नर्सिंग स्टॉफ की कमी की वजह सरकारी नीतियां

Resignation of Nurses

आज अंतरराष्ट्रीय नर्सिंग दिवस है और कोरोना काल में नर्सिंग के पेशे की आवश्यकता और महत्वता का एहसास भी आज हो रहा है। पैसे से अस्पताल बनाए जा सकते हैं और अन्य मेडिकल साजो-समान खरीदा जा सकता है लेकिन प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ और मरीजों की पारिवारिक सदस्यों की तरह सेवा संभाल की भावना नहीं खरीदी जा सकती। देश के पास आज फंड की कमी नहीं। कोरोना मरीजों के मद्देनजर सरकार और अमीर लोग अस्पताल खोलने में सहयोग कर सकते हैं लेकिन इसका लाभ फिर ही होगा यदि नर्सिंग स्टाफ होगा। बड़ी समस्या स्टाफ की कमी है। आज लाखों की संख्या में नर्सिंग स्टाफ मरीजों की संभाल कर रहा है। काम केवल दवा ने ही नहीं करना बल्कि डाक्टरों/नर्सों के व्यवहार ने भी करना है, जिनके शिष्टाचार व्यवहार, अपनापन, समय पर मरीज का चैकअप, दवा और खाने-पीने का ध्यान मरीजों का हौसला बढ़ाता है।

यह सेवा भावना मरीज के स्वस्थ होने में बड़ी भूमिका निभाती है लेकिन हम खुद देख चुके हैं कि नर्स/डाक्टरों के साथ किस प्रकार लापरवाही भरा और सौतेला व्यवहार होता रहा है। स्थायी होने के लिए धरनों में मारपीट, जेलों में परेशानी का नर्सों को सामना करना पड़ा। अपनी मांगें मनवाने के लिए वाटर-वकर््स की टैंकियों पर चढ़ना पड़ रहा है दूसरी तरफ अस्पताल में स्टॉफ की कमी के कारण लोगों को आवश्यक मेडिकल सुविधाएं नहीं मिलीं। कोरोना काल में सरकार द्वारा डाक्टरों/नर्सें की भर्ती के विज्ञापन खूब निकाले गए। यदि पहले ही भर्ती समय अनुसार होती तब आज मरीजों को संभालना ओर आसान होता। नर्सिंग दिवस और कोरोना काल में नर्सिंग स्टाफ के प्रति सम्मान की भावना को समझना जरूरी है।

डेरा सच्चा सौदा की साध-संगत नर्सिंग स्टाफ को कोरोना योद्धाओं के तौर पर न केवल सेल्यूट कर रही है बल्कि वे फल व अन्य आवश्यक साम्रगी भी बांट रहे हैं। नर्स/डॉक्टरों ने कोरोना महामारी में अपनी जान जोखिम में डालकर मरीजों की संभाल की है। कई नर्स/डॉक्टर मरीजों की संभाल और इलाज करते खुद इस बीमारी के पीड़ित हो गए फिर भी संकट में मरीजों की संभाल करना एक बड़ी सेवा है। इनकी मेहनत और लगन को सलाम है। सरकारों की भी जिम्मेदारी है कि वह नर्सिंग स्टाफ की जरूरतों को समझकर उनकी मांगों को पूरी करें। कंट्रैक्ट पर मामूली वेतन देने की बजाय स्थायी कर उन्हें उनके अधिकार दिए जाएं।

 

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