133वें पावन अवतार दिवस पर विशेष
Shah Mastana ji Maharaj: मानवता पर महान परोपकार करने वाले बेपरवाह साई शाह मस्ताना जी महाराज ने कार्तिक पूर्णिमा सन् 1891 को अति पूजनीय पिता पिल्लामल्ल जी व अति पूजनीय माता तुलसां बाई जी के घर अवतार धारण किया। आप जी गांव कोटड़ा तहसील गंधेय, रियासत बिलोचिस्तान (अब पाकिस्तान) के रहने वाले थे।
सच्चे संत अनंत, अदम्य, अकल्पनीय रहमतों के भंडार होते हैं। ऐसे संत भगवान, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब का स्वरूप होते हैं। वे धरा पर अवतरित होकर इन्सान को उसके जीवन का असली मकसद समझाते हैं और प्रभु-परमात्मा से मिलने का आसान व सरल मार्ग दिखाते हैं, जिस पर चलकर हर इन्सान अपने जीवन को खुशियों से महका सकता है। संत रूहानियत के बादशाह होते हैं, जो हमेशा नि:स्वार्थ भाव से खुशियों के खजाने लुटाते हैं और बदले में किसी से कुछ भी नहीं लेते। रूहानी रहबर पूरी मानवता को नि:स्वार्थ प्रेम, एकता और भाईचारे के सूत्र में पिरोकर नफ़रत, वैर-विरोध जैसी बुराइयों को मिटा देते हैं। Shah Mastana ji Maharaj
डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने परमात्मा के सन्देश, नि:स्वार्थ प्रेम व रहमतों की ऐसी अद्भुत वर्षा की कि इन्सानियत की रोशनी से मानवता अन्दर-बाहर से प्रफुल्लित हो उठी। आमजन को अज्ञान के अंधकार से मुक्ति मिली। अंधविश्वास, भूत-पे्रतों के भ्रम-भुलेखों, ईर्ष्या, नफरत से मुक्त होकर लोग प्रभु की सच्चे हृदय से भक्ति के साथ-साथ समाज सेवा के नए कीर्तिमान स्थापित करने लगे। सच्चे रूहानी रहबर ने रूहानियत के जिस महान केन्द्र ‘डेरा सच्चा सौदा’ की स्थापना की, वह इन्सानियत का अजूबा बन गया। प्रत्येक धार्मिक स्थल की अलग पहचान व मर्यादा होती है, लेकिन बेपरवाह जी ने एक ऐसा सर्वधर्म संगम स्थापित किया जहां सभी धर्मों के लोग आपस में मिलजुल कर एक साथ बैठते हैं, अपने-अपने धर्म में रहते हुए और अपनी-अपनी भाषा बोलते हुए, अपने पहनावे में उस एक शक्ति भगवान, अल्लाह, वाहेगुरु, राम, गॉड, खुदा, रब्ब जिसके असंख्य नाम हैं, लेकिन वो ताकत एक है, उसकी भक्ति करते हैं। यहां से जन-जन तक संदेश पहुँच रहा है कि हम सब एक हैं और हमारा मालिक भी एक है। डेरा सच्चा सौदा ने हमेशा सभी धर्मों व धार्मिक स्थलों का हृदय से सत्कार-सम्मान करने की शिक्षा दी है।
मानवता पर महान परोपकार करने वाले पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने कार्तिक पूर्णिमा सन् 1891 को पूजनीय पिता पिल्लामल्ल जी व पूजनीय माता तुलसां बाई जी के घर अवतार धारण किया। आप जी गाँव कोटड़ा तहसील गंधेय, रियासत बिलोचिस्तान ( यह स्थान वर्तमान में पाकिस्तान में है) के रहने वाले थे। कहते हैं कि संत इस दुनिया में आकर नहीं बनते, बल्कि धुर-दरगाह से ही आते हैं। इसी कारण ही उनके अन्दर बचपन से ही ऐसे अद्भुत करिश्माई गुण विद्यमान थे, जो अन्य में संभव नहीं होते। बाल स्वरूप में सच्चे रूहानी रहबर के महान गुणों से गाँव कोटड़ा महकता रहा। Shah Mastana ji Maharaj
आप जी के हृदय में बचपन से ही भक्ति-भाव परिपूर्ण रहा। जरूरतमंदों की मदद करना, किसी का दु:ख देखकर उसे दूर करने का जी-तोड़ प्रयास करना, समाज की भलाई के लिए हर त्याग के लिए तत्पर रहने जैसे गुण आप जी के महान हस्ती होने का बखूबी आभास करवा रहे थे। पूज्य सार्इं जी के पूजनीय पिता जी की मिठाइयों की दुकान थी। एक बार पूजनीय माता-पिता जी ने आप जी को खोया (मावा) बेचने के लिए शहर भेजा, लेकिन आप जी ने सारा खोया (मावा) भूख से व्याकुल लोगों को खिला दिया। फिर आप जी के दिल में ख्याल आया कि यदि खाली हाथ वापिस घर लौटे तो पूज्य माता जी पूछेंगी इस पर क्या जवाब देंगे। यह सोचकर आप जी ने नजदीकी एरिया में एक जमींदार के खेत में काम करने से लेस मात्र भी संकोच नहीं किया और पूरा दिन कड़ी मेहनत की। हालांकि घर धन-धान्य से परिपूर्ण था।
दिनभर मेहनत के बाद सायं को आप जी घर पहुंचे और पूजनीय माता जी को मेहनत की कमाई के पैसे सौंप दिए। इसी दौरान वह जमींदार भी आपजी के पीछे-पीछे घर पहुँच गया और उसने पूजनीय माता जी को पूरी बात बताई। जमींदार ने पूजनीय माता जी को सजदा करते हुए कहा कि आपका लाडला महान है। यह जानकर पूजनीय माता जी की आँखों में खुशी के आंसू छलक आए और माता जी ने अपने इस अद्भुत लाल को सीने से लगा लिया। इतना ही नहीं, आप जी की दयालुता भी लोगों की जुबां पर हमेशा चर्चा का विषय रही थी, अकसर आपजी रास्तों में दूर-दूर तक साफ-सफाई करते ताकि राहगीरों को किसी भी तरह की मुश्किल न आए। आप जी जब जवान हुए तो प्रभु प्राप्ति के लिए सच्चे संतों की तलाश में लग गए। Shah Mastana ji Maharaj
इस दरमियान बहुत से साधु-महात्माओं से मिले, लेकिन कहीं से भी दिल को तसल्ली नहीं हुई। रिद्धि-सिद्धि वाले भी मिले, लेकिन भगवान से मिलवाने की गारंटी देने वाला कोई नहीं मिला। सच्ची तड़प को देखते हुए पूजनीय सतगुरु सार्इं सावण सिंह जी महाराज ने आप जी को अपने नूरी दर्शन दिए। दिल में सतगुरु के प्रति सच्ची तड़प लिए आखिर आप जी ब्यास आ पहुँचे और पूजनीय बाबा सावण सिंह जी महाराज के पावन दर्श-दीदार करके निहाल हो गए। यहां आकर आप जी अपने प्यारे सतगुरु जी के रंग में रंग गए और उन्हें अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। मुर्शिद प्यारे को देख-देखकर खुशी में नाचना, उनके मधुर वचनों व उनके प्यारे चोजों के दीवाने हो गए। मस्ती का समुद्र हिलोरे भरने लगा, जो चाहिए था वो मिल गया, मिलने की खुशी में मस्त हो गए। Shah Mastana ji Maharaj
आप जी के इस अतुलनीय प्रेम से खुश होकर पूजनीय बाबा सावण सिंह जी महाराज ने अपने प्यारे मुरीद को रूहानियत का ऐसा अनुपम तोहफा बख्शा कि धन्य-धन्य हो उठे। सच्चे सतगुरु जी ने ‘शाह मस्ताना’ का खिताब बख्श दिया व अपने प्यारे सतगुरु जी के हुक्मानुसार बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज पश्चिमी पंजाब व अन्य जगहों पर सत्संग करने लगे। चारों तरफ राम-नाम, अल्लाह, वाहेगुरु की चर्चा होने लगी। सतगुरु जी ने आप जी को बेअंत बख्शिशों से निहाल करते हुए सरसा में भेजकर बागड़ को तारने का हुक्म फरमाया। अपने सतगुरु जी के हुक्म अनुसार बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने 29 अप्रैल 1948 को सरसा में डेरा सच्चा सौदा की शुभ स्थापना की। आप जी ने जैसे ही सत्संग करने शुरु किए तो चारों तरफ प्रभु-परमात्मा के नाम की रड़ मच गई। Shah Mastana ji Maharaj
सभी धर्मों के लोग बढ़-चढ़कर सत्संगों में पहुंचने लगे। आप जी ने बिना किसी दान-चढ़ावे व पैसे के लोगों को भगवान के सच्चे नाम से जोड़ा, जो भी जीव आता आप जी के पवित्र मुखारबिंद से सीधी-साधी बोली में पवित्र वचन सुनकर व आप जी के पावन दर्शन कर धन्य-धन्य हो उठता। आप जी ने बहुत ही सरल तरीके से रूहानियत के गहन ज्ञान से सबकी झोलियां भरीं और उनके जीवन को खुशियों से महका दिया। आप जी ने भाईचारे की भावना मजबूत करते हुए सभी को हक-हलाल व मेहनत की कमाई करके खाने का सन्देश दिया। सच्चे रूहानी रहबर ने दूर-दराज के क्षेत्रों में डेरे बनाए व दिन-रात सत्संग लगाकर लोगों को भगवान के सच्चे नाम से जोड़ा।
आप जी भले ही स्वयं को अनपढ़ बॉड़ी ‘गरीब मस्ताना’ जैसे शब्दों से संबोधित करते, लेकिन आप जी के अनमोल वचन, मधुर बोली व दिलकश अन्दाज के कारण पढ़े-लिखे, अनपढ़, हर वर्ग के लोग आप जी की तरफ खींचे चले आते। पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने 28 फरवरी 1960 को पवित्र गुरगद्दी सच्चे सतगुुरु पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जीमहाराज को बख्शिश की। 18 अप्रैल 1960 को आप जी अनामी जा समाए। पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने 30 साल सच्चे सतगुरु का रूहानी संदेश देशभर में फैलाया व 11 लाख से अधिक लोगों को परमात्मा के सच्चे नाम से जोड़ा।
वर्तमान में सच्चे रूहानी रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां दुनिया भर में राम-नाम, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा की चर्चा कर रहे हैं। आज डेरा सच्चा सौदा के 7 करोड़ के करीब श्रद्धालु पूरी दुनिया में रूहानियत व 167 मानवता भलाई कार्यों के साथ समाज सेवा के नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। पूज्य गुरु जी की अपार दया-मेहर व रहमत से डेरा सच्चा सौदा ने समाज सेवा के क्षेत्र में 79 विश्व रिकॉर्ड कायम कर भारत की शोभा को चार चांद लगाए हैं। आप जी के शुभ विचारों से प्रेरित होकर दुनिया के विभिन्न देशों ने बहुमुखी विकास के कई वैज्ञानिक प्रगतिशील निर्णय लिए हैं।
सावणशाही निवाजिशें (इलाही बख्शिशें), बागड़ का बादशाह बनाया
मुर्शिद और मुरीद अंदर-बाहर से एक हुए। सार्इं बाबा सावण शाह जी महाराज ने भी कोई पर्दा नहीं रखा। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के पवित्र मुख-वचन- असीं अपने प्यारे मुर्शिद दाता सावण शाह जी के हुक्म में उनके सामने मोटे-मोटे घुंघरू बांधकर नाचते थे। हमारा मुर्शिद अंदर आवाज देता था, ‘जा संगे जा पीर बण।’ सबके मुंह पर छिक्कड़ी चढ़ गई। कोई बोल न सका। हमारे खुदा सावण शाह ने हुक्म फरमाया,
‘हमने मस्ताना शाह, तुम्हारे को सब काम करने वाला जिन्दाराम दिया। पीर भी बनाया और अपना स्वरूप भी दिया। तुम्हारे को वो राम बख्शिश में दिया जो किसी और को न दिया।’
‘जा मस्ताना तुझे बागड़ का बादशाह बनाया। तू बागड़-सरसा में जा, कुटिया-डेरा बना और बेधड़क होकर दुनिया को मालिक का नाम जपा। कुछ और मांगना है तो सामने आकर बोल, दोनों हाथों से देंगे। खुले दिल से मांग। हमने तुम्हें देना है, तूने लेना है।’
असीं अर्ज की, ‘मेरे सोहणे मक्खण-मलाई दाता, असीं तेरे से ही मांगना है और किसी से नहीं मांगना।’
असीं अपने मुर्शिद से कहा, ‘ये बॉडी अनपढ़ बॉडी है, इतने पढ़े-लिखे नहीं हैं, लोगों को कैसे समझाएंगे? असीं केवल सिंधी भाषा (बोली) बोलते हैं। इधर (बागड़) के लोग हमारी भाषा कैसे समझेंगे? कैसे कोई हमारे पीछे लगेगा?’ हमारे मुर्शिद दाता सावण शाह जी ने फरमाया, ‘मस्ताना! तुझे किसी ग्रन्थ की जरूरत नहीं। तेरी आवाज मालिक की आवाज होगी। जो सुनेगा, तेरी आवाज पर मोहित हो जाएगा। तुम्हारी आवाज पर ऐसे मस्त हो जाया करेंगे, जैसे बीन पर सांप मस्त हो जाता है। जो सुनेंगे, राम का नाम लेंगे और उनका बेड़ा पार हो जाएगा।’
असीं अर्ज करी, ‘सार्इं जी, रूह की चढ़ाई के इस अंदरूनी रास्ते में बड़ी चढ़ाइयां, बड़ी गहराइयां हैं। कहीं त्रिकुटी, कहीं भंवर गुफा आदि अनेक मंजिलें हैं, असीं कैसे समझाएंगे? अभ्यासी तो इनमें ही फंस जाएंगे, कैसे निकलेंगे? हमें तो कुछ ऐसा नाम दो, जिसे भी हम नाम देवें, उसका एक पैर यहां और दूसरा सचखंड में हो। रास्ते के चक्करों को खत्म करो, कहीं भी उस रूह को रूकावट न हो। रास्ते में किसी स्टेशन पर गाड़ी रोकनी न पड़े। वो रूह रास्ते में किसी मंजिल, किसी पड़ाव पर न रुके, एक्सप्रेस ही बन जाए और सीधी सचखंड में जाए।’ ‘ठीक है मस्ताना, तेरी यह बात भी मंजूर है।’
असीं फिर अर्ज करी, ‘मेरे मक्खण-मलाई सार्इं जी, आप हमें जिधर भेज रहे हैं वो इलाका बहुत गरीब है। वो राम-नाम जपेंगे या मजदूरी करेंगे? उनका ध्यान तो राम-नाम की बजाए पेट पालने में अटका रहेगा। हमें तो कुछ ऐसा भी दो कि जीव वचनों पर पक्का रहे, दृढ़ निश्चय, दृढ़-विश्वास रखे, हक-हलाल, मेहनत की करके खाए और थोड़ा-बहुत सुमिरन करे, तो न उसे अंदर कमी रहे न बाहर। अंदर-बाहर से उसे किसी के आगे हाथ फैलाना न पड़े। वो भक्त गरीब न रहे। लोग उसकी यह कह कर निंदा न करें कि फलां भक्त पैसे-पैसे के लिए हाथ फैलाता फिरता है। वह हाथी की तरह मस्त रहे और बिना कुछ परवाह किए अपनी मंजिल की ओर बढ़ता चला जाए।’ हमारे मुर्शिद दाता सावण शाह जी ने कहा, ‘मस्ताना, जा तेरा यह भी मंजूर है।’
असीं यह भी कहा, ‘सार्इं जी, असीं कोई नया धर्म नहीं चलाना चाहते, ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ नारा बोलना चाहते हैं, जिसको सभी धर्म वाले माने। हर कोई अपने मालिक का धन्य-धन्य (धन्यवाद) करे।’ हमारे दाता सावण शाह सार्इं जी ने फरमाया, ‘ठीक है मस्ताना, तुम्हारी मौज। जा मस्ताना, तुम्हारा ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ दोनों जहानों में मंजूर किया। तुम्हारा यह नारा दोनों जहानों में काम करेगा।’
अपने सच्चे मुर्शिदे-कामिल की ऐसी और भी अनेक इलाही बख्शिशें पाकर आप जी सरसा में पधारे। पूजनीय सार्इं दाता सावण सिंह जी महाराज ने आप जी की मदद के लिए सरसा शहर के अपने पांच सत्संगी सेवादारों की ड्यूटी भी लगा दी थी। Shah Mastana ji Maharaj
‘‘वाह! मस्ताना शाह का मुकाबला कौन कर सकता है?’’
डेरा ब्यास में रहते हुए वहां के कुछ सेवादार भाई बात-बात पर पूज्य बाबा जी के पास पूज्य शहनशाह मस्ताना जी महाराज की शिकायत कर दिया करते। पूज्य हुजूर बाबा जी उनकी बात सुनकर उनके दिखावे मात्र पर मुस्करा दिया करते। एक दिन पूज्य बाबा जी ने उन सभी सेवादार भाईयों के सामने गहरे कुएँ में कोई चीज फेंककर हुक्म फरमाया कि तुम्हारे में से कोई सेवादार उसे बाहर निकालकर ले आए। अब सभी ने ही एक दूसरे का मुँह देखना शुरू कर दिया। कोई कहे-महाराज जी! अभी किसी अन्य सेवादार को बुलवाकर निकलवा देते हैं। Shah Mastana ji Maharaj
कोई कहे कि कोई खास बात नहीं, ये पचास रुपये की होगी। चली गई तो जाने दो और नई मँगवा लेंगे। यानि ऐसा कहकर वे सब लोग खिसक गए। इतने में शाह मस्ताना जी महाराज को बुलवाकर इशारा किया कि वह वस्तु निकालकर लानी है। इतना तो कहने ही नहीं दिया और झट से उस कुएं में छलाँग लगा दी। तब उन सेवादारों को बुलवाकर फरमाया कि वाह! मस्ताना शाह का मुकाबला कौन कर सकता है? सभी के चेहरे फीके पड़ गए।
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