इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेंट चेंज (आइपीसीसी) की ताजा रिपोर्ट पर विमर्श के बीच भारत सरकार ने पर्यावरण के मोर्चे पर एक अहम फैसला लिया है। देश में अगले साल एक जुलाई से सिंगल यूज प्लास्टिक (Single Use Plastic) उत्पादों पर पूरी तरह प्रतिबंध लग जाएगा। कप, प्लेट, गिलास, चम्मच, चाकू, ट्रे, स्ट्रॉ, कैंडी और लॉलीपॉप में लगी डंडी सहित अनेकों वस्तुओं के साथ सिंगल यूज प्लास्टिक पहले हमारे घर और फिर पर्यावरण में प्रवेश करता है।
इन पर रोक से जुड़े निर्णय के बहुआयामी प्रभाव होंगे। ऑस्ट्रेलिया के माइंड्रू फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रति व्यक्ति सालाना सिंगल यूज प्लास्टिक की खपत चार किलोग्राम है, वहीं यह आंकड़ा सिंगापुर में 76, आॅस्ट्रेलिया में 56 और यूरोप में लगभग 31 किलोग्राम है। भारत प्रति वर्ष 50 लाख टन से अधिक ऐसे प्लास्टिक उत्पादित करता है, जबकि चीन और अमेरिका में उत्पादन क्रमश: ढाई करोड़ टन और 1.70 लाख टन है। इस वर्ष विश्व में प्लास्टिक का कुल उत्पादन 30 करोड़ टन रहने का अनुमान है।
दुनिया में कुल उत्पादित प्लास्टिक के आधे से अधिक भाग को एक बार इस्तेमाल कर फेंक दिया जाता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का कहना है कि यदि प्लास्टिक के बेतहाशा उपयोग पर तत्काल रोक नहीं लगी, तो अगले कुछ दशकों में पारिस्थितिक तंत्र से 10 लाख प्रजातियां विलुप्त हो जायेंगी। समुद्र में जिस तेजी से प्लास्टिक कचरा बढ़ रहा है, उससे मूंगा चट्टान, शैवाल व अनेक सूक्ष्म जीव विलुप्त हो रहे हैं। मनुष्यों, पशु-पक्षियों, वनों और मृदा की सेहत पर प्लास्टिक कचरे के दुष्प्रभाव की चिंताजनक रिपोर्ट हमारे सामने हैं।
दुनिया का हर देश एक बार उपयोग कर कचरे में तब्दील कर दिये जानेवाले प्लास्टिक के पर्यावरणीय खतरे से जूझ रहा है। इस सदी की शुरूआत में ही जलवायु परिवर्तन की तमाम वैश्विक साझेदारियों के केंद्र में प्लास्टिक आ चुका है। इसी क्रम में जून, 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग नहीं करेगा। सामान्यत: व्यापारी निमार्ताओं से सामान प्राप्त कर ग्राहकों को उपलब्ध कराते हैं। नये नियमों में सरकार उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों पर नकेल कसेगी।
हालांकि प्लास्टिक बैग को एक से अधिक बार उपयोग में लाने लायक बनाने के लिए उसकी संरचना में बदलाव भी किये जा रहे हैं। इसके लिए बैग की मोटाई 30 सितंबर, 2021 से ही बढ़ायी जायेगी। वर्तमान में प्लास्टिक की खपत अधिक होने की एक बड़ी वजह कम लागत और सुगमता है। पैकेजिंग उद्योग से संबंधित व्यावहारिक दिक्कतों को दूर करने की मांग लंबे समय से हो रही है। भारत में जूट और बांस आधारित उद्योग की क्षमता का उपयोग किया जाना चाहिए। यह कुटीर उद्योग को नया जीवन देने के साथ ‘वोकल फॉर लोकल’ को भी मजबूती प्रदान करेगा।
पेपर पैकेजिंग इंडस्ट्री को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। दुनियाभर में भुट्टे के छिलके, गन्ने और फसलों के अपशिष्ट से बायो प्लास्टिक तैयार करने की विधियां सृजित की गयी हैं। इन पैकेजिंग उत्पादों का जैविक तरीके से निस्तारण संभव है। पर्यावरण को बचाने के इस साझा प्रयास में कानूनी प्रावधानों के अनुपालन के साथ जन चेतना की बड़ी भूमिका होगी। पर्यावरणीय गुणवत्ता को छिन्न-भिन्न करनेवाले प्लास्टिक पर मानवीय निर्भरता कम करने का यह लक्ष्य सामुदायिक प्रयासों के जरिये ही हासिल होगा।