लड़की की शादी में मदद:- एक बार एक गरीब परिवार पूजनीय माता जी के पास कुछ रुपयों की मदद के लिए आया। उनकी लड़की की शादी थी। कहीं भी और से प्रबंध नहीं हो पाया था। शादी का दिन नजदीक था। वे लोग बड़ी मुश्किल में थे। जब वो मदद की फरियाद लेकर आए, आप जी भी उस समय अपनी पूज्य माता जी के पास बैठै हुए थे। परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने पूज्य माता जी से कहा, माता जी, इनको अगर सौ रुपये की जरूरत है तो दो सौ दे देना और इनसे वापिस भी नहीं लेना। ये समझ लेना कि यह मेरी अपनी बहन की शादी है।
आप जी के बालमुख से ऐसी परोपकारी भावना को सुनकर पूज्य माता जी का दिल भाव-विभोर हो गया। आप जी के दर पर आया कोई भी सवाली कभी खाली नहीं गया। जरूरत से ज्यादा पाकर हर कोई आप जी को धन्य-धन्य कहता जाता।
जीव-जन्तुओं के प्रति हमदर्दी:-पढ़ाई के बाद आप जी खेती कार्याें में रूचि लेने लगे। आप जी ने केवल इन्सानों पर ही नहीं, जीव-जंतुओं पर भी अपना रहमो-करम बरसाया। आपजी ने कभी किसी पशु को भी अपने खेत में फसल चरते को बाहर नहीं निकाला था। पशु है पेट तो इसने भरना ही है, अपने भाग्य का खा रहा है। ऐसे उत्तम संस्कारों के धनी थे आप। एक झोटा आप जी की मौजूदगी में खेत से फसल चरता रहता, लेकिन आप जी उसे न हटाते। उन दिनों खेत में चनों की फसल लहलहा रही थी।
किसी ने पूज्य माता जी से जाकर शिकायत कर दी कि हरबंस सिंह जी फसल की रखवाली क्या करते हैं, झोटा उनके सामने फसल चर रहा है और वो उसे बाहर नहीं निकालते। अगले दिन जब वह झोटा फसल चर रहा था तो आप जी ने उसकी पीठ को थप-थपाते हुए कहा, भगता, अब तो अपनी शिकायत हो गई है, अब तू हिस्से आता चर लिया कर। उस प्राणी ने आप जी (पूज्य सतगुरु जी) के वचन को सिर-माथे सत्यवचन कहकर माना, और उस दिन के बाद, गांववासी भी इस हकीकत के गवाह हैं कि जब तक वह जीवित रहा कभी किसी के खेत में एक जगह खड़े होकर फसल नहीं चरी थी, चलते-चलते ही चरता था।
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