पिछले सप्ताह अमेरिका के न्यूयार्क से झकझोर देने वाली खबर वायरल हुई, जिसमें एक प्रवासी पंजाबी महिला मनदीप कौर ने पहले रो-रो कर अपना दर्द सुनाया और बाद में खुदकुशी कर ली। दो बेटियों की मां मनदीप अपने पति-सास व अन्य ससुरालियों से घरेलू हिंसा का शिकार होती रही, जिसमें मारपीट, बेटा नहीं होने के ताने, अपमान उसने झेला और कोशिश की कि उसकी वैवाहिक जिंदगी एक दिन सुकून भरी हो जाएगी, परन्तु आखिर वह घर में हो रही प्रताड़ना से हार गई और आत्महत्या कर ली। भारत में महिलाओं के साथ यह बड़ी त्रासदी है कि वह आए दिन घरेलू हिंसा का शिकार होकर भी अपने वैवाहिक रिश्तों को खत्म नहीं करती और जान दे देती हैं। दहेज, बेटा नहीं होना, पति द्वारा नशे करना, पति के अन्य औरतों से सम्बन्ध होना, पत्नी को घर की नौकरानी समझना, घर के बड़े-छोटे फैसलों से उन्हें दूर रखना, शादीशुदा बेटियों का अपने मायके परिवार में दखलदांजी रखना, सास द्वारा अपनी बहुओं की तुलना दूसरी औरतों से करते रहना, बहुओं को उनके मायके की छोटी-मोटी बातें सुना-सुना ताने देना जैसी घरेलू हिंसा की लम्बी फेहरिस्त है, जिसे समाज शिक्षित होकर भी अपने जीवन से हटा नहीं रहा।
नतीजा हर साल सैकड़ों हजारों औरतों की जान इन उत्पीड़क आदतों के चलते चली जाती है। अभी मनदीप की आत्महत्या पर पूरा समाज उबल रहा है, आत्महत्या के लिए जिम्मेवार उसके पति को जेल भेजने की कोशिशों में जुटा हुआ है। लेकिन यहां हजारों-लाखों घर अपनी बहुओं के लिए आज भी जेल बने हुए हैं, उनका सुधार किया जाना भी बेहद जरूरी है। आज के इस दौर में ही नहीं सदा से ही स्त्री एवं पुरूष समान हैं और आगे भी समान ही रहेंगे, जब तक कि मानव जीवन का अस्तित्व है परन्तु समाज की सोच ने पहले भी व अब भी स्त्री को कमजोर बनाकर रखा हुआ है। घरों में बेटियों को जितना प्यार दिया जाता है वैसा ही प्यार बहुओं को भी दिया जाए। तलाक भले ही बुरा है, लेकिन जिन घरों में बहुओं के साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं होता वहां बेहिचक, बिना सामाजिक मान-सम्मान की परवाह किए तलाक लिया जाना अच्छा है बजाय इसके कि वर्षों-वर्ष हिंसा, अपमान, भेदभाव बर्दाश्त किया जाए। मानव जीवन बेशकीमती है इसकी परवाह की जानी चाहिए।
अफसोस है कि जैसे-जैसे समाज शिक्षित एवं समृद्ध हो रहा है, बच्चों व महिलाओं के साथ हिंसा के मामले बढ़ रहे हैं। बच्चे व महिलाएं समाज में आश्रित होने के चलते पुरूषों द्वारा या परिवार के अन्य महिला सदस्यों के द्वारा शारीरिक एवं मानसिक हिंसा को बर्दाश्त करते रहते हैं। आर्थिक विकास के साथ-साथ समाज का आत्मिक विकास नहीं हो पा रहा। करूणा, प्रेम, दया, सद्भाव, सम्मान, हर प्राणी के जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। समाज को आत्मिक तौर पर शिक्षित होना होगा। कमजोरों पर हिंसा कायर लोगों का काम है। हिंसा सहने वालों को भी हिम्मत सिखाई जाना जरूरी है, ताकि समाज में बराबरी व शांति की स्थापना हो सके, बच्चों व महिलाओं की सुरक्षा के लिए समाज को अपनी सोच बदलनी होगी।
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