Independence Day Celebration: लालकिले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस समारोह में इस वर्ष का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का राष्ट्र के नाम उद्बोधन अमृतकाल के कालखंड के सन्दर्भ में एक विशाल एवं विराट इतिहास को समेटे हुए नए भारत के नए संकल्पों की सार्थक प्रस्तुति रहा है। भले ही राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां सेंकने वाले इसे वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं, जबकि यह उद्बोधन भारत की भावी दशा-दिशा रेखांकित करते हुए उसे विश्व गुरु बनाने एवं दुनिया की आर्थिक महाताकत बनाने का आह्वान है। Independence Day Celebration
यह शांति का उजाला, समृद्धि का राजपथ, उजाले का भरोसा एवं महाशक्ति बनने का संकल्प है। लेकिन यह सत्य है कि मोदी ने 2024 के आम चुनाव के लिए आशीर्वाद मांगा, अगले वर्ष भी लालकिले से वे ही भाषण देंगे, ऐसा आत्म विश्वास भी व्यक्त किया। प्रधानमंत्री ने न केवल अपने शासनकाल की उपलब्धियों को गिनाया बल्कि उन्होंने अगले पांच वर्ष के लिए भी देश की प्रगति का खाका खींच दिया।
उन्होंने 10 वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था को दसवें नम्बर से पांचवें नम्बर तक लाने को उपलब्धि बताते हुए अगले पांच वर्ष में देश को विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का भरोसा भी दिया। निश्चित ही अब तक हुए लालकिले की प्राचीर के उद्बोधनों में सर्वाधिक प्रेरक, संकल्पमय एवं नए भारत-सशक्त भारत की इबारत लिखने वाला उद्बोधन रहा। अंधेरों को चीर कर उजाले की ओर बढ़ते भारत की महान यात्रा के लिये सबके जागने, संकल्पित होने एवं आजादी के अमृतकाल को अमृतमय बनाने के लिए दृढ़ मनोबली होने का आह्वान है।
विपक्ष आलोचना के लिए स्वतंत्र है और वह प्रधानमंत्री के भाषण को चुनावी भाषण करार दे सकता है। लेकिन स्वतंत्रता दिवस का उद्बोधन राष्ट्र के नाम ऐसा उद्बोधन होता है, जो इस बात विश्लेषण करता है कि हम कहां से कहां तक पहुंच गए। अंतरिक्ष हो या समंदर, धरती हो या आकाश, देश हो या दुनिया आज हर जगह भारत का परचम फहरा रहा है, भारत ने जितनी प्रगति की है, उसे देखकर हर देशवासी को भारतीय होने का गर्व हो रहा है तो इसका श्रेय मोदी को दिया जाना कोई अतिश्योक्ति नहीं है, इसकी चर्चा करना राजनीतिक नहीं, भारत की सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक समृद्धि का बखान है।
हर भारतवासी मोदी के उद्बोधन से इसलिए भी प्रेरित एवं प्रभावित हुआ है कि उन्होंने पहली बार समूचे देश को एक परिवार के रूप में प्रस्तुति देते हुए बहनों और भाइयों तथा मित्रों की जगह देशवासियों को परिवारजन कहकर सम्बोधित किया और 90 मिनट के भाषण में उन्होंने 26 बार परिवारजन शब्द का इस्तेमाल किया। केवल अपना उपकार ही नहीं परोपकार भी करना है। अपने लिए नहीं दूसरों के लिए भी जीना है। यह हमारा दायित्व भी है और ऋण भी, जो हमें अपने समाज और अपनी मातृभूमि को चुकाना है। मोदी ने देश की जनता में जोश एवं संकल्प जगाते हुए कहा कि जो जीवन की अपेक्षा को न केवल उद्घाटित करता है, बल्कि जीवन की सच्चाइयों को परत-दर-परत खोलकर रख देते हैं।
भारत तो अतीत से विश्व को परिवार मानता रहा है, तभी उसने वसुधैव कुटुंबकम का मंत्र उद्घोष किया। मोदी ने अतीत की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए विश्व को अपना परिवार मानने की भावना का परिचय कोरोना काल में दिया ही, जी-20 समूह के ध्येय वाक्य के रूप में भी वसुधैव कुटुंबकम का चयन किया। हम भारत के लोग विश्व मंगल की कामना की पूर्ति तभी अच्छे से कर सकते हैं जब पहले राष्ट्र मंगल की भावना से ओतप्रोत हों। इसके लिए जो अतीत के उत्तराधिकारी और भविष्य के उत्तरदायी है, उनको दृढ़ मनोबल और नेतृत्व का परिचय देना होगा, पद, पार्टी, पक्ष, प्रतिष्ठा एवं पूर्वाग्रह से ऊपर उठकर। यही भावना सबल, सक्षम और समरस राष्ट्र बनाएगी और विश्व में भारत का मान बढ़ाएगी, इसी से भारत विश्वगुरु बनेगा।
अनेक विशेषताओं एवं विलक्षणओं वाले इस बार के उद्बोधन एवं स्वतंत्रता दिवस समारोह की सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि इसमें नई संसद बनाने वाले श्रमिक, नर्सों, देशभर के कई क्षेत्रों के कामगारों और सीमांत क्षेत्रों के वाइब्रैंट गांव के सरपंचों को आमंत्रित किया गया। यह श्रम की प्रतिष्ठा और श्रम की पहचान देने वाला अनूठा एवं प्रेरणस्पद आयाम था। प्रधानमंत्री ने श्रमिक वर्ग को इस बात का अहसास कराया है कि भारत के मजबूत लोकतंत्र और प्रगति में उनका योगदान भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि अन्य लोगों का। प्रधानमंत्री ने जमीन से जुड़ी प्रतिभाओं को पद्म सम्मान देकर भी भारत के जन-जन को उचित सम्मान देने की परम्परा का सूत्रपात किया है।
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में देश की जनता को न केवल प्रेरित किया, बल्कि यह भरोसा भी दिलाया कि अनेक चुनौतियों के बावजूद भारत सही दिशा में आगे बढ़ रहा है और विकसित राष्ट्र का सपना साकार होने को है। प्रधानमंत्री ने कामगारों के लिए चाहे वह बाल काटने वाले हों या कपड़ों की धुलाई करने वाले या फिर अन्य छोटे-मोटे धंधे करने वाले के लिए 15 हजार करोड़ की विश्वकर्मा योजना शुुरू करने की घोषणा की है। ऐसे वर्गों के लिए ऐसी योजना विश्वकर्मा जयंती पर शुरू होगी। सबका साथ, सबका विकास के मूल मंत्र को साकार करते हुए मोदी देश की तकदीर एवं तस्वीर बदलने में जुटे हैं।
प्रधानमंत्री ने देश में आतंकवादी वारदातें कम होने, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने, सरकार के ईमानदारी और पारदर्शिता से काम करने का उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी सरकार ने गरीबों के कल्याण के लिए ज्यादा से ज्यादा धन खर्च किया है और 13.5 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकाला है। निश्चित ही भारत से गरीबी दूर हो रही है। उन्होंने देशवासियों को इस बात का अहसास कराया कि जब देश आर्थिक रूप से मजबूत होता है तो तिजोरी ही नहीं भरती बल्कि देश का सामर्थ्य भी बढ़ता है।
उन्होंने देशवासियों से परिवारवाद, भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण के खिलाफ लड़ने का आह्वान भी किया क्योंकि ये गरीब, पिछड़े, आदिवासियों और दलितों का हक छीनते हैं। मणिपुर हिंसा पर उन्होंने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकार मिलकर मणिपुर समस्या के समाधान के लिए काम कर रही हैं एवं शांति से ही समस्याओं का समाधान निकलेगा। आज देश की मातृशक्ति सफलता के नए आयाम गढ़ रही है।
इस वर्ष के स्वतंत्रता दिवस की थीम भी यही रही कि राष्ट्र पहले, हमेशा पहले। इसकी संपूर्ण झलक हमें कालजयी नेतृत्व मोदी के संबोधन में मिली जो 2047 के विकसित भारत के लक्ष्य को साकार करने का रोडमैप था। जब मोदी ने युवाओं का आह्वान करते हुए कहा कि सुनो चुनौती सीना तान, जग में बढ़ाओ देश का नाम- तो यह दुनिया के सामने भारत के युवाओं के सामर्थ्य का एलान था। रिफार्म, परफार्म और ट्रांसफार्म अब देश की कार्यसंस्कृति का हिस्सा बन गए हैं। इनके चलते नीतिगत स्थिरता, बेहतर समन्वय और ईज आफ डूइंग बिजनेस की स्थिति सुधरी है। इससे भारत एक आत्मविश्वासी राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित हुआ है।
ललित गर्ग, वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार
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