रूहानी करिश्मा: Spiritual
प्रेमी अजैब सिंह इन्सां पुत्र अर्जुन सिंह इन्सां गांव खडियाल ब्लॉक दिड़बा, जिला संगरूर (पंजाब)। प्यारे सतगुरू पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत का उपरोक्त करिश्मा लिखित में इस प्रकार बताते हैं कि पूज्य सतगुरू मालिक कृपा से मेरे पास एक ट्रक है जो मैंने रोजगार के लिए लिया और हमारी रोजी रोटी का साधन भी यही है। जबसे मैंने यह ट्रक लिया था, मेरे दिल में इच्छा रहती थी कि दरबार डेरा सच्चा सौदा में ट्रक से सेवा करके आऊं और अंतर्यामी सतगुरू जी ने मेरी यह इच्छा भी पूरी कर दी। वर्णन इस प्रकार है:-
सन् 1993 की बात है। मौजूदा गद्दीनशीन पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने उन दिनों गांव नेजिया व गांव शाहपुर बेगू के बीच नया डेरा, (डेरा सच्चा सौदा, शाह सतनाम जी धाम) की स्थापना के लिए रेत के टीलों से मिट्टी उठाकर उन्हें सड़क के समतल करने की सेवा का आह्वान किया था और पूज्य गुरू जी के मात्र एक आह्वान से चार-पांच सौ टैÑक्टर ट्रॉलियां तथा सौ-दो सौ ट्रकों सहित हजारों की संख्या में सेवादार सेवा स्थल पर पहुंच गये, कई सेवादार प्रेमी सेवा के प्रबल उत्साह के चलते अपने नये कैंटर तथा अन्य नई मशीनरी (मिट्टी उठाने वाली) भी लेकर सेवा में पहुंच गये। पूज्य सतगुरू जी की दया मेहर रहमत से मुझे भी उस महा यज्ञ में सेवा की आहुति डालने का अवसर मिला।
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जून व जुलाई महीनों में तो मिट्टी उठान की सेवा जोरों-शोरों से चली थी। साध-संगत के भारी उत्साह को देखते हुए पूज्य गुरू जी के हुक्मानुसार सेवा कार्य दो शिफ्टों (दिन और रात) में बाँटकर चौबीस घंटे दिन-रात चलने लगा था। पूज्य शहनशाह जी स्वयं अपना ज्यादातर समय सेवा स्थल पर सेवादारों के बीच ही रहकर अपनी पावन देख रेख में सेवा करवाते। कई बार तो सेवादारों में सेवा का मुकाबला बहुत ही दिलचस्प हो जाया करता।
वर्णनीय है कि अलग-अलग ब्लॉक वालों (ट्रॉलियों वालों को तथा ट्रकों वालों को) अलग-अलग खड्डे दे दिये गये थे और इस तरह उनका आपस में ट्रॉली तथा ट्रक भरने का मुकाबला हो जाता। यानि कुछ निश्चित मिनट तय होते कि मात्र इतने मिनट में ट्रॉली को भरना है और इतने ही मिनटों में ट्रक को भरना है और वो सेवादार प्रथम स्थान पर घोषित होते जो निश्चित समय से भी कम समय में ट्रक व ट्रॉली को भरकर खड्डे से बाहर निकाल देते और सतगुरू जी से अपार खुशियां प्राप्त करते।
कई बार पूज्य शहनशाह जी अपनी मौज में आकर सेवादारों की आपस में कुश्तियां आदि कई तरह के खेल करवाते और रोजाना सेवादारों को पावन दृष्टि से प्रसाद भी देते। एक विशेष बात यह भी देखने को मिली कि पूज्य हजूर पिता जी ज्यादातर सेवादारों को नाम लेकर ही आवाज लगाते थे। मैं यह देखकर हैरान था कि सैकड़ों हजारों सेवादारों के नाम पूज्य गुरू जी को याद कैसे रहते हैं और इसके साथ ही एक बात का भ्रम भी मेरे मन में कभी-कभी उठ जाता कि पिता जी अन्य सेवादारों को तो नाम लेकर बुलाते हैं, उनकी राजी खुशी पूछते हैं लेकिन मुझमें ऐसी कौन-सी बुराई है कि मुझे तो पूज्य गुरू जी ने एक दिन भी बुलाकर नहीं पूछा।
मैं भी तो यहां पिछले सात-आठ दिनों से सेवा कर रहा हूँ। आ जाता था कभी-कभी ऐसा ख्याल, जबकि ऐसा आना नहीं चाहिए था। अगले दिन जब दोपहर 12:30 बजे जैसे ही शहनशाह जी टिब्बे (सेवा स्थल) पर पधारे, सेवादारों में सेवा का उत्साह नारों की गूंज में कई गुणा बढ़ गया। बेशक बहुत तेज धूप और बहुत ज्यादा गर्मी थी, लेकिन सेवादार सेवा में इतने मगन थे कि कुछ भी उन्हें याद नहीं था। जैसे ही हम अपना ट्रक भरकर खड्डे से बाहर निकाल रहे थे, मैं उसी खड्डे के ऊपर ही खड़ा था, पूज्य हजूर पिता जी स्वयं छाता (छतरी) लेकर अचानक ही मेरे पास आकर रुक गये और फरमाया, ‘‘ बेटा, तेरा नाम अजैब सिंह है! तेरा गांव खडियाल है? गाड़ी ट्रक तुम्हारा है? तुझे सेवा पर आये हुये 7-8 दिन हो गये हैं। मैं हाथ जोड़कर ही खड़ा रहा कि मैं क्या बोलूं। मन ही मन पूज्य शहनशाह जी का शुक्रिया अदा ( धन्यवाद) कर रहा था
उपरान्त पूज्य शहनशाह जी ने मुझे अपना भरपूर आशीर्वाद प्रदान करते हुए फरमाया, भाई सेवा करो और शाबाश कहकर आगे चले गए।’’ धन्य-धन्य हैं पूज्य हजूर पिता जी, जो आप जी अपने बच्चों का पल-पल ख्याल रखते हैं। बल-बल (बलिहार) जाऊं अपने सतगुरू प्यारे से। प्यारे पिता जी, हम एक-एक पल आखिरी स्वास तक आप जी के हुक्म में इसी प्रकार सेवा सुमिरन में लगे रहें जी।
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