बेजुबानों के लिये काल बनता प्लास्टिक

speechless became the prey of plastic

किसी जमाने में लोगों की सुविधा के लिए ईजाद किया गया पॉलीथीन आज मानव जाति के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बन गया है। नष्ट न होने के कारण यह भूमि की उर्वरा क्षमता को खत्म तो कर ही रहा है साथ ही भूजल स्तर को भी घटा रहा है। वास्तव में प्लास्टिक पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है। दुनियाभर के तमाम देशों के भांति हमारे देश पर भी प्लास्टिक प्रदूषण बड़ी समस्या बनकर उभरा है। पर्यावरण को प्लास्टिक प्रदूषण के प्रकोप से बचाने के लिये ही प्रधानमंत्री ने मथुरा से सिंगल यूज प्लास्टिक खत्म करने के मिशन की शुरूआत की है। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने प्लास्टिक कचरे से पशुओं को होने वाले नुकसान का जिक्र करते हुए कहा, ‘बृजवासी अच्छी तरह जानते हैं कि कैसे प्लास्टिक पशुओं की मौत का कारण बन रहा है।’’

इसमें कोई दो राय नहीं है कि सड़कों पर जहां-तहां पड़े पॉलीथीन्स ने जलवायु पर प्रभाव तो डाला ही है वहीं पालीथीन कचरे से देश में प्रतिवर्ष लाखों पशु-पक्षी मौत का ग्रास बन रहे हैं। ऐसा नहीं है कि यह कोई पहला मौका है जब प्रधानमंत्री ने प्लास्टिक के पशुओं पर हो रहे दुष्प्रभावों की बात की हो। वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2016 में गायों के प्लास्टिक खाने और खराब स्वास्थ्य का जिक्र किया था।

विगत कुछ वर्षों में हमारे देश ही नहीं अपितु शेष विश्व मे प्लास्टिक का उपयोग बहुत तेजी के साथ हुआ है, जिसका कारण है इसके उत्पादन में वृद्धि और बढ़ती मांग। हर वर्ष 30 से 40 लाख टन प्लास्टिक का उत्पादन हमारे देश मे किया जाता है और लगभग 15 लाख टन कचरा प्लास्टिक के रूप में ही होता है। हम अपनी सुविधा और सहूलियत के लिए पॉलिथीन का बार-बार इस्तेमाल करते हैं। ये जानते हुए भी कि पॉलिथीन का इस्तेमाल करना कितना जानलेवा है। हम पॉलिथीन का इस्तेमाल कर उसे कचरे के ढेर में तो फेंक देते हैं, लेकिन इसके बाद ये ही कचरा बेजुबान पशुओं के लिए मौत का सामान बन जाता है।

आजकल शहरों में खतरनाक प्रदूषक, प्लास्टिक की वस्तुएं तथा पॉलीइथिलीन की थैलियां आदि कूड़ेदान में या सड़क के किनारे खुले में फेंक दिये जाने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। घरेलू कचरे में कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं, जैसे सड़े गले फल सब्जियां आदि जो सड़कों पर घूमने वाले अवारा पशुओं के भोज्य पदार्थ बन सकते हैं। गाय, भैंस और कुत्ते जैसे अवारा पशु इन भोज्य पदार्थों के साथ-साथ पॉलीइथिलीन की थैलियां तथा अन्य प्लास्टिक कचरा भी निगल लेते हैं जो उनकी मौत का कारण बन जाता है। घरेलू कूड़े-कचरे में प्लास्टिक तथा पॉलीइथिलीन के बढ़ते कचरे के कारण इस प्रकार के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है।

पॉलीथिन पर रोक के बाद भले ही दुकानदार और ग्राहकों के बीच का आदान-प्रदान भर बंद हुआ है, लेकिन सड़कों के किनारे और कचरों के ढेर से अभी यह पूरी तरह गायब नहीं हुई है। जिसके चलते जानवर अभी भी इसे खा रहे हैं। अक्सर शहरों या कस्बों में सब्जी मंडी या फल मंडी के पास बने डलाव घर में पॉलीथिन काफी मात्रा में देखी जा सकती है। इतना ही नहीं यहां गायों के झुंड कचरे में मुंह मारते देखे जा सकते हैं। इन्हीं जगहों से गायों के पेट में पॉलीथिन पहुंच जाती है। शहर में घूम रहे गोवंशों में अधिकांश के पेट में पॉलीथिन मिल सकती है। साइंटिफिक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि गाय और भैंस के दूध, गोबर और मूत्र में प्लास्टिक के कण पाए जा रहे हैं जो इंसान के लिए तो हानिकारक हैं ही, जानवरों में कैंसर को भी बढ़ावा दे रहे हैं।

जयपुर की हिंगोनिया गौशाला में वर्ष 2016 में गायों के पेट से भारी मात्रा में जहरीला कचरा निकला था। इसमें न सिर्फ पॉलीथीन की थैलियां बल्कि प्लास्टिक की बोतलों के ढक्कन, लोहे की कीलें, सिक्के, ब्लेड, सेफ्टी पिन, पत्थर और मंदिरों में चढ़ावे से निकला कचरा शामिल था। फरवरी 2018 में पटना के वेटेनरी कॉलेज में छह साल की एक गाय के पेट से 80 किलों पॉलीथीन निकला था। लखनऊ में भी गायों के पेट से 50-55 किलो तक प्लास्टिक निकलने के मामले सामने आ चुके हैं। पशु रोग विशेषज्ञों के मुताबिक गाय व अन्य मवेशी कच्चा खाना खाते हैं। पाचन के लिए उनका पेट चार हिस्सों में विभाजित होता है। इनमें रूमन और रेटीकुलम, ओमेजन और एबोमेजम हैं। रूमन की क्षमता 40 किलो होती है। इसमें खाना स्टोर होता है। बाद में गाय इसे वापस लेकर चबाती है। रूमन और रेटीकुलम में पॉलिथीन फंस जाती है। इससे पेट फूल जाता है, इससे टिंपनाइटिस हो जाती है। पेट फूलने से सांस लेने में समस्या होती है, गैस न निकलने से गाय की मौत तक हो जाती है। अगर वक्त पर आॅपरेशन हो जाए तो पशुओं की जान बच सकती है।

अदालत द्वारा पॉलीथिन पर प्रतिबंध के निर्देश के बावजूद शहरों में अब तक इस पर रोक नहीं लग सकी है। भारत के लगभग 18 राज्यो में प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया है। प्रतिबंध के बावजूद पॉलीथिन पूरी तरह चलन से बाहर नहीं हुआ। इसके लिए सरकार व प्रशासन को सख्ती बरतने की जरूरत है। वहीं लोगो को भी इस समस्या को दूर करने में सरकार का साथ देना चाहिए। अब तक हम पर्यावरण की रक्षा के लिए पॉलीथीन पर प्रतिबंध लगाने की बात करते रहे हैं। लेकिन अब प्लास्टिक की कोई थैली कूड़े में फेंकने से पहले इन्हें खाकर बेमौत मरते बेजुबानों कें बारे में जरूर सोचना चाहिए।

-आशीष वशिष्ठ

 

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