हमारे देश की सरकारों व नेताओं के साथ-साथ लोगों की यह मानसिकता बन चुकी है कि वे अपनी कमियों को दूर करने की बजाए दूसरों को आचोलना का शिकार बनाते हैं या फिर प्राकृति को कोसते हैं। पंजाब और हरियाणा के बीच एक बार फिर नदियों के पानी का मुद्दा उस वक्त गर्मा रहा है जब दोनों राज्यों में बरसात से कई शहर बेहाल हुए पड़े हैं। यही हाल उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों का है। पानी की उपलब्धता व पानी की कमी के बीच संतुलन बनाने का कोई प्रयास नहीं हो रहा। हरियाणा व पंजाब के लिए उतर प्रदेश के बुन्देलखंड क्षेत्र के कुछ लोगों की मेहनत मिसाल बन सकती है जो असंभव काम को भी संभव बनाने में सफल हो रहे हैं। बरसात के पानी को संचित करने का काम इन लोगों से सीखें। इस क्षेत्र के किशोरनन्द नामक व्यक्ति ने चार साल मेहनत कर ढाई एकड़ में 6 फुट गहरा तालाब बना दिया जिससे कृषि के साथ-साथ पशुओं को भी पीने वाले पानी की समस्या खत्म हो गई।
नए रास्ते तलाशने वाले ऐसे व्यक्ति का शुरूआत में लोग मजाक उड़ाते हैं, लेकिन सफलता मिलने पर वही सलाम भी करते हैं। ऐसी मेहनत ही छत्तीसगढ़ में शामलाल नामक व्यक्ति ने दिखाई, जिसने 27 वर्ष निरंतर कस्सी के साथ एक तालाब खोद दिया और गांव को पानी की किल्लत से निजात दिलवाई। यदि छत्तीसगढ़ का गरीब शाम लाल अपने लोगों की समस्या दूर कर सकता है तब पंजाब और हरियाणा की सरकारें व किसान, जिनके पास 50 हार्श पॉवर तक के दो-दो ट्रैक्टर और पैसा भी है, क्यों नहीं पानी की किल्लत का समाधान कर सकते।
पंजाब का कहना है कि भू-जल गहरा रहा है। हरियाणा के पास पहले ही भू-जल की कमी है। पानी के इस विवाद में कई बार हालात तकरार वाले बने हैं। दरअसल दोनों राज्यों के किसानों की यह जिम्मेवारी बनती है कि वे पानी को लेकर झगड़ा करने की बजाए पानी की संभाल के लिए नए रास्तों की तलाश करें। नि:संदेह नदियों का पानी एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है जो वोट बैंक की नीति के तहत कभी गर्मा जाता है और कभी ठंडा पड़ जाता है। दोनों राज्यों की सरकारों तथा किसानों व आमजन को छत्तीसगढ़ और बुंदेलखंड के लोगों से सीख लेने की आवश्यकता है।
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