इस संसार में कुछ रूहें परम पिता परमात्मा की दया-मेहर से परिपूर्ण होती हैं, जिनके घर संत-महापुरुष अवतार धारण करते हैं। ऐसे पूजनीय माता-पिता अपने विशेष गुणों, संस्कारों और सद्कर्मों के कारण इस धरती पर कुछ अलग ही नजर आते हैं। भले ही वे सादा, सरल और साधारण जीवन जीते हों, लेकिन उनके अद्भुत सद्गुण सभी के लिए प्रेरणास्रोत बन जाते हैं। ऐसी ही महान शख्सियत थे पूजनीय बापू नंबरदार मग्घर सिंह जी, जिन्होंने पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को अपनी गोद में लाड़ लड़ाए और अथाह प्रेम-प्यार देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
पूजनीय बापू जी परमपिता परमात्मा के सच्चे भक्त, मेहनती किसान, ईमानदार, समाजसेवी और भाईचारा कायम रखने की अद्भूत मिसाल थे। आपजी का जन्म वर्ष 1929 में पावन गाँव श्री गुरूसर मोडिया, जिला श्री गंगानगर में पूज्य पिता श्री चित्ता सिंह और माता संत कौर जी के घर हुआ। आपजी के ताऊ जी के घर कोई संतान न होने के कारण आपजी को उन्होंने गोद लिया हुआ था, इसीलिए आपजी पूज्य ताऊ संता सिंह जी व माता चन्द कौर जी को ही अपने माता-पिता मानते थे।
बचपन से ही आप जी सद्गुणों से भरपूर थे और परमात्मा की भक्ति में लीन रहते थे। धार्मिक प्रवृत्ति होने के कारण आप जी पावन सुंदर गुटका साहिब, भगवत गीता और जन्म शाखी जैसे पवित्र ग्रंथ घर में ही रखे होने के चलते समय मिलने पर पढ़ते रहते थे। आपजी ने पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज से गुरुमंत्र की अनमोल दात प्राप्त की। पूजनीय बापू जी मेहनती किसान थे और बहुत बड़े जमींदार होने के कारण आप जी के घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। आप जी का शुभ विवाह किक्करखेड़ा, तहसील अबोहर, जिला फाजिल्का के पूज्य श्री गुरदित्त सिंह जी और पूज्य माता जसमेल कौर जी की सुपुत्री पूजनीय (माता) नसीब कौर जी इन्सां के साथ हुआ। पूजनीय बापू जी परमात्मा पर दृढ़ विश्वास रखते थे। आप जी का गांव के महात्मा त्रिवेणी दास जी के साथ भी बहुत प्रेम था।
परमात्मा के प्रति विश्वास ही था कि घर में 18 वर्षों तक औलाद न होने के बावजूद आप जी को पूरा भरोसा था कि वह परमात्मा जरूर रहमत करेगा। वास्तव में पूजनीय बापू जी एक महान आत्मा थे, जिन्हें परमपिता परमात्मा ने सच्चे सतगुरु के अवतार धारण के लिए चुना था। इसका इशारा कई बार संत त्रिवेणी दास जी ने भी पूजनीय बापू जी के पास किया था। संत जी अक्सर कहते थे कि आपके घर में कोई आम बच्चा जन्म नहीं लेगा बल्कि वह परमात्मा की भेजी हुई कोई महान हस्ती होगी, जो आपके पास 23 वर्षों तक रहेंगे और उसके बाद परमात्मा के हुक्म अनुसार अपने काम के लिए चले जाएंगे। पूज्य बापू जी को इस बात का पूरा एहसास था, लेकिन उन्होंने इसकी भनक पूज्य माता नसीब कौर जी इन्सां को भी नहीं लगने दी और इस रहस्य को गुप्त रखा। पूज्य बापू जी ने सतगुरू हजूर पिता जी को बाल रूप से ही बेअंत प्रेम व प्यार दिया। यह भी एक अनोखी मिसाल है कि जब पूज्य गुरू जी 14 वर्ष के हो गए तो भी पूजनीय बापू जी अपने लाडले को गोद उठाने से गुरेज न करते।
आज के इस घोर कलियुग में कोई जिगर का टुकड़ा मांग ले तो बड़े-बड़ों के इरादे डोल जाते हैं, लेकिन पूज्य बापू जी और पूज्य माता जी के इस त्याग का उदाहरण इतिहास के पन्नों पर नई इबारत के साथ दर्ज हो गया। विवाह से 18 वर्ष बाद प्राप्त हुई अपनी संतान (पूज्य गुरू जी) को इंसानियत के मिशन पर भेजने का जब समय आया तो पूज्य गुरू जी को एक पल भी अपनी आँखों से ओझल न करने वाले पूज्य बापू जी ने यह कार्य अपने हाथों पूरा किया। पूज्य परम पिता जी ने 23 सितम्बर 1990 को जब पूज्य गुरू संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को पावन गुरगद्दी की बख्शीश की, तब पूजनीय बापू जी ने एक बार भी संकोच नहीं किया बल्कि परम पिता जी से यही अर्ज की, कि इनको (पूज्य गुरू जी) आपने ले लिया है, हमारी जमीन-जायदाद भी ले लो, हमें तो आश्रम में एक कमरा दे दो ताकि हम इनके (पूज्य गुरू जी) और आपजी के दर्शन करते रहें।
उन्होंने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के वचनों को शिरोधार्य करते हुए इतनी धन-दौलत, जमीन-जायदाद के इकलौते वारिस को हंसते-हंसते विदाई दी। इस उपरांत पूजनीय बापू जी ने आदरणीय साहिबजादे जसमीत सिंह जी इन्सां, आदरणीय साहिबजादी बहन चरणप्रीत कौर जी इन्सां और आदरणीय साहिबजादी बहन अमरप्रीत कौर जी इन्सां, जिनकी आयु उस समय 5 वर्ष से भी कम थी, का उत्तम दर्जे का पालन-पोषण किया। उनकी पढ़ाई-लिखाई और विवाह की पूरी जिम्मेदारी भी निभाई। पूजनीय बापू जी ने सदा सादगी भरा जीवन व्यतीत किया। पूज्य गुरू जी को गुरुगद्दी की बख्शीश के बाद कई बड़े लोग पूजनीय बापू जी को मिलने के लिए आते तो वे आप जी की सादगी व शांत स्वभाव को देखकर बहुत प्रभावित होते।
पूजनीय बापू जी दुनिया में अपने गुणों व नेक कार्यों के रंग बिखेरकर पांच अक्तूबर 2004 को कुल मालिक के चरणों में सचखंड जा विराजे। डेरा सच्चा सौदा की साध-संगत उनकी पवित्र याद में इस दिन को परमार्थी दिवस के रूप में मनाती है और रक्तदान सहित मानवता भलाई के कार्य करती है। पूज्य बापू जी की याद में 10 अक्तूबर 2004 में लगाया गया रक्तदान कैंप गिनीज बुक में दर्ज है, जब 15432 यूनिट रक्तदान हुआ था।
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