वैसे तो हम सब बचपन से ही पढ़ते-सुनते आए हैं कि धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है और शरीर में कैंसर तथा कई अन्य बीमारियों को जन्म देता है लेकिन इसको जानने-समझने के बाद भी जब हम अपने आस-पास किशोरवय बच्चों को भी धूम्रपान करते देखते हैं तो स्थिति काफी चिंताजनक प्रतीत होती है। दरअसल ऐसे किशोरों के मनोमस्तिष्क में धूम्रपान को लेकर कुछ गलत धारणाएं विद्यमान होती हैं, जैसे धूम्रपान से उनके शरीर में चुस्ती-फुर्ती आती है, उनका मानसिक तनाव कम होता है, मन शांत रहता है, व्यक्तित्व आकर्षक बनता है, कब्ज की शिकायत दूर होती है आदि-आदि। तमाम वैज्ञानिक शोधों के बावजूद ऐसे व्यक्ति समझना ही चाहते कि धूम्रपान करने से उनके अंदर ऐसी कोई ताकत नहीं पैदा नहीं होने वाली कि देखते ही देखते वो किसी ऊंचे पर्वत पर छलांग लगा सकें या महाबली हनुमान की भांति समुद्र लांघ जाएं। वास्तविकता यही है कि धूम्रपान एक ऐसा धीमा जहर है, जो धीमे-धीमे इसका सेवन करने वाले व्यक्ति का दम घोंटता है। धूम्रपान शरीर में धीरे-धीरे प्राणघातक बीमारियों को जन्म देता है और ऐसे व्यक्ति को धीमी गति से मृत्यु शैया तक पहुंचा देने का माध्यम बनता है।
एक ओर जहां विकासशील देशों में धूम्रपान का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है, वहीं अमेरिका सरीखे कुछ विकसित देशों में धूम्रपान के प्रचलन में तेजी से गिरावट आई है। 1965 में अमेरिका की 42 फीसदी आबादी धूम्रपान की आदी थी जबकि 1991 में यह संख्या घटकर 26 फीसदी रह गई और पिछले डेढ़ दशक में तो वहां धूम्रपान करने वालों की संख्या में और भी तेजी से गिरावट आई है। गहराई में जाने पर पता चलता है कि अमेरिका में सिगरेट की खपत में लगातार कमी आने की वजह से अमेरिका की सिगरेट कम्पनियों ने अपने घाटे की पूर्ति के लिए अपने उत्पादों को भारत तथा अन्य विकासशील देशों में खपाने की योजना बनाई और उसे इस कार्य में सफलता भी मिली। भारत में प्रतिदिन धूम्रपान से मरने वालों की संख्या सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों के मुकाबले 20 गुना है जबकि एड्स से देश में जितनी मौतें 10 वर्ष में होती हैं, उतनी मौतें धूम्रपान की वजह से मात्र एक सप्ताह में ही हो जाती हैं।
एक जानकारी के अनुसार देश में प्रतिदिन 3000 से अधिक व्यक्तियों की मृत्यु तम्बाकू जनित बीमारियों के कारण होती है, जिनमें 10 फीसदी व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो स्वयं तो धूम्रपान नहीं करते लेकिन धूम्रपान करने वालों के निकट होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार तम्बाकू के सेवन के कारण प्रतिदिन मरने वाले करीब 11000 लोगों में से लगभग 8000 व्यक्ति फेफड़ों के कैंसर के शिकार होकर मरते हैं। संगठन का अनुमान है कि यदि दुनिया भर में धूम्रपान की लत इसी रफ्तार से बढ़ती रही तो सन् 2020 तक धूम्रपान की वजह से 50 करोड़ लोग मारे जा चुके होंगे और अगले 30 वर्षों में केवल गरीब देशों में ही धूम्रपान से मरने वालों की संख्या 10 लाख से बढ़कर 70 लाख तक पहुंच जाएगी।
वरिष्ठ पत्रकार योगेश कुमार गोयल की नशे के दुष्प्रभावों पर वर्ष 1993 में प्रकाशित पुस्तक ‘मौत को खुला निमंत्रण’ में बताया गया है, ”सिगरेट के धुएं में करीब 4000 घातक रासायनिक तत्व विद्यमान होते हैं, जिनमें पोलिनियम 210, कार्बन मोनोक्साइड, कार्बन डाइआक्साइड, निकल, पाईरीडिन, बेंजीपाइरीन, नाइट्रोजन आइसोप्रेनावाइड, अम्ल, क्षार, निकोटीन, टार, जिंक, हाइड्रोजन साइनाइड, कैडमियम, ग्लायकोलिक एसिड, सक्सीनिक एसिड, एसीटिक एसिड, फार्मिक एसिड, मिथाइल क्लोराइड इत्यादि प्रमुख हैं, जो मानव शरीर पर तरह-तरह से दुष्प्रभाव डालते हैं। धूम्रपान से हृदय रोग, लकवा, हर प्रकार का कैंसर, मोतियाबिंद, नपुंसकता, बांझपन, पेट का अल्सर, एसीडिटी, दमा, ब्रोंकाइटिस, मिरगी, मेनिया, स्कीजोफ्रेनिया जैसे घातक रोगों का खतरा भी कई गुना बढ़ जाता है। धूम्रपान से मोतियाबिंद का खतरा बन जाता है और आंख की रेटीना प्रभावित होने लगती है, जिससे नेत्रज्योति कम होती जाती है।
‘मौत को खुला निमंत्रण’ पुस्तक में बताया गया है, ‘‘गर्भवती महिलाओं द्वारा धूम्रपान किए जाने से कम लम्बाई और कम वजन के बच्चों का जन्म, बच्चों में अपंगता तथा बाल्यावस्था में ही घातक हृदय रोग जैसी बीमारियों का खतरा काफी बढ़ जाता है। एक अध्ययन के अनुसार प्रतिदिन 20 सिगरेट तक पीने वाली गर्भवती महिला के बच्चे की मृत्यु होने की संभावना सामान्य से 20 प्रतिशत बढ़ जाती है जबकि 20 से अधिक सिगरेट पीने पर यह खतरा 35 प्रतिशत तक हो जाता है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार किसी दूसरे के धूम्रपान के धुएं के प्रभाव से दिल के दौरे से होने वाली मौतों की आशंका 30 प्रतिशत बढ़ जाती है।’’
विश्वभर में करीब सवा अरब लोग धूम्रपान के आदी हैं, जो कुल मिलाकर प्रतिवर्ष लगभग 61 खरब सिगरेटें पी जाते हैं। विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार माना गया है कि विकसित देशों में 41 फीसदी पुरूष और 21 फीसदी स्त्रियां धूम्रपान करती हैं जबकि विकासशील देशों में सिर्फ 8 फीसदी स्त्रियों को इसकी लत लगी है तथा पुरूषों की संख्या 50 फीसदी से भी अधिक है। भारत में तम्बाकू का सेवन करने वालों का सर्वेक्षण करने वाली संस्था ‘टोबेको इंस्टीच्यूट आॅफ इंडिया’ के अनुसार हमारे यहां लोग हर साल करीब 950 करोड़ सिगरेटें पी जाते हैं, जिसकी औसतन कीमत 2000 करोड़ रुपये से भी अधिक मानी गई है। हालांकि सिगरेटें महंगी होने के कारण भारत में बीड़ी का प्रचलन निम्न तथा मध्यमवर्गीय तबके में ज्यादा है और ऐसा अनुमान है कि देश में प्रतिवर्ष सौ अरब रुपये मूल्य से भी अधिक की बीड़ियों का सेवन किया जाता है।
जहां तक हमारे यहां सिगरेट के पैकेटों पर लिखी वैधानिक चेतावनी का सवाल है तो यह कितनी असरकारक है, इससे कोई अपरिचत नहीं है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार प्रतिदिन एक पैकेट सिगरेट पीने वाला व्यक्ति अपने जीवन के 8 दिन कम कर लेता है, इसलिए सिगरेट के पैकेटों से वर्तमान वैधानिक चेतावनी को हटाकर यह लिख दिया जाना चाहिए कि इस पैकेट के उपयोग से आपके जीवन के 8 दिन कम हो जाएंगे। बहरहाल, तमाम स्वास्थ्य विशेषज्ञों और शोधों का एक स्वर में यही कहना है कि धूम्रपान एक अत्यंत धीमा किन्तु प्राणघातक विष है, इसलिए स्वयं तो धूम्रपान से बचें ही, धूम्रपान के आदी लोगों को भी इस लत को छोड़ने के लिए प्रेरित करें।
यह जीवन है सुन्दर और अनमोल, धूम्रपान रूपी जहर से ना करो इसका मोल।
-श्वेता गोयल
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