैर-विरोध नहीं होता।
राम-नाम के बिना जीवन व्यर्थ
मालिक के नाम के बिना जीवन व्यर्थ है। मालिक के नाम से ही जीवन की कद्र-कीमत पड़ती है और आत्मा आवागमन से आजाद होती है। मनुष्य जन्म सदियों के बाद, युगों के बाद आत्मा को मिलता है। इस मनुष्य जन्म में अगर जीव नाम जपे, अल्लाह, वाहेगुरु का शुक्राना करे तो जन्मों-जन्मों के पाप-कर्म कट जाया करते हैं।
सुमिरन से मिलती है बुराइयों पर जीत
हर इन्सान को सुमिरन करना चाहिए और सुमिरन पर कोई जोर भी नहीं लगता। लेटकर, बैठकर, काम-धंधा करते हुए और आप यकीन मानो कि जो सेवा-सुमिरन लगन से करता है, जिसके अंदर मालिक के खजाने हैं वो जरा-जरा सी बात पर कभी पारा ऊपर-नीचे लेकर नहीं जाते।
सुमिरन से दूर होती हैं बुराइयां: पूज्य गुरु जी
आप उस परमपिता, परमात्मा का सुमिरन करते रहो। अपने आपको बुराइयों से बचाकर रखो। अगर बुराई के हाथों में अपना दामन दे दिया तो तड़पने के सिवाय कुछ भी हासिल नहीं होगा।
परमार्थ के लिए आते हैं संत: पूज्य गुरु जी
संत, पीर-फकीर इस संसार में हर किसी का भला करने के लिए आते हैं। दुनिया में ज्यादातर लोग अपने लिए, अपने गर्ज के लिए समय गुजारते हैं, परन्तु संत परमार्थ के लिए समय लगाते हैं।
प्रभु का पैगाम जन-जन तक पहुंचाते हैं संत
संत, पीर-फकीर उन्हें कहा जाता है जो इन्सान को सच से जोड़ देते हैं, मालिक का पैगाम जन-जन तक पहुंचाते हैं, उस प्रभु के संदेश की चर्चा करते रहते हैं, जिससे आत्मा, परमपिता परमात्मा से मिल जाए।