नीट, यानी नेशनल इलिजिबिलिटी एंड इंट्रेंस टेस्ट, 2017 परीक्षा परिणाम की घोषणा का मार्ग प्रशस्त करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने परिणामों की घोषणा पर रोक संबंधी मद्रास उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश को स्थगित कर दिया है।
अदालत ने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह पहले से तय कार्यक्रम के मुताबिक परीक्षा परिणाम का एलान, काउंसिलिंग और दाखिला करें। न्यायमूर्ति पीसी पंत और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की अवकाश पीठ ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट द्वारा साल 2011 में दिए उस आदेश का हवाला दिया, जिसमें यह निर्धारित किया गया था
कि ‘‘मेडिकल परीक्षा शेड्यूल को हाई कोर्ट नजरअंदाज नहीं कर सकता।’’ मौजूदा शेड्यूल के तहत सीबीएसई को 24 जून के पहले रिजल्ट जारी करना है। पीठ का इस बारे में साफ कहना था कि ‘‘मद्रास हाई कोर्ट का अंतरिम निर्णय आशीष रंजन मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए आदेश के विपरीत है। लिहाजा वह इस अंतरिम आदेश को स्थगित करती है।’’
अलबत्ता परीक्षा परिणाम की घोषणा और उसके बाद होने वाली काउंसिलिंग और दाखिला न्यायालय के समक्ष लंबित मामले के फैसले के अधीन होगा। यानी काउंसलिंग और दाखिला उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित मामले के अंतिम निर्णय पर निर्भर करेगा। इसके साथ ही अदालत ने देश के सभी 24 हाई कोर्ट से अनुरोध किया है कि वे नीट परीक्षा 2017 से संबंधित किसी भी याचिका को स्वीकार ना करें।
जाहिर है कि अदालत का हालिया आदेश, परीक्षा में शामिल हुए देश भर के 12 लाख अभ्यर्थियों के लिये राहत बनकर आया है। ये छात्र, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। फैसले के बाद उम्मीद बंधी है कि सीबीएसई दो हफ्ते के अंदर रिजल्ट जारी कर देगा।
मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच ने नीट परीक्षा में समान प्रश्न पत्र नहीं दिये जाने और अंग्रेजी तथा तमिल भाषाओं के प्रश्न-पत्र अलग-अलग होने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पिछले महीने 24 मई को अपने एक फैसले में एमबीबीएस और बीडीएस पाठयक्रमों में दाखिले के लिए होने वाली नीट परीक्षा परिणाम की घोषणा पर अंतरिम स्थगन लगा दिया था।
इस संबंध में उसने सीबीएसई को रिजल्ट का ऐलान नहीं करने का निर्देश दिया था। इस फैसले को सीबीएसई ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। अदालत में इस आदेश के खिलाफ सीबीएसई ने अपना पक्ष रखते हुए दलील दी कि ‘‘मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश की वजह से परीक्षा परिणाम घोषित करने और उसके बाद दाखिले की प्रक्रिया रूक गयी है।
साथ ही यह आदेश, उच्चतम न्यायालय द्वारा पहले तय प्रक्रिया के साथ टकराव की स्थिति में है।’’ इस दलील को सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्वीकार किया। उच्च न्यायालय के फैसले पर स्थगन आदेश देते हुए पीठ ने कहा, ‘‘हम सिर्फ एक आधार पर उच्च न्यायालय के फैसले पर स्थगन लगा रहे हैं। यह आदेश, परोक्ष तौर पर उच्चतम न्यायालय द्वारा तय कार्यक्रम को कमजोर कर रहा हैं।’’बहरहाल ग्रीष्मावकाश के बाद मामले में अगली सुनवायी होगी, जिसमें यह तय होगा कि कौन सही है और कौन गलत ?
नीट का आयोजन मेडिकल, डेंटल कॉलेज, आयुष और वेटेरिनरी में एमबीबीएस और बीडीएस कोर्सेस में प्रवेश के लिए किया जाता है। इस संयुक्त प्रवेश परीक्षा के द्वारा उन कॉलेजों में प्रवेश मिलता है, जो मेडिकल कांउसिल आॅफ इंडिया और डेंटल कांउसिल आॅफ इंडिया द्वारा संचालित किए जाते हैं। इससे पहले यह परीक्षा आॅल इंडिया प्री-मेडिकल टेस्ट (एआईपीएमटी) कहलाती थी।
यह परीक्षा भी देश भर में एक साथ आयोजित होती थी। इस परीक्षा में आए अंकों के आधार पर ही छात्रों को केन्द्र सरकार द्वारा संचालित मेडिकल संस्थानों में प्रवेश दिया जाता था। सर्वोच्च न्यायालय के एक अहम् फैसले के बाद सरकार ने पिछले साल ही पारदर्शिता व मेडिकल शिक्षा में उच्च मानक स्थापित करने और छात्रों को कई परीक्षाओं के बोझ से बचाने के लिए, देशभर के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए एक परीक्षा ‘नीट’ आयोजित कराने का फैसला लिया।
इस साल 7 मई को देश भर के करीब 104 शहरों में पहली बार यह परीक्षा आयोजित हुई, जिसमें पूरे देश से तकरीबन 11 लाख 39 हजार छात्रों ने नीट की परीक्षा दी। इस साल नीट का इम्तिहान हिंदी और अंग्रेजी के अलावा दीगर 8 भारतीय भाषाओं में भी हुआ था।
परीक्षा पूरी तरह से पारदर्शी हो, इसके लिए सीबीएसई ने कड़े नियम बनाए, जिसमें ड्रेस कोड से लेकर पेन, पेंसिल को लेकर तक कई नियम शामिल थे। सीबीएसई की यह सख्ती काम आई और इतनी बड़ी परीक्षा शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुर्ई। लेकिन बाद में कुछ विवाद पैदा हो गए। मसलन कुछ लोगों का कहना था कि परीक्षा होने से पहले पेपर लीक हो गया था। वहीं दूसरा विवाद, स्थानीय भाषा में पेपर को लेकर था।
मद्रास हाई कोर्ट और गुजरात हाईकोर्ट में कुछ छात्रों ने अलग-अलग याचिका दाखिल कर कई सवाल उठाए। इन याचिकाओं में यह बात कही गई कि स्थानीय भाषाओं तमिल और गुजराती में पूछे गए सवाल अंग्रेजी के मुकाबले कठिन थे और उनके साथ नाइंसाफी हुई है। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि एक ही परीक्षा के अलग-अलग प्रश्नपत्र बनाकर सीबीएसई ने संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत छात्रों के समानता के अधिकार का उल्लंघन किया है। नीट के तहत यह चयन, समान कौशल का परीक्षण नहीं होगा।
लिहाजा अदालत, नीट 2017 को रद्द कर, एक समान प्रश्नपत्र के साथ नए सिरे से परीक्षा आयोजित कराए। जब मामला ज्यादा बढ़ गया और इस संबंध में मद्रास हाई कोर्ट ने नीट परीक्षा परिणाम की घोषणा पर अंतरिम स्थगन लगा दिया, तो सीबीएसई हरकत में आई और उसने सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई।
अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग पेपर को लेकर जो विवाद है, उसके संबंध में सीबीएसई का कहना है कि सभी पेपरों को मडरेटरों ने तय करके एक ही लेवल का निकाला था और सभी भाषाओं में पेपर का डिफिकल्टी लेवल एक जैसा ही था। यही नहीं स्थानीय भाषाओं में पेपर का अनुवाद करने से ज्यादा लोग पूरी प्रक्रिया में जुड़ेंगे और इससे पेपर लीक होने की संभावना बढ जाती।
लिहाजा उसने स्थानीय भाषा में अलग पेपर बनवाए। सीबीएसई की इन बातों में दम भी है। इस साल नीट के इम्तिहान में सिर्फ 9.25 फीसदी छात्रों ने ही स्थानीय भाषा में परीक्षा दी, बाकी छात्र हिंदी और अंग्रेजी भाषा के साथ परीक्षा में बैठे। अगर स्थानीय भाषा का कोई पेपर लीक भी हो जाता, तो ऐसी स्थिति में अन्य 90 फीसदी छात्रों की दोबारा परीक्षा देने की जरूरत नहीं पड़ती।
बहरहाल सर्वोच्च न्यायालय, सीबीएसई की इन दलीलों से कितना सहमत होता है, यह तो अगली सुनवाई में ही तय होगा। पर उसके हालिया आदेश से उन लाखों छात्रों ने जरूर राहत की सांस ली है, जो परीक्षा देने के बाद से ही रिजल्ट का इंतजार दिन-रात कर रहे थे। नीट परीक्षा से पचास हजार छात्रोंं का भविष्य जुड़ा हुआ है। जितनी जल्दी ये मामला सुलझेगा, उतनी ही जल्दी मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में एडमिशन प्रक्रिया पूरी होगी।
-जाहिद खान
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