सन् 1985 की बात है। उस समय पंजाब में आतंकवाद का बोलबाला था। हम पूजनीय परम पिता जी के पास आए और अपने काम-धन्धे के बारे में बताया। पूजनीय परम पिता जी फरमाने लगे, ‘‘बेटा, पंजाब के हालात अभी ठीक नहीं है। हम एक सलाह देते हैं कि अपने आभूषण आदि सब बेचकर जमीन खरीद लो क्योंकि ये जानलेवा होते हैं, जमीन न तो चोरी हो सकती है और न ही खोने का डर।’’ इसके बाद हम समालसर वापिस आ गये और शहनशाह जी के वचन मानकर सारे आभूषण बेच दिये और जमीन देखने लगे। हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि जमीन कहाँ पर लें। काफी मेहनत के बाद हमें किसी ने गाँव अरनियां वाली (सिरसा) के मोड़ पर जमीन दिखाई।
यहाँ पर 10-10 फुट के टीले थे लेकिन जमीन बहुत सस्ती मिल रही थी इसलिए हमें जमीन पसन्द आ गई। फिर हम पूजनीय परम पिता जी के पास आशीर्वाद लेने गये और बताया कि पिता जी जमीन तो खरीद ली है, लेकिन टीले ही टीले हैं पैदावार की दृष्टि से अच्छी नहीं है। इस पर पूजनीय परम पिता जी फरमाने लगे, ‘‘बेटा, धरती को बुरा नहीं कहते। देखना, कुछ समय लगेगा यह जमीन एक दिन तुम्हें हीरे-मोती देगी।’’ यह सुनकर मैंने पूजनीय परम पिता जी से माफी माँगी। समय आने पर शहनशाह जी के उपरोक्त वचन सौ प्रतिशत सच हुए। आज इस जमीन की कीमत पहले से कई गुणा बढ़ चुकी है।
-श्रीमती शशि बाला, शाहपुर बेगू, सरसा
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